काला गहरा अंधियारा, मांगता तनहाई से कुछ पल साथ तनहा मन, कितना अज़ीब फ़लसफ़ा हर बाहर जाती श्वास निर्भर वापिस आने को मृत्यु के अहसान पर। मन की भावनाओं को सुन्दर शब्दों में लिखा है आपने आदरणीय श्री कैलाश शर्मा जी ! सर दमित का क्या अर्थ होता है ? दमित शब्द ? कृपया बताइयेगा !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (04-07-2015) को "सङ्गीतसाहित्यकलाविहीना : साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीना : " (चर्चा अंक- 2026) " (चर्चा अंक- 2026) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
मार्मिक प्रस्तुति ....उम्दा
ReplyDeleteहर बाहर जाती श्वास
निर्भर वापिस आने को
काला गहरा अंधियारा,
ReplyDeleteमांगता तनहाई से
कुछ पल साथ तनहा मन,
कितना अज़ीब फ़लसफ़ा
हर बाहर जाती श्वास
निर्भर वापिस आने को
मृत्यु के अहसान पर।
मन की भावनाओं को सुन्दर शब्दों में लिखा है आपने आदरणीय श्री कैलाश शर्मा जी ! सर दमित का क्या अर्थ होता है ? दमित शब्द ? कृपया बताइयेगा !!
दमित = दबी हुई, repressed
Deleteकुछ पल साथ तनहा मन
ReplyDeleteकितना अज़ीब फ़लसफ़ा
हर बाहर जाती श्वास
निर्भर वापिस आनें को
मृत्यु के अहसान पर।
बेहद खूबसूरत कविता शर्मा जी।अति सुन्दर।
हर बाहर जाती श्वास
ReplyDeleteनिर्भर वापिस आने को
मृत्यु के अहसान पर।
बहुत बड़ी सच्चाई है...बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना
"जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धा: कवीश्वरा: ।
ReplyDeleteनास्ति येषां यशः काये जरामरणजं भयम् ॥"
भर्तृहरि
वाह !
ReplyDeleteबेहतरीन........
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (04-07-2015) को "सङ्गीतसाहित्यकलाविहीना : साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीना : " (चर्चा अंक- 2026) " (चर्चा अंक- 2026) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार...
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteनिशब्द...
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteचंद शब्दों में गहन जीवन दर्शन की सशक्त अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसच बाहर को शोर सुना जाना आसान है लेकिन अंतर्मन के चीत्कार को कोई नहीं सुन पाता ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना .
,और इन के बीच ही समाप्त हो जाता है जीवन, अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति कैलाश जी
ReplyDeleteसटीक और सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteश्वासों का गणित और जीवन की शाम.
ReplyDeleteसुन्देर५ प्रस्तुती.
ये जीवन मृत्यु का एहसास ही तो है ... साँसों का आना जाना उकसे आने तक ही जारी है ...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteसार्थक कविता के लिए आपका आभार। कविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteDeeply meaningful.Nice.
ReplyDeleteDeeply meaningful.Nice.
ReplyDeleteगहन भाव।
ReplyDeleteबहुत गहन भावों को चंद शब्दों में समेट दिया है आपने..
ReplyDeleteगहरे भाव लिए कविता । साधुवाद
Deleteसचमुच अज़ीब फ़लसफ़ा है !
ReplyDeleteजिसका अस्तित्व नहीं उसी की आस करना......!
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteहर बाहर जाती श्वास
ReplyDeleteनिर्भर वापिस आने को
मृत्यु के अहसान पर।
मन की भावनाओं को सुन्दर शब्दों में लिखा है