Friday, December 18, 2015

जीवन घट रीत चला

पल पल कर बीत चला,
जीवन घट रीत चला।

बचपन था कब आया,
जाने कब बीत गया।
औरों की चिंता में
यौवन रस सूख गया।
अब जीवन है सूना,
पीछे सब छूट चला।

ऊँगली जो पकड़  चला,
उँगली अब झटक गया।
मिलता अनजाना सा,
जैसे कुछ अटक गया।
जीवन लगता जैसे,
हर पल है लूट चला।

सावन सी अब रातें,
मरुथल सा दिन गुज़रा।
हर पल ऐसे बीता,
जैसे इक युग गुज़रा।
खुशियों का कर वादा,
सपनों ने आज छला।

कण कण है शून्य आज,
हर कोना है उदास।
जीवन में अँधियारा,
आयेगा अब उजास।
सूरज के हाथों फ़िर,
चाँद गया आज छला।

जब तक है चल सकता,
रुकने दे क़दमों को।
कितना भी व्यथित करे,
सह ले हर सदमों को।
अंतिम यात्रा में कब,
कौन साथ मीत चला

...©कैलाश शर्मा

23 comments:

  1. मन के भावों का सुन्दर प्रस्तुतिकरण।आखिरी तक आते-आते भाव सकारात्मक हो उठे।बहुत सुन्दर कविता सर।बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
  2. मन के भावों का सुन्दर प्रस्तुतिकरण।आखिरी तक आते-आते भाव सकारात्मक हो उठे।बहुत सुन्दर कविता सर।बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
  3. अति भावपूर्ण कविता..पर अंतिम यात्रा में भी कोई साथ तो जायेगा..और वे होंगे हमारे कर्म और आत्मा पर पड़े संस्कार..यानि हम खुद ही अपने मीत बनें..आभार !

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-12-2015) को "जीवन घट रीत चला" (चर्चा अंक-2196) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  5. सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति। बचपन बीत चला जवानी की ओर...., जल्‍द ही जा पहूंचुगां चिर निंद्रा की ओर।

    ReplyDelete
  7. अति उत्तम रचना ..

    ReplyDelete
  8. Bahut sunder kavita hai sir, Apni real life yaad aa gayi

    ReplyDelete
  9. खो कर ही मानव सब पाता ।

    ReplyDelete
  10. जीवन यात्रा का निष्कर्ष ।
    मन को सहलाती-सी कोमल रचना ।

    ReplyDelete
  11. जीवन चक्र का अद्भुत चित्रण .... साधु ! साधु !!

    ReplyDelete
  12. बहुत ही सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

    ReplyDelete
  13. बेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

    ReplyDelete
  15. सुन्दर व सार्थक रचना...
    नववर्ष मंगलमय हो।
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

    ReplyDelete
  16. जीवन के अंतिम ऐकले सफ़र से पहले तो चलना ही होता है ...
    नियति को जीना होता है ... गहरे शब्द ...

    ReplyDelete