पल पल कर बीत चला,
जीवन घट रीत चला।
जीवन घट रीत चला।
बचपन था कब आया,
जाने कब बीत गया।
औरों की चिंता में
यौवन रस सूख गया।
अब जीवन है सूना,
पीछे सब छूट चला।
जाने कब बीत गया।
औरों की चिंता में
यौवन रस सूख गया।
अब जीवन है सूना,
पीछे सब छूट चला।
ऊँगली जो पकड़ चला,
उँगली अब झटक गया।
मिलता अनजाना सा,
जैसे कुछ अटक गया।
जीवन लगता जैसे,
हर पल है लूट चला।
उँगली अब झटक गया।
मिलता अनजाना सा,
जैसे कुछ अटक गया।
जीवन लगता जैसे,
हर पल है लूट चला।
सावन सी अब रातें,
मरुथल सा दिन गुज़रा।
हर पल ऐसे बीता,
जैसे इक युग गुज़रा।
खुशियों का कर वादा,
सपनों ने आज छला।
मरुथल सा दिन गुज़रा।
हर पल ऐसे बीता,
जैसे इक युग गुज़रा।
खुशियों का कर वादा,
सपनों ने आज छला।
कण कण है शून्य आज,
हर कोना है उदास।
जीवन में अँधियारा,
आयेगा न अब उजास।
सूरज के हाथों फ़िर,
चाँद गया आज छला।
हर कोना है उदास।
जीवन में अँधियारा,
आयेगा न अब उजास।
सूरज के हाथों फ़िर,
चाँद गया आज छला।
जब तक है चल सकता,
न रुकने दे क़दमों को।
कितना भी व्यथित करे,
सह ले हर सदमों को।
अंतिम यात्रा में कब,
कौन साथ मीत चला।
न रुकने दे क़दमों को।
कितना भी व्यथित करे,
सह ले हर सदमों को।
अंतिम यात्रा में कब,
कौन साथ मीत चला।
...©कैलाश शर्मा
Bahut hi sunder kavita , sir.
ReplyDeleteBahut hi sunder kavita , sir.
ReplyDeleteमन के भावों का सुन्दर प्रस्तुतिकरण।आखिरी तक आते-आते भाव सकारात्मक हो उठे।बहुत सुन्दर कविता सर।बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteमन के भावों का सुन्दर प्रस्तुतिकरण।आखिरी तक आते-आते भाव सकारात्मक हो उठे।बहुत सुन्दर कविता सर।बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteअति भावपूर्ण कविता..पर अंतिम यात्रा में भी कोई साथ तो जायेगा..और वे होंगे हमारे कर्म और आत्मा पर पड़े संस्कार..यानि हम खुद ही अपने मीत बनें..आभार !
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-12-2015) को "जीवन घट रीत चला" (चर्चा अंक-2196) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। बचपन बीत चला जवानी की ओर...., जल्द ही जा पहूंचुगां चिर निंद्रा की ओर।
ReplyDeleteअति उत्तम रचना ..
ReplyDeleteBahut sunder kavita hai sir, Apni real life yaad aa gayi
ReplyDeleteखो कर ही मानव सब पाता ।
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteजीवन यात्रा का निष्कर्ष ।
ReplyDeleteमन को सहलाती-सी कोमल रचना ।
जीवन चक्र का अद्भुत चित्रण .... साधु ! साधु !!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्द रचना
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
बेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
सुन्दर व सार्थक रचना...
ReplyDeleteनववर्ष मंगलमय हो।
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
जीवन के अंतिम ऐकले सफ़र से पहले तो चलना ही होता है ...
ReplyDeleteनियति को जीना होता है ... गहरे शब्द ...
जीवन सार ।
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