हर खिड़की दरवाज़े
से
आ जाते यादों के झोंके
दे जाते कभी
सिहरन ठंडक की
कभी तपन लू की।
आ जाते यादों के झोंके
दे जाते कभी
सिहरन ठंडक की
कभी तपन लू की।
बंद कर
दीं
सब खिड़कियाँ, दरवाज़े
लेकिन आ जातीं दरारों से,
बहुत मुश्किल बचना
यादों के झोंकों से।
सब खिड़कियाँ, दरवाज़े
लेकिन आ जातीं दरारों से,
बहुत मुश्किल बचना
यादों के झोंकों से।
यादें कब होती मुहताज़
किसी दरवाज़े
की।
*****
उधेड़ता रहा रात भर
ज़िंदगी परत दर परत,
पाया उकेरा हर परत में
केवल तेरा अक्स,
और भी हो गए हरे
दंश तेरी यादों के।
पाया उकेरा हर परत में
केवल तेरा अक्स,
और भी हो गए हरे
दंश तेरी यादों के।
~©कैलाश शर्मा
यादें कभी फुहार मन के कभी दंश ... पर आ जाती हैं अचानक ...
ReplyDeleteयादों का रास्ता कौन रोक सकता है।अति सुन्दर कविता। बहुत खूब।
ReplyDeleteयादों का रास्ता कौन रोक सकता है।अति सुन्दर कविता। बहुत खूब।
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत क्षणिकाएं !
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश शर्माजी आप की छणिकाएँ सुंदर है जो हमे लिखने को विवश कर रहीं -
ReplyDelete"जल पीना औ पिलाना"
सिल गये हों होठ तो भी गुनगुनाना चाहिए
रोना -धोना भूलके वस मुस्कराना चाहिए ।
विद्रोही की ज्वाला भड़क उट्ठी है क्यों ?
खुद समझ कर बाद में सबको बताना चाहिए ।
बस्तियों में फिर चरागों को जलाने वास्ते
महलों के दीपक कभी भी न बुझाना चाहिए।
अम्नो -अमन की नदियां अवच्छ हों बहें ,
और वही जल पीना औ पिलाना चाहिए ।।
यादों की सुंर क्षणिकाएँ।
ReplyDeleteबंद कर दीं
ReplyDeleteसब खिड़कियाँ, दरवाज़े
लेकिन आ जातीं दरारों से,
बहुत मुश्किल बचना
यादों के झोंकों से।
यादें कब होती मुहताज़
किसी दरवाज़े की।
यादों को किसी प्रवेश पत्र की जरुरत कहाँ ? सुन्दर शब्द लिखे हैं आदरणीय शर्मा जी आपने !!
umda kshanikaye adarniy :) shubhsandhya jsk
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteसार्थक व प्रशंसनीय रचना...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।
यादों के दंश गहरे होते हैं ।
ReplyDeleteमर्म को स्पर्श करती अच्छी कविता ।
एक से बढ़कर एक क्षणिकाओं की प्रस्तुति। उम्दा प्रस्तुति के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteबेहतरीन चोटी कवितायें , गागर मे सागर बधाई शर्मा जी
ReplyDeleteबहुत उम्दा क्षणिकाएँ
ReplyDeleteयादों के भंवर से निकलना आसान तो नहीं..भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteIn yadon k saye me jindgi saans leti hai......anupam
ReplyDeleteउम्दा
ReplyDeleteउम्दा
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत गहरे अभिप्राय ।
ReplyDeleteक्या बात है !.....बेहद खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteMere blog ki new post par aapke vichaar ka swagat hai...
sunder.... dhnyawad aapko
ReplyDeleteबेहद बेहेतरीन रचना ।
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