अश्क़ जब आँख से ढला
होगा,
दर्द दिल का बयां हुआ होगा।
दर्द दिल का बयां हुआ होगा।
एक तस्वीर उभर आई
थी,
ये पता कब धुंआ धुंआ होगा।
बात लब पर थमी रही
होगी,
नज्र ने कुछ नहीं कहा होगा।
आज तक दंश गढ़ रहा
यह है,
बेवफ़ा समझ के गया होगा।
बेवफ़ा समझ के गया होगा।
चाँद का दर्द कौन
समझा है,
सुब्ह चुपचाप घर गया होगा।
सुब्ह चुपचाप घर गया होगा।
न कुछ हमने कहा न
था तूने,
दास्ताँ कौन गढ़ गया होगा।
दास्ताँ कौन गढ़ गया होगा।
बारहा बात सिर्फ़
इतनी थी,
बात कहने न कुछ बचा होगा।
~©कैलाश शर्मा
वाह ! बेहतरीन..हर पंक्ति बहुत कुछ कहती है
ReplyDeleteवाह ! खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत खूब बढ़िया !
ReplyDeleteबहुत सुंदर,सर।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस : वहीदा रहमान और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआभार...
Deleteबहुत सुंदर पंक्तिया ।
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ReplyDeleteआपने लिखा...
और हमने पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 05/02/2016 को...
पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
आप भी आयीेगा...
आभार..
Deleteकैलाश जी, स्नेह बना रहे।
ReplyDeleteवाह, बहुत ही सुंदर। आपकी रचना की हर पंक्ति अपना दर्द और भावनाएं बयां कर रही है। बेहद सार्थक रचना जो दिल की गहराइयों में उतर गई।
ReplyDeleteदास्ताँ यूँ ही बनती रहती है ...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ... बहुत दिनों बाद फिर से अनद ले पा रहा हूँ आपकी रचनाओं का ...
अहा, अभिभूत करती पंक्तियाँ
ReplyDeleteक्या खूब ग़ज़ल लिखी है आपने.
ReplyDeleteचाँद का दर्द कौन समझा है,
ReplyDeleteसुब्ह चुपचाप घर गया होगा।
न कुछ हमने कहा न था तूने,
दास्ताँ कौन गढ़ गया होगा।
ग़ज़ल का हर एक अशआर अपने आप में मुकम्मल ! इस विधा में भी आप खूब पारंगत हैं आदरणीय शर्मा जी !!
bahut khoob
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ..
ReplyDeleteअच्छी कविता।
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही खूबसूरत अहसास और उनकी अदायगी !
ReplyDeleteउम्दा पंक्तियाँ ।
ReplyDelete"अश्क़ जब आँख से ढला होगा" वाह ! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है- Indian Marriage Site
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