तुम संबल
हो, तुम आशा हो,
तुम जीवन की परिभाषा हो।
शब्दों
का कुछ अर्थ न होता,
उन से जुड़ के तुम भाषा हो।
जब भी
गहन अँधेरा छाता,
जुगनू बन देती आशा हो।
जीवन
मंजूषा की कुंजी,
करती तुम दूर निराशा हो।
नाम न हो
चाहे रिश्ते का,
मेरी जीवन अभिलाषा हो।
...©कैलाश शर्मा