बापू !
फिर एक बार आओ
अपने सपनों का महल को देखने,
जिसे आपके ही
वारिसों ने
खँडहर कर दिया है.
हर शहर के चौराहे पर
है तुम्हारी मूर्ती
ज़मी है जिस पर
उदासी की धूल.
तुम्हारा दरिद्र नारायण
तुम्हारी ही तरह लपेटे
कमर में आधी,
पर फटी धोती,
खडा है आज भी
लेकर कटोरा हाथ में.
हर दफ़्तर में
लगी है तुम्हारी फोटो,
जिसके नीचे बगुले
सफ़ेद कपडे पहन
करते हैं सौदा
देश के भविष्य का,
और रिश्वत का व्यापार
चलता है
मेज़ के नीचे से,
आपकी नज़रों से छुपाने के लिए.
आपके आदर्श
सीमित हैं सिर्फ़ किताबों तक,
आपको याद करते हैं
सिर्फ़ २ अक्टूबर और ३० जनवरी को,
जब आपकी समाधि पर
माला चढ़ा कर
समझ लेते हैं
अपने कर्तव्य की इति श्री.
गरीबी हटाने के नाम पर
बनती हैं योजनाएं,
गरीब और गरीब हो जाता है
पर भारी हो जाती है और भी
ज़ेब नेता और नौकरशाहों की.
नमक कानून तोड़कर
हिला दी थी तुमने
विदेशी शासन की जड,
पर आज देश का नमक खाकर भी
लगे हैं हमारे कर्णधार
खोखला करने में
अपने ही देश की जड़.
खुशनसीब थे तुम बापू
जो नहीं रहे देखने
अपने रामराज्य का सपना टूटते,
वरना बहुत दर्द होता,
गौडसे की चलाई हुई
गोली से भी ज्यादा.
फिर एक बार आओ
अपने सपनों का महल को देखने,
जिसे आपके ही
वारिसों ने
खँडहर कर दिया है.
हर शहर के चौराहे पर
है तुम्हारी मूर्ती
ज़मी है जिस पर
उदासी की धूल.
तुम्हारा दरिद्र नारायण
तुम्हारी ही तरह लपेटे
कमर में आधी,
पर फटी धोती,
खडा है आज भी
लेकर कटोरा हाथ में.
हर दफ़्तर में
लगी है तुम्हारी फोटो,
जिसके नीचे बगुले
सफ़ेद कपडे पहन
करते हैं सौदा
देश के भविष्य का,
और रिश्वत का व्यापार
चलता है
मेज़ के नीचे से,
आपकी नज़रों से छुपाने के लिए.
आपके आदर्श
सीमित हैं सिर्फ़ किताबों तक,
आपको याद करते हैं
सिर्फ़ २ अक्टूबर और ३० जनवरी को,
जब आपकी समाधि पर
माला चढ़ा कर
समझ लेते हैं
अपने कर्तव्य की इति श्री.
गरीबी हटाने के नाम पर
बनती हैं योजनाएं,
गरीब और गरीब हो जाता है
पर भारी हो जाती है और भी
ज़ेब नेता और नौकरशाहों की.
नमक कानून तोड़कर
हिला दी थी तुमने
विदेशी शासन की जड,
पर आज देश का नमक खाकर भी
लगे हैं हमारे कर्णधार
खोखला करने में
अपने ही देश की जड़.
खुशनसीब थे तुम बापू
जो नहीं रहे देखने
अपने रामराज्य का सपना टूटते,
वरना बहुत दर्द होता,
गौडसे की चलाई हुई
गोली से भी ज्यादा.
समय की नजाकत को बखूबी उतरा है आपने इन पंक्तियों में ....बापू के माध्यम से आपने वर्तमान समाज की विद्रूपताओं को सामने लाने का अच्छा प्रयास किया है ....आपका आभार
ReplyDeleteइस कविता के माध्यम से गांधी जी को मर्मस्पर्शी श्रद्धांजलि दी है आपने.
ReplyDeleteसादर
hrday ki peeda , jo aaj ka yatharth hai ...
ReplyDeletebahut hi bebak aur marnik prastuti.
समसामयिक बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteकम से कम जहाँ भ्रष्टाचार हो वहाँ से गाँधीजी का चित्र हटा लें।
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति |बधाई
ReplyDeleteआशा
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteखुशनसीब थे तुम बापू
ReplyDeleteजो नहीं रहे देखने
अपने रामराज्य का सपना टूटते,
वरना बहुत दर्द होता,
गौडसे की चलाई हुई
गोली से भी ज्यादा.
बड़ा दर्द छुपा है आपकी कविता में.end बहुत ही मार्मिक..
अब बापू को फिर से बुलाकर सदमे से ही क्यों सुलवा दे रहे हैं आप । अब तो चारों और फैले गोडसों को बन्दूक चलाने की भी आवश्यकता ही नहीं रहेगी ।
ReplyDeleteवर्तमान विद्रूपताओं की वास्तविकता का बखूबी चित्रण किया है आपने अपनी इस रचना में । बधाई...
आपके आदर्श
ReplyDeleteसीमित हैं सिर्फ़ किताबों तक,
आपको याद करते हैं
सिर्फ़ २ अक्टूबर और ३० जनवरी को,
जब आपकी समाधि पर
माला चढ़ा कर
समझ लेते हैं
अपने कर्तव्य की इति श्री.
katu satya
आपने कटु सत्य को उजागर किया है। सच है कि हम गांधी जी को और उनके बताए रास्ते को भूल कर तरह-तरह के संकटों से घिर गए गए हैं।
ReplyDeleteखुशनसीब थे तुम बापू
ReplyDeleteजो नहीं रहे देखने
अपने रामराज्य का सपना टूटते,
वरना बहुत दर्द होता,
गौडसे की चलाई हुई
गोली से भी bahut sunder aur sach kaha hai
आपके आदर्श
ReplyDeleteसीमित हैं सिर्फ़ किताबों तक,
आपको याद करते हैं
सिर्फ़ २ अक्टूबर और ३० जनवरी को,
जब आपकी समाधि पर
माला चढ़ा कर
समझ लेते हैं
अपने कर्तव्य की इति श्री.
बिलकुल सही कहा है आपने आज तो आदर्श सिर्फ किताबों में ही पढने मिलते है, देखने नहीं मिलते.....
कटु सत्य को उजागर करती रचना...
आज के कटु सत्य को उजागर करती एक मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति दिल को छू गयी।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना.कटु सत्य.आप की कलम को सलाम
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति दिल को छू गयी।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है आपने !
ReplyDeleteगरीबी हटाने के नाम पर
बनती हैं योजनाएं,
गरीब और गरीब हो जाता है
पर भारी हो जाती है और भी
ज़ेब नेता और नौकरशाहों की.
भ्रष्टाचार और मंत्रियों तथा नेताओं की मिलीभगत ने देश को विघटन के कगार पर लाकर खडा कर दिया है ! बापू ने देश पर सर्वस्व लुटा दिया था ! आज के नेता देश का सर्वस्व लूटने पर तुले हुए हैं ! शहीद दिवस पर बापू को भावभीनी श्रद्धांजलि एवं नमन !
मार्मिक और कडवा सच |
ReplyDeleteगांधीजी के नाम पर राजनीतिक लाभ लेने को सब तैयार
पर उनके पदचिन्हों पर चलने में सबको है ऐतराज |
बहुत अच्छी समसामयिक प्रस्तुति .गाँधीजी को विनम्र श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteहे राम !
ReplyDeleteफिर एक बार आओ बापू रचना के माध्यम से आपने कटु सत्य सामने रखे हैं
काश ! गांधीजी के चित्र की जगह विचार काम में आये होते …
कैलाश जी भाई साहब
श्रेष्ठ रचना के लिए आपको
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआज लोग नमन-नमन का राग तो अलापते हैं,परन्तु बापू के क़दमों का ,विचारों का अनुसरण करना नहीं चाहते.इसी लिए उन्हें पूजनीय बता कर चलता कर देते हैं.फिर वही होना है जैसा आजकल सब देख रहे हैं.
ReplyDeleteभाई कैलाश शर्मा जी काफ़ी मर्मस्पर्शी और बोधगम्य रचना है ये| बधाई स्वीकार करें बन्धुवर|
ReplyDeleteकैलाश जी ! आपकी रचना बहुत ही मर्मस्पर्शी है ..सही कहा बापू जी का दिल बहुत टूटता अपने रामराज्य में फ़ैली बदहाली देख कर... सादर
ReplyDeleteएक कडवे सच को उजागर करती रचना .... ऐसे भारत का सपना तो गाँधी जी ने नहीं देखा होगा :(
ReplyDeleteअच्छी सामयिक और सार्थक रचना के लिये कैलाश जी को मुबारकबाद।
ReplyDeletewaakai bahut zarurat hai BAPU ki....
ReplyDeleteएक कटु सत्य को उजागर करती सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteकटु सत्य को उजागर करती एक मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteगाँधीजी को विनम्र श्रद्धांजलि|
hila kar rakh diya sir...too good....bapu ko an mat hi bulayiye....bohot dukhi honge
ReplyDeleteगाँधी के देश से ही गाँधी विस्थापित है...
ReplyDelete...समसामयिक बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
गाँधी जी के नाम पर देश को लूट कर खाने वाले हर तरफ भरे हैं !
ReplyDeleteआपकी कविता के हर शब्द से देश का दर्द,देश के सपनों के उजड़ने का दर्द प्रवाहित हो रहा है !
काश, देश का ऐसा दुर्भाग्य नहीं होता !
वर्तमान का दर्द प्रखरता से अभिव्यक्त हुआ है सर, रचना में... आभार
ReplyDeleteपर सोचता हूँ जहां चहूँ ओर गोडसे घूम रहे हैं वहाँ बापू को बुलाना उचित होगा या नहीं...
खुशनसीब थे तुम बापू
ReplyDeleteजो नहीं रहे देखने
अपने रामराज्य का सपना टूटते,
वरना बहुत दर्द होता,
गौडसे की चलाई हुई
गोली से भी ज्यादा.
बहुत सुन्दर रचना ! गोडसे ने तो केवल उस शारीर को मारा था.... उस आत्मा का हनन तो हमारे समाज में आज भी हो रहा है ... और कर रहे हैं हम में से ही कुछ भेडिये ...
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ...समसामयिक...सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteअब बापू आकर क्या करेंगे? बेचारे के तन से आधी धोती भी उतारनी है क्या? पहले कपड़ों की कमी के चलते आधी धोती त्याग दी थी लेकिन अब तो तन पर कपड़े ही नहीं हैं तो बापू क्या करेंगे?
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है । अद्भुत भाव संजोय है आपने कैलाश जी । आभार !
ReplyDeleteगरीबी हटाने के नाम पर
ReplyDeleteबनती हैं योजनाएं,
गरीब और गरीब हो जाता है
पर भारी हो जाती है और भी
ज़ेब नेता और नौकरशाहों की.......
एकदम य़थार्थ....सच्चाई को वयां करती हुई रचना , बधाई.
प्रासंगिक मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..... बेहद सुंदर
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति, बधाई..
ReplyDeleteखुशनसीब थे तुम बापू
ReplyDeleteजो नहीं रहे देखने
अपने रामराज्य का सपना टूटते,
वरना बहुत दर्द होता,
गौडसे की चलाई हुई
गोली से भी ज्यादा.
Aah!Kaash Bapu usee karishme ko liye laut aayen!Aur koyi Godse dobara na ubhare...