बहुत दिनों बाद देखा
कुछ हमउम्र चेहरों को
और चौंक गया.
वक़्त का तूफ़ान
कुछ हमउम्र चेहरों को
और चौंक गया.
वक़्त का तूफ़ान
छोड़ गया कितने निशान
जो उभर आये चेहरों पर
झुर्रियां बन कर,
और हर पंक्ति
समाये एक इतिहास
अपने आप में.
भर गया मन अवसाद से
देख कर अपना अक्श
उनकी आँखों में,
लेकिन मेरा आईना
जिससे मैं रोज़ मिलता हूँ
मुझे कुछ और ही कहता रहा.
आज मुझे लगा
कि शायद
मेरा आईना
मुझसे झूठ बोलता है.
बहुत खूब..........इस दास्ताँ में कहीं बहुत गहरा सच है.........पर साहब आइना ही तो सच्चा है इस दौर में........वो वही दिखाता है जो हम देखना चाहते हैं |
ReplyDeleteवाह क्या खूब भावो को उकेरा है……………गज़ब की रचना।
ReplyDeleteआज मुझे लगा
ReplyDeleteकि शायद
मेरा आईना
मुझसे झूठ बोलता है.
...sab samay ka fer hai..
sundar rachna
बेहद अच्छे भाव कलमबद्ध किए हैं आपने
ReplyDeleteaaina kitna bhi bura ho... nazar aati anubhawon ki lakiren jhuth nahin kahti aur yahi dignity hai...
ReplyDeleteमन के विरोधाभासों को सलीके से उकेरा है।
ReplyDeleteमेरा आईना
ReplyDeleteमुझसे झूठ बोलता है.
बेबाक मुखर अभिव्यक्ति को सादर सम्मान .....संवेगात्मक कथ्य , भषा ,तथा शैली ,अनुपम है सर !
बधाईयाँ जी /
aina kitna sunder hai ..........jhoot bhi khubsurti se bolta hai , aaina mera ....jhoot bolta hai ...........bahut hi sunder prayog .
ReplyDelete3rd , ,4th para bahut pasand aaye .......man ke bhavo ko suder moti se ukera hai aapne . badhai .
http/sapne-shashi.blogspot.com
सुन्दर अभिवयक्ति....
ReplyDeleteजितने खूबसूरत शब्द हैं उनते ही उन्नत भावों से सजाया है. शब्द नहीं हैं मेरे पास बयान करने के लिए
ReplyDeletewah !!!
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
समय की लहर कितना बदल जाती है हमे...
ReplyDeleteरोज़ हमें हमारा अक्स दिखाने वाला आइना भी कहाँ यह महसूस कर पाता होगा!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत खूब सर!
ReplyDeleteसादर
भर गया मन अवसाद से
ReplyDeleteदेख कर अपना अक्श
उनकी आँखों में,
अतिसुन्दर बधाई की परिधि से बाहर .......
gahari peedha chhalak rahi hai in shabdon me..
ReplyDeleteबहुत गंभीर कविता... अंतिम पंक्तियाँ उद्वेलित कर देती हैं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से मन के भावो को उकेरा है..बधाई
ReplyDeleteसुना था आईने झूठ नहीं बोलते.... पर आपकी रचना ने तो आईने को झूठा बना दिया।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरती से उभारा है मनोस्थिति को .बेहतरीन शब्दो का प्रयोग, बधाई कैलाश जी
ReplyDeleteपढी हुई सी लग रही है ये रचना .. शायद आपने पहले कहीं प्रकाशित करवायी हो !!
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने। मेरे एक गीत की पंक्ति इस विचार से मेल खाती है.....
ReplyDeleteदिखने लगी जब अपनी झुर्रियाँ
कहता है ये कोई और है।
यथार्थ-बोध कराती गम्भीर और सम्वेदनशील रचना.
ReplyDeleteवक़्त का आईना ऐसा ही होता है.. बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteआइना भी कभी-कभी झूठ बोलता है।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी कविता।
wah ji waah
ReplyDeleteकई बार लगता है कि भगवान में भी क्या व्यवस्था की है कि हम अपना चेहरा नहीं देख सकते। यदि देखते होते तो बुढापे के साथ ही डर-डर कर मर जाते।
ReplyDelete@आदरणीय संगीता पुरी जी - शायद आपने फेस बुक पर पढ़ा हो जहाँ कुछ दिन पहले पोस्ट की थी. वैसे मैंने इसे कुछ दिन पहले ही लिखा है.
ReplyDeleteजी ..
ReplyDeleteसही कह रहे हैं आप ..
अब याद आया !!
गहन भाव…लाज़वाब रचना...
ReplyDeleteसंवेदन शील कथ्य....
ReplyDeleteउम्दा रचना सर...
सादर बधाई...
bahut acha likha hai apne..
ReplyDeleteआईने भी झूठ बोलते हैं
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteवाह! बहुत खरी खरी कविता...दरअसल आईना वही दिखाता है जो हम देखना चाहते हैं...
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने ! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
वक़्त का तूफ़ान
ReplyDeleteछोड़ गया कितने निशान.बहुत सुन्दर.
झूठ कौन बोल रहा है आइना या हमउम्र लोगों की आँखे
ReplyDeleteअगर आत्म विश्वास से भरा एक व्यक्तित्व आईना देखता है तो झूठ आईना नहीं बोलता शायद लोगों की आँखे अविश्वास से भरी होने के कारण सच बोल नहीं पाती ....
आइना कभी कभी झूठ भी बोलता है ...
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletebahut hi gahan chintan ke saath gambheer baat likhi hai aapne.
aaj jana ki aaina bhi waqt ki tarah jhooth bolta hai.
bahut hi umda post
sadar naman ke saath
poonam
wese mene suna tha ki aina sach bolta hai per aapka aina to juth bolta hai..ha ha ha..
ReplyDeletebahut badhiya....
jai hind jai bharat
सच की स्वीकारोक्ति ..........अदभुद रचना !
ReplyDeleteआज मुझे लगा
ReplyDeleteकि शायद
मेरा आईना
मुझसे झूठ बोलता है
sundar prastuti..
वाह कोमल भावो को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है।
ReplyDeleteअपना असली अक्स तो दुनिया की सही तस्वीर देखने से नजर आता है।
ReplyDeleteबहुत खूब व सच का बयान करती रचना।
खूब लिखा है |
ReplyDeleteआशा
बहुत दिनों बाद देखा
ReplyDeleteकुछ हमउम्र चेहरों को
और चौंक गया.
वक़्त का तूफ़ान
छोड़ गया कितने निशान
जो उभर आये चेहरों पर
झुर्रियां बन कर,
और हर पंक्ति
समाये एक इतिहास
अपने आप में.
सर बहुत अच्छी कविता बधाई |
शायद आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी हो!
ReplyDeleteसूचनार्थ!
Bahoot hi sunder rachana ...
ReplyDeleteजिसकी रचना इतनी सुंदर है तो उसके वो कितने अच्छे होंगे
ReplyDeleteमेरा आईना भी मुझसे झूठ बोलने लगा है,
ReplyDeleteमेरे चहरे की मुस्कान को आँखों की चमक से तोलने लगा है.