छुपा के रखा है
दिल के एक कोने में
तुम्हारा प्यार,
शायद ले जा पाऊँ
आख़िरी सफ़र में
अपने साथ
बचाकर
सब की नज़रों से.
२)
बहुत तेज सुनायी देती है
दिल की धड़कन
और साँसों की सरसराहट
अकेले सूने कमरे में.
कौन कहता है
कि अकेलापन
अकेला होता है.
३)
डर नहीं लगता
मौत के साये से,
डर तो यह है
यह ज़िंदगी
जियें कैसे.
४)
भुलाने को उनको
रख दीं उनकी यादें
बंद करके लिफ़ाफ़े में
किताबों के बीच,
पर क्या करें
रख नहीं पाते
अपने से दूर
वह किताब
कभी बुक शैल्फ पर.
५)
मौन पसरा हुआ अँधेरे में
अश्रु ठहरे हुए हैं पलकों पर,
कैसे निभाऊँ वादा
दिया तुमको,
कैसे समझाऊँ दर्द को अपने
जो आतुर है
बिखरने को
मेरे गीतों में.
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक पर हमें तो पहली वाली भा गयी ....मन फ्रेश हो गया
ReplyDeleteमौन पसरा हुआ अँधेरे में
ReplyDeleteअश्रु ठहरे हुए हैं पलकों पर,
कैसे निभाऊँ वादा
दिया तुमको,
सभी क्षणिकाये एक से बढ़ एक कैलाश जी
गहरे अहसासों का अनुभव कराती हुई
एक से बढ़कर एक क्षणिकाएं....लाजवाब...
ReplyDeletebahut sahi...
ReplyDeleteloved the 4th one :)
Wah! Behtareen kshanikayen!
ReplyDeleteक्या बात है , ख़यालात की उलझाये नहीं उलझते , सुलझते ही जाते हैं .... प्रभावशाली शिल्प ,.शुक्रिया सर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं हैं सर,
ReplyDeleteसभी एक से बढ़ कर...
सादर...
बड़े ही रोचक ढंग से बतायी गयी मन की बातें।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ बहुत ही अच्छी हैं सर!
ReplyDeleteसादर
भुलाने को उनको
ReplyDeleteरख दीं उनकी यादें
बंद करके लिफ़ाफ़े में
किताबों के बीच,
पर क्या करें
रख नहीं पाते
अपने से दूर
वह किताब
कभी बुक शैल्फ पर... kaise rakha ja sakta hai bhala !
पाचों क्षणिकाएं बढ़िया है.
ReplyDeleteसभी एक से बढकर एक है पर चौथे नंबर वाली बेहतरीन लगी. सादर.
ReplyDeleteडर नहीं लगता
ReplyDeleteमौत के साये से,
डर तो यह है
यह ज़िंदगी
जियें कैसे.
सभी क्षणिकाएं बेहतरीन हैं....
मौन पसरा हुआ अँधेरे में
ReplyDeleteअश्रु ठहरे हुए हैं पलकों पर,
मन को भिंगोने वाला बिम्ब।
सभी क्षणिकाएं दिल को छू गईं...
ReplyDeleteबेहतरीन
आभार.....
डर नहीं लगता
ReplyDeleteमौत के साये से,
डर तो यह है
यह ज़िंदगी
जियें कैसे.
भावुक कर गयीं क्षणिकाएँ ...
बहुत तेज सुनायी देती है
ReplyDeleteदिल की धड़कन
और साँसों की सरसराहट
अकेले सूने कमरे में.
कौन कहता है
कि अकेलापन
अकेला होता है.
बहुत ही खूब...कशिशपूर्ण क्षणिकाएं.
क्षणिकाएं दिल को छू गईं...
ReplyDeleteमौन पसरा हुआ अँधेरे में
ReplyDeleteअश्रु ठहरे हुए हैं पलकों पर
दिल को भावुक कर गयीं क्षणिकाएँ
हृदयस्पर्शी क्षणिकाएं!
ReplyDeleteखुबसूरत..क्षणिकाएं...
ReplyDeleteडर नहीं लगता
ReplyDeleteमौत के साये से,
डर तो यह है
यह ज़िंदगी
जियें कैसे...
har nakam ek se badhkar ek hai sir ji...
jai hind jai bharat
बहुत बढिया, बधाई।
ReplyDeleteछुपा के रखा है
ReplyDeleteदिल के एक कोने में
तुम्हारा प्यार,
शायद ले जा पाऊँ
आख़िरी सफ़र में
अपने साथ
बचाकर
सब की नज़रों से.
सुभानाल्लाह..........ये सबसे बढ़िया और भी सभी अच्छी हैं|
behtreen abhivaykti....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं ......
ReplyDeleteदिल की गहराई में क्या है यह खुद दिल भी नहीं जानता... कभी कभी कुछ थोड़ा सा कोई कहला जाता है... हृदयस्पर्शी कथ्य!
ReplyDeleteडर नहीं लगता
ReplyDeleteमौत के साये से,
डर तो यह है
यह ज़िंदगी
जियें कैसे.
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं ...आभार ।
लाजवाब क्षणिकाएं..बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteसभी क्षणिकाये एक से बढ़ एक
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रयास !!
आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं!!
मन के भेद को चुपके से बयाँ करती खूबसूरत क्षनिकाएं |
ReplyDeleteमौन पसरा हुआ अँधेरे में
ReplyDeleteअश्रु ठहरे हुए हैं पलकों पर,
कैसे निभाऊँ वादा.bhut achchi pankti.thanks.
ReplyDelete♥
आदरणीय कैलाश जी भाईसाहब
प्रणाम !
आप जिस अधिकार से गीत और छंदबद्ध काव्य का सृजन करते हैं , उसी अधिकार से क्षणिकाएं तथा मुक्त छंद की कविताएं भी लिखते हैं
वास्तव में यहां प्रस्तुत क्षणिकाओं में से किसी एक को चुनना बहुत कठिन है … सभी श्रेष्ठ हैं ।
पहली क्षणिका के संदर्भ में कहूंगा -
छुपाए रखिए उनका प्यार सीने में संजीवनी की तरह
…और बन जाए यही जन्म सौ जन्मों के बराबर !
जाना कहीं नहीं है … :)
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सभी लघु कविताएं गहन भावों को अभिव्यक्त कर रही हैं।
ReplyDeleteआपकी रचनाओं में अनुभव के मोती चमकते हैं।
भावपूर्ण क्षणिकाएं।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ एक से बढ़कर एक हैं ! अति सुंदर !
ReplyDeleteडर नहीं लगता
ReplyDeleteमौत के साये से,
डर तो यह है
यह ज़िंदगी
जियें कैसे.
सारी क्षणिकाएँ एक से बढ़ कर एक है. बहुत ही गहरी और संवेदनशील. बधाई इस प्रस्तुति के लिये.
aaj ke jivan ka sach hai ye...
ReplyDeleteडर नहीं लगता
मौत के साये से,
डर तो यह है
यह ज़िंदगी
जियें कैसे.
sabhi kshanikaayen behtareen, badhai.
एक अच्छी और गहन रचना. की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeletebahut acchi kshanikayen ek se badhkar ek..........1,2, 5 bahut hi acchi lagi . badhai ho aapko .
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं बहुत बढ़िया लगा ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ हृदयस्पर्शी । आभार ।
ReplyDeleteभावमयी क्षणिकाएं,बहुत अच्छे भावों को शब्दबद्ध किया है आपने !
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
बहुत खूब ... पाँचों जबरदस्त हैं ... और उनकी यादों वाली तो बस कतल है कैलाश जी ...
ReplyDeleteबड़े ही रोचक ढंग से अपने मन के भावो को व्यक्त किया है सभी क्षणिकाएं,बहुत सुन्दर है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसभी क्षणिकाओं में छिपी दौलत तो हमने देख ली.
ReplyDeleteकैलाश जी नमस्कार,क्षणिकायें मन के भावो को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने ।
ReplyDeleteअहसासों और आरजुओं का अद्भुत चित्रण किया है आपने कैलाश सर.. :)
ReplyDeletesabhi chanikaye bahut hi sundar bhavatmak hai..
ReplyDeleteati uttam