शाम भी शाम सी नही
गुज़री,
रात भी याद में नही गुज़री।
आज भी हम खड़े रहे दर पर,
तू मगर राह से नही गुज़री।
कौन किसका हबीब हो पाया,
ज़िंदगी है रक़ीब सी गुज़री।
दर्द ने राह क्यूँ वही पकड़ी,
राह जिस पर ख़ुशी रही ठहरी।
तू न मेरी नज़र समझ पाया,
बात इतनी भी थी नही गहरी।
Bahut badhiya.....
ReplyDeleteBahut sunder....sir
ReplyDeleteBahut sunder....sir
ReplyDeleteवाह ! इंतज़ार की कसक लिये बेहद उम्दा प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-11-2015) को "ज़िंदगी है रक़ीब सी गुज़री" (चर्चा-अंक 2164) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteबढ़िया
ReplyDeleteबहुत खूब |
ReplyDeleteबहुत ही सुंदरप्रस्तुति हे आदरणीय, आपको बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteवाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना। बहुत पसंद आई मुझे।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जी |
ReplyDeleteदर्द ने राह क्यूँ वही पकड़ी,
ReplyDeleteराह जिस पर ख़ुशी रही ठहरी...बहुत बढ़िया !
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
दर्द ने राह क्यूँ वही पकड़ी,
ReplyDeleteराह जिस पर ख़ुशी रही ठहरी।
शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने आदरणीय शर्मा जी ! आप ग़ज़ल भी लिखते हैं , अच्छा लगा
आज भी हम खड़े रहे दर पर,
ReplyDeleteतू मगर राह से नही गुज़री।
बहुत ख़ूब
Bahut badhiya Kailashji!
ReplyDeleteतू न मेरी नज़र समझ पाया,
ReplyDeleteबात इतनी भी थी नही गहरी।
बातों को समझ पाना भी सब के बस की बात नहीं. सुंदर भावपूर्ण कविता.
आज भी हम खड़े रहे दर पर,
ReplyDeleteतू मगर राह से नही गुज़री।
क्या कहने.. बहुत सुन्दर..!
ब्लॉग पर लौट आया हूँ.. बहतु दिनों के बाद ब्लॉग भ्रमण कर रहा हूँ.. नयी रचना पोस्ट की है.. एक बार जरूर भ्रमण कर मार्गदर्शन करें..!
‘कौन किसका हबीब हो पाया,
ReplyDeleteज़िंदगी है रक़ीब सी गुज़री।’
जि़ंदगी की हक़ीकत को बयां करने का ख़ूबसूरत अंदाज़ भा गया ।
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteतू न मेरी नज़र समझ पाया,
ReplyDeleteबात इतनी भी थी नही गहरी।
वाह , बेहद खूबसूरत मन को छूने वाली ग़ज़ल है यह ! बधाई भाई जी
बहुत खूब ।
ReplyDeleteThanks for sharing this poetry.
ReplyDeletePoetry and Status