कुछ
दर्द, कुछ अश्क़,
धुआं सुलगते अरमानों का
ठंडी निश्वास धधकते अंतस की,
तेरे नाम के साथ
छत की कड़ियों की
धुआं सुलगते अरमानों का
ठंडी निश्वास धधकते अंतस की,
तेरे नाम के साथ
छत की कड़ियों की
अंत हीन
गिनती,
बन कर रह गयी ज़िंदगी
एक अधूरी पेन्टिंग
एक धुंधले कैनवास पर।
बन कर रह गयी ज़िंदगी
एक अधूरी पेन्टिंग
एक धुंधले कैनवास पर।
*****
तोड़ने
को तिलस्म मौन का
देता आवाज़ स्वयं को
अपने नाम से,
गूंजती हंसी मौन की
देखता मुझे निरीहता से
बैठ जाता फ़िर पास मेरे मौन से।
देता आवाज़ स्वयं को
अपने नाम से,
गूंजती हंसी मौन की
देखता मुझे निरीहता से
बैठ जाता फ़िर पास मेरे मौन से।
...©कैलाश शर्मा
मौन जिंदगी का अंतहीन दर्द।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-11-2015) को "मैला हुआ है आवरण" (चर्चा-अंक 2175) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद संदीप उन्नीकृष्णन का ७ वां बलिदान दिवस , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार...
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुती...
ReplyDeleteWaaaah bht hi badhiya....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति, एकांत भी कभी कभी कितना भारी हो जाता है।
ReplyDeleteEk hi sabd - UTTAM..
ReplyDeleteEk hi sabd - UTTAM..
ReplyDeleteवाह, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसुंदर रचना बधाई कैलाश शर्मा जी
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना।अति सुन्दर सर।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना।अति सुन्दर सर।
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, आभार।
ReplyDeleteये अकेलापन है जो इतनी गहन अनुभूति देता है .... मार्मिक
ReplyDeleteतोड़ने को तिलस्म मौन का
ReplyDeleteदेता आवाज़ स्वयं को
अपने नाम से,
गूंजती हंसी मौन की
देखता मुझे निरीहता से
बैठ जाता फ़िर पास मेरे मौन से ... atyant prabhavshali prastuti
वाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत उम्दा |
ReplyDeleteतोड़ने को तिलस्म मौन का
ReplyDeleteदेता आवाज़ स्वयं को
अपने नाम से,
गूंजती हंसी मौन की
देखता मुझे निरीहता से
बैठ जाता फ़िर पास मेरे मौन से।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय शर्मा जी !
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
बेहद सुंदर रचना ।
ReplyDeleteBahut sunder kavita hai sir.
ReplyDeleteवाह.बहुत खूब,सुंदर अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteएक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html
bahut sundar ..
ReplyDeleteVisit Digitech For mod Apk best knowledge
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