कुछ रंग होली के
कितनी भी कोशिश करने पर
धुल नहीं पाते
उम्र भर.
कितनी होली आयीं,
कितने रंग लगे,
पर कोई भी
छुपा नहीं पाया
उस रंग को,
और सभी धुल गए
होली के जाते ही.
कोई भी रंग
छू नहीं पाया
अंतस को.
अब तो हर होली पर,
देख कर आइने में
वही पुराना रंग,
मना लेता हूँ
अपनी होली.
कितनी भी कोशिश करने पर
धुल नहीं पाते
उम्र भर.
कितनी होली आयीं,
कितने रंग लगे,
पर कोई भी
छुपा नहीं पाया
उस रंग को,
और सभी धुल गए
होली के जाते ही.
कोई भी रंग
छू नहीं पाया
अंतस को.
अब तो हर होली पर,
देख कर आइने में
वही पुराना रंग,
मना लेता हूँ
अपनी होली.
कितनी होली आयीं,
ReplyDeleteकितने रंग लगे,
पर कोई भी
छुपा नहीं पाया
उस रंग को,
और सभी धुल गए
होली के जाते ही.
कोई भी रंग
छू नहीं पाया
अंतस को.
बहुत भावपूर्ण रचना... कुछ रंग होते ही हैं ऐसे की तन के साथ-साथ मन को भी भिगो जाते हैं जीवन भर के लिए फिर कोई दूसरा रंग उसे छू भी नहीं पाता.. .. सुन्दर अभिव्यक्ति...
कहते हैं न प्रीत जितनी पुरानी होगी रंग उतना चोखा होगा आपको भी उस पुराने रंग से इतना लगाव हो गया है कि-
ReplyDeleteकोई भी रंग छू नहीं पाया
अंतस को
क्या खूब कहा है! होली और रंग की एक विकट किन्तु सर्वाधिक पाई जानेवाली स्थिति।
ReplyDeleteyaadon ke rang bade pakke hain , aaj tak saath hain
ReplyDeleteकोई भी रंग
ReplyDeleteछू नहीं पाया
अंतस को....
जो अंतस पर चढ़ जाये वो रंग सबके पास नहीं होता है । लेकिन जिसके अंतस पर किसी का रंग चढ़ा हुआ है , वही सबसे खुशनसीब भी है ।
.
bahut khubsurat bhav....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता.
ReplyDeleteसादर
देख कर आइने में
ReplyDeleteवही पुराना रंग,
मना लेता हूँ
अपनी होली.
बहुत खूबसूरत एहसास ...सोच रही हूँ कि कैसा होगा वो रंग जो अब तक रंग है अंतस ...
बहुत सुन्दर कविता और वह ना धुलने वाला सुन्दर अहसास .. सच है कि सोच राहें है कि कैसा होगा वह रंग.. अद्भुत सुन्दर
ReplyDeleteसुंदर कविता बधाई सर
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण कविता |
ReplyDeleteबधाई
आशा
कोई भी रंग
ReplyDeleteछू नहीं पाया
अंतस को....
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
रंग जो अंतस को रंग जाए . और फिर अमिट रहे . अब आज के दौर में तो मै यही कहूँगा की फैशन के दौर में गारंटी का क्या काम .
ReplyDeleteहोली के रंगों के रंगारंग माहौल के पूर्व ही अपने अंतस के रंग का भावपूर्ण चित्रण ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव प्रवाह.
ReplyDeleteअंतस को रंगने वाले रंग कहाँ छूटते हैं.
सलाम.
बहुत ही सुन्दर भाव, बधाई
ReplyDeleteओह ! होली आ गई । दिन कितनी जल्दी जल्दी बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता ।
ReplyDelete"कितनी होली आयीं,
कितने रंग लगे,
पर कोई भी
छुपा नहीं पाया
उस रंग को,
और सभी धुल गए
होली के जाते ही.
कोई भी रंग
छू नहीं पाया
अंतस को."
बडी गहरी कविता है ।
होली पर सुंदर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई ।
और सभी धुल गए
ReplyDeleteहोली के जाते ही.
कोई भी रंग
छू नहीं पाया
अंतस को.
Aah!Behad bhavpoorn!
पुराने रंगों की छाप गहरी होती है स्मृति में।
ReplyDeleteप्रवीण जी ने सही कहा है। बहुत भावमय रचना। शुभकामनायें।
ReplyDeleteहोली पर सुंदर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई ।
ReplyDeleteहोली के जाते ही.
ReplyDeleteकोई भी रंग
छू नहीं पाया
अंतस को.
भाव पूर्ण सोचने पर मजबूर करती हुई रचना
bahut hi suder bhav se purn rachna .........
ReplyDeletekoi bhi rang chhu nahi paya ants ko ........ bahut sunder .....
ReplyDeleteअब तो हर होली पर,
ReplyDeleteदेख कर आइने में
वही पुराना रंग,
मना लेता हूँ
अपनी होली
सुंदर भावपूर्ण रचना, कैलाश जी !
कैलाश भाई,
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
Adarniya sharma sahab ,
ReplyDeletepranam
rang to prakriti ne saheje hain ,vo sthayi hote hain , bas mijaj ko unake hisab se badalna hota hai . badal lenge . ojpurn abhivyakti. holy mobarak .
अब तो हर होली पर,
ReplyDeleteदेख कर आइने में
वही पुराना रंग,
मना लेता हूँ
अपनी होली।
स्मृतियों का रंग उम्र भर नहीं छूटता।
इसे पढ़कर हर पाठक अपने अतीत की यात्रा अवश्य कर लेगा।
होली की बधाई। रचना काफी अच्छी है।
ReplyDeleteसच है कुछ रंग ऐसे होते हैं जो जिंदगी भर नही मिटते .... उनका रंग बीती यादो की यादे मेटने नही देता ...
ReplyDeleteहोली के रंगों का भावपूर्ण चित्रण ।
ReplyDeleteKarayolu yurtdışı kargo
ReplyDeleteDenizyolu yurtdışı kargo
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