यदि चाहो सदैव को प्रिय मैं रुक जाऊं,
तो पहले समय पखेरू को बंदी कर लो.
तो पहले समय पखेरू को बंदी कर लो.
होता आया है वर्तमान बंदी सदैव,
शोभित करता वह भूतकाल की कारा है.
कब तक उठने से रोकोगी इस पर्दे को,
जिसने भविष्य का कलुषित रूप निखारा है.
यदि चाहो भविष्य का रूप सदां आकर्षक हो,
जाती संध्या को रुकने को सहमत कर लो.
है दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
पूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में.
यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो.
यह प्रेम न परिणित हो अपना कुंठाओं में,
इसलिए इसे इतना ही सीमित रहने दो.
वह मंज़िल जो निश्छल उर को शंकित कर दे,
उससे अच्छा अविराम डगर पर चलने दो.
नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
इस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.
अच्छी, भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteयदि चाहो भविष्य का रूप सदां आकर्षक हो,
ReplyDeleteजाती संध्या को रुकने को सहमत कर लो...
बहुत ही सुन्दर पोस्ट, सुन्दर शब्द संयोजन और भावों से ओतप्रोत.........
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
इसी प्रार्थना भर में अश्रु रुके हुये हैं। बहुत ही सुन्दर कविता।
ReplyDeleteनयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
ReplyDeleteइस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.
वाह क्या भाव संजोये हैं…………बहुत सुन्दर रचना।
यदि चाहो भविष्य का रूप सदां आकर्षक हो,
ReplyDeleteजाती संध्या को रुकने को सहमत कर लो.
क्या खूब पंक्तिया
बधाई
शब्दों का उपवन खिला दिया है आपने कैलाश जी,
ReplyDeleteक्या खूब है भाव प्रवणता।
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नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
इस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.
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अभिनव प्रयोग!!
नयनों के काजल से कपोल न कलुषित हों,
ReplyDeleteइस लिये अश्रु को रुकने को सहमत कर लो.
बहुत ही सुन्दर ।
सुन्दर गीत
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कविता। धन्यवाद|
ReplyDeleteसुंदर गीत बहुत बहुत बधाई और होली की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
है दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
ReplyDeleteपूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में.
बहुत ही भावासिक्त गीत....
बहुत सुन्दर !!
ReplyDeleteहै दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
ReplyDeleteपूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में
सुंदर .... भावाभिव्यक्ति... अंतर्मन के भाव ..
अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
ReplyDeleteमेरा लफ़्ज़-लफ़्ज़ हो आईना तुझे आईने में उतार लूँ.....
...बहुत बढ़िया सर!
यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
ReplyDeleteतो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो....
वाह!! बहुत खूब ... बेहतरीन रचना कैलाश जी ...
kamal karte ho kailash babu...
ReplyDeleteamazing work...this line is awesome..
कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं
अत्युत्तम रचना.
ReplyDeleteकैलाश भाई सुंदर छन्द बद्ध प्रस्तुति बरबस मन को मोहित करने में सक्षम है| धाराप्रवाह भावाभिव्यक्ति वो भी सरस और सरल शब्दों के साथ अन्य विशेषता है इस रचना की| बधाई भाई साब|
ReplyDeleteसही है यदि फूलों की आकांक्षा है तो काँटों का भी स्वागत करना होगा, सुंदर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई !
ReplyDeleteसशक्त रचना। बधाई।
ReplyDeleteहै दिवास्वप्न शास्वत बंधन उर का,
ReplyDeleteपूर्णत्व मिलन का आस अधूरी रहने में
कैसे अधरों की मुस्कानें शास्वत मानूं,
जीवन आधी सृष्टि का आंसू ढलने में.
यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो
बहुत खूब, सुंदर भावपूर्ण रचना !
यह प्रेम न परिणित हो अपना कुंठाओं में,
ReplyDeleteइसलिए इसे इतना ही सीमित रहने दो.
वाह क्या भाव है ...
यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से,
ReplyDeleteतो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो
लाजवाब अभिव्यक्ति ।
इतना खूबसूरत कि बार-बार कविता का आनंद लिया.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत गीत ! आभार.
ReplyDeleteहोली के पावन पर्व की आपको अग्रिम शुभकामनाएं.
बेहद सशक्त और भावपूर्ण रचना .
ReplyDeleteआभार ...
यदि नेह तुम्हें खिलते गुलाब की डाली से तो काँटों से बिंधने को कर सक्षम कर लो.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई
thanks yaar for this buetiful creation
ReplyDeleteसुंदर गीत बहुत बहुत बधाई और होली की शुभकामनाएं |
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
ReplyDeleteबहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
बेहद खूबसूरत...
ReplyDeleteबेहद खुबसुरत और भावपुर्ण रचना। आभार। होली की शुभकामनाएॅ।
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी
ReplyDeleteरंग भरा स्नेह भरा अभिवादन !
यदि चाहो सदैव को प्रिय मैं रुक जाऊं,
तो पहले समय पखेरू को बंदी कर लो
बहुत सुंदर और मनभावन है आपकी गीत रचना … पढ़ कर आनन्द आ गया । आपको पढ़ना हमेशा ही मुझे अच्छा लगता है ।
आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई !
♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !♥
होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार