Friday, July 01, 2011

कान्हा ! राधा से क्यों रूठे ?

सुना रहे मीठी मुरली धुन,
मुग्ध किया श्रष्टि का कन कन,
तक रहि राह तुम्हारी राधा,
कह नहिं पाती तुमको झूठे,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

कितनी व्यथित प्रेम में राधा,
बने  प्रेम  न पथ  में  बाधा,
रोक लिये हैं अश्रु नयन में,
होठों से कुछ  बात  न फूटे,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

चाहे बृज को तुम बिसराओ,
धर्म ध्वजा जग में फहराओ,
मेरा श्याम  बसा है  मन में,
रहें  नयन   दर्शन को भूके,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

सहती सब सखियों के ताने,
प्रेम  मेरा  बस   तू ही जाने,
आती याद तुम्हें राधा क्या,
मुरली जब होठों पर रखते,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

राधा का तो तन कान्हा है,
राधा का मन भी कान्हा है,
मैं हूँ दूर भला कब तुम से,
प्रेम जगत के स्वप्न न झूठे,
कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

43 comments:

  1. मुरली भी छोड़ी कृष्णा ने, राधा अपने ग्राम |
    याद तुम्हारी सदा जगाये, hardam आठो याम ||

    आभार,

    अच्छी-प्रस्तुति ||

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  3. राधा और कृषण के अमर प्रेम को अनूठे शब्दों में ढाला है......रूठना मनाना तो प्रेम के खेल हैं........शानदार अभिव्यक्ति|

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  4. बहुत अच्छी रचना लगी.
    वाह.क्या बात है.

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  5. सहती सब सखियों के ताने,
    प्रेम मेरा बस तू ही जाने,
    आती याद तुम्हें राधा क्या,
    मुरली जब होठों पर रखते,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

    राधा के मनोभावों को सुन्दर शब्द दिए हैं ... खूबसूरत रचना

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  6. चाहे बृज को तुम बिसराओ,
    धर्म ध्वजा जग में फहराओ,
    मेरा श्याम बसा है मन में,
    रहें नयन दर्शन को भूके,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

    बेहतरीन भावमय करते शब्‍द ...अनुपम प्रस्‍तुति ।

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  7. बड़े भाई को एक शास्वत प्रेम रचना के लिए नमन

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  8. राधा और कान्हा का प्रेम शाश्वत है... इसके एक भाव को आपने बहुत मनहर ढंग से प्रस्तुत किया है.. आभार!

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  9. beautiful pic with a nice poem

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  10. कितनी व्यथित प्रेम में राधा,
    बने प्रेम न पथ में बाधा,
    रोक लिये हैं अश्रु नयन में,
    होठों से कुछ बात न फूटे,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?
    mann radha krishnmay ho uthta hai

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  11. राधा का तो तन कान्हा है,राधा का मन भी कान्हा है,...../
    भक्तिमय काव्य -रस निरंतर प्रवाहित है , पढ़ता जाये ,मन भीगता जाये .... मुबारक हो , /

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  12. राधा कृष्ण के प्रेम पर इतनी सुन्दर प्रस्तुति, पढ़कर आनन्द आ गया।

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  13. राधा का तो तन कान्हा है,
    राधा का मन भी कान्हा है,

    राधे राधे ...राधा कृष्ण की सुन्दर प्रेमपूर्ण प्रस्तुति ..रूठना मनाना तो भौतिक है ..राधा कृष्ण में और कृष्ण में राधा है

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  14. राधा का तो तन कान्हा है,
    राधा का मन भी कान्हा है

    शाश्वत, मुग्ध प्रेम पर सुन्दर प्रस्तुति

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  15. बहुत खूब अच्छी लगी राधा की प्रेममयी रचना , बधाई

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  16. राधा का तो तन कान्हा है,
    राधा का मन भी कान्हा है,

    बहुत सुंदर भाव.... मनमोहक रचना

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  17. कितनी व्यथित प्रेम में राधा,
    बने प्रेम न पथ में बाधा,
    रोक लिये हैं अश्रु नयन में,
    होठों से कुछ बात न फूटे,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?
    Pooree rachana behad sundar hai,lekin ye panktiyan bahuthee pasand aayeen!

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  18. राधा का तो तन कान्हा है,
    राधा का मन भी कान्हा है,
    मैं हूँ दूर भला कब तुम से,
    प्रेम जगत के स्वप्न न झूठे,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?
    bahut hi sundar aur bhavpoorn rachna...

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  19. radha krishan ke shawhaswatprem ka sunder chitran kiya hai aapne...........

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  20. वाह!! बहुत उम्दा रचना...भक्तिमय प्रेम!!!

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  21. राधा का तो तन कान्हा है,
    राधा का मन भी कान्हा है,
    मैं हूँ दूर भला कब तुम से,
    प्रेम जगत के स्वप्न न झूठे,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति मन प्रसन्न हो गया...धन्यवाद

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  22. krisn,radha ka prem to servbyapi hai .bahut sunder bhav liye anoothi kavitaa likh daali aapne.pic.bhi bahut sunder lagaai hai badhaai sweekaren.

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  23. रोक लिये हैं अश्रु नयन में,
    होठों से कुछ बात न फूटे,

    राधा का प्रेम है ही अनूठा भाई|

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  24. राधा कृष्ण के इस अनुपम प्रेम के माध्यम से भक्त और भगवान के बीच सम्बन्ध परिभाषित हुए. सुँदर भाव प्रवण रचना

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  25. बहुत मनमोहक रचना...
    राधाकृष्ण मय हो गया मन ............पवित्र प्रेम की सुन्दर प्रस्तुति

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  26. राधा कृष्ण के अलौकिक प्रेम में भीगी भावभीनी रचना...

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  27. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना ! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  28. चाहे बृज को तुम बिसराओ,
    धर्म ध्वजा जग में फहराओ,
    मेरा श्याम बसा है मन में,
    रहें नयन दर्शन को भूके,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे ?

    भक्ति भावना से आपूरित सुंदर गीत के लिए आभार।

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  29. राधा-किसन के प्रेम रस में रसी-बसी मन मोहक रचना ने आनंदित कर दिया.

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  30. आज तो भक्ति रस बहा दिया आपने ....शुभकामनायें भाई जी !

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  31. .सुन्दर भाव लिए रचना की बहुत सुन्दर प्रस्तुति............

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  32. बहुत सुन्दर रचना ... पर कभी कभी लगता है क्या सचमें कान्हा राधा से रूठे हैं ... जब राधा झी कान्हा है कान्हा ही राधा है तो क्या रूठना क्या मनाना ..

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  33. बहुत सुंदर रचना।
    क्या बात है।

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  34. सुन्दर शब्दों से स्रजन किया है राधा के रूड्ने के भाव को.

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  35. कितनी व्यथित प्रेम में राधा,
    बने प्रेम न पथ में बाधा,
    रोक लिये हैं अश्रु नयन में,
    होठों से कुछ बात न फूटे..
    सुन्दर अति सुन्दर ....अलौकिक प्रेम की कोमल एवं भावपूर्ण प्रस्तुति....श्री राधे.....शुभ कामनाएं एवं हार्दिक अभिनन्दन...!!!

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  36. राधा का तो तन कान्हा है,
    राधा का मन भी कान्हा है,
    मैं हूँ दूर भला कब तुम से,
    प्रेम जगत के स्वप्न न झूठे,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?...

    बेहतरीन गीत के लिए बहुत- बहुत बधाई स्वीकार करें ।

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  37. आदरणीय श्री कैलाश सी शर्माजी

    सुना रहे मीठी मुरली धुन,
    मुग्ध किया श्रष्टि का कन कन,
    तक रहि राह तुम्हारी राधा,
    कह नहिं पाती तुमको झूठे,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?

    बहुत सुन्दर रचना शेयर करने के लिये बहुत बहुत आभार,

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  38. anoothe prem ko adbhut shabdon me bandha hai aapne...sunder bhav

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  39. कितनी व्यथित प्रेम में राधा,
    बने प्रेम न पथ में बाधा,
    रोक लिये हैं अश्रु नयन में,
    होठों से कुछ बात न फूटे,
    कान्हा ! राधा से क्यों रूठे?..
    Divine and selfless love of Radha and Krishna beautifully depicted.

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