अन्तर्मन में तू रम जाये,
सांस सांस तेरा गुण गाये।
कण कण में तुझको मैं देखूँ,
नज़र पराया कोई न आये।
द्वेष न हो कोई भी मन में,
धर्मों में अंतर न पायेँ।
यहां अज़ान आरती के स्वर,
आसमान में घुलमिल जायें।
इंसा को इंसान ही समझें,
धर्म जाति का भेद नहीं हो।
ईद मुबारक़ हिन्दू बोलें,
मुस्लिम होलीरंग में तर हों।
भूखा कभी न सोए बचपन,
माँ तन बेचे न रोटी को।
नहीं दिवाली जगमग होगी,
गर कुटिया तरसे दीपक को।
बुद्धि दो, प्रभु सब पहचानें
अंश तेरा ही है कण कण में।
धरा स्वर्ग सम बन जाएगी,
भाव जगें ये गर जन जन में।
सुन्दर भाव लिए अच्छी सीख देती प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबुद्धि दो, प्रभु सब पहचानें
ReplyDeleteअंश तेरा ही है कण कण में।
धरा स्वर्ग सम बन जाएगी,
भाव जगें ये गर जन जन में।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
अत्यंत पावन आकांक्षा है!
ReplyDeleteआमीन.........खुदा करे ये दुआ ज़रूर कबूल हो|
ReplyDeleteद्वेष न हो कोई भी मन में,
ReplyDeleteधर्मों में अंतर न पायेँ।
यहां अज़ान आरती के स्वर,
आसमान में घुलमिल जायें।
बहुत ही बढ़िया सर।
सादर
नहीं दिवाली जगमग होगी,
ReplyDeleteगर कुटिया तरसे दीपक को।
बधाई ||
बुद्धि दो, प्रभु सब पहचानें
ReplyDeleteअंश तेरा ही है कण कण में।
धरा स्वर्ग सम बन जाएगी,
भाव जगें ये गर जन जन में। ... bas maine haath jod liye hain
विश्व के कल्याण से बड़ी कोई आकांक्षा नहीं.. अच्छी कविता..
ReplyDeleteखूबसूरत
ReplyDeleteयही कामना हम सब करते है सुंदर और पवित्र भाव ......
ReplyDeleteye dua jarur kabul hogi :)
ReplyDeleteaameen !!
बहुत ही अच्छी आकांक्षा| पवित्र भाव|
ReplyDeleteलाजवाब बहुत ही सुन्दर ...
ReplyDeleteहम सब यही आशा करते है ......
अरे वाह वाह जी
ReplyDeleteअच्छी सीख बहुत ही अच्छी आकांक्षा
बेहतरीन सम्वेदनशील रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteकाश आपकी कविता सच हो जाये।
ReplyDeleteद्वेष न हो कोई भी मन में,
ReplyDeleteधर्मों में अंतर न पायेँ।
यहां अज़ान आरती के स्वर,
आसमान में घुलमिल जायें।
प्रभु से नेक कामना। सभी एक ही परमपिता की संतान हैं।
यह कामना फलीभूत हो।
बुद्धि दो, प्रभु सब पहचानें
ReplyDeleteअंश तेरा ही है कण कण में।
धरा स्वर्ग सम बन जाएगी,
भाव जगें ये गर जन जन में।
Sach....yahee bhaav jan,jan me jagen to dhartee swarg zaroor banegee!
सुन्दर संवेदनशील पावन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसुंदर स्वेन्दन शील पावन कविता है सभी की यही कामना है ....काश आपकी यह कविता सच होजाए ....शुभकामनायें
ReplyDeleteकभी समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
सुन्दर कविता सर बहुत -बहुत बधाई
ReplyDeleteभूखा कभी न सोए बचपन,
ReplyDeleteमाँ तन बेचे न रोटी को।
नहीं दिवाली जगमग होगी,
गर कुटिया तरसे दीपक को।
इन सुभेक्षाओं को एक नेक ह्रदय ही मांग सकता है ,उस नेक हृदय का अभिनन्दन ,वंदन .../
इंसा को इंसान ही समझें,
ReplyDeleteधर्म जाति का भेद नहीं हो।
ईद मुबारक़ हिन्दू बोलें,
मुस्लिम होलीरंग में तर हों
सुंदर स्वेन्दनशील कविता, कामना फलीभूत होगी .
बुद्धि दो, प्रभु सब पहचानें
ReplyDeleteअंश तेरा ही है कण कण में।
धरा स्वर्ग सम बन जाएगी,
भाव जगें ये गर जन जन में।
कितनी सुंदर प्रार्थना है यह.. उस परम की कृपा से ही ऐसा भाव जगता हैं... बधाई!
बहुत सुन्दर सार्थक रचना
ReplyDeleteआपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार!!
sarthak rachna....
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण और नफ़रत के संसार मे अपन्त्व पैदा करती पंक्तियां। आरती और अजान का मेल तो वाकई बेजोड़ है।
ReplyDeleteबच्चा सा महसूस करता हूँ सर आपकी इन रचनाओं के सम्मुख ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....
बहुत अच्छा धरा स्वर्ग सम बन जायेगी।
ReplyDeleteआपकी ये इछ्छा अवश्य पूरी हो।
khoobsurat lekin hakikat me badal jana asambhav hi lagta hai.
ReplyDeleteइंसा को इंसान ही समझें,
ReplyDeleteधर्म जाति का भेद नहीं हो।
ईद मुबारक़ हिन्दू बोलें,
मुस्लिम होलीरंग में तर हों।
बहुत सार्थक सीख और आव्हान लिए पंक्तियाँ हैं
बहुत उम्दा एवं सार्थक रचना...
ReplyDeleteभूखा कभी न सोए बचपन,
ReplyDeleteमाँ तन बेचे न रोटी को।
नहीं दिवाली जगमग होगी,
गर कुटिया तरसे दीपक को।
उत्तम सोच को सुन्दर शब्दों में पिरो कर बहुत कुछ कहने की कोशिश की है | कोटि-कोटि प्रणाम
बहुत सुन्दर , जितनी तारीफ करूं कम है...
ReplyDeleteयहां अज़ान आरती के स्वर,
ReplyDeleteआसमान में घुलमिल जायें।
लाजवाब गीत सर....
सादर नमन....
सम्वेदनशील रचना के लिए बधाई ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुती!
ReplyDeleteWaah ! aapke nek vichar apne shabdon mein bahut hi gahrai se prastut kiye hain.. aabhar..
ReplyDeleteनहीं दिवाली जगमग होगी,
ReplyDeleteगर कुटिया तरसे दीपक को।
bahut sundar
बहुत गहरे तक छूती रचना |
ReplyDeleteआशा
बुद्धि दो, प्रभु सब पहचानें
ReplyDeleteअंश तेरा ही है कण कण में।
धरा स्वर्ग सम बन जाएगी,
भाव जगें ये गर जन जन में।
सच्ची प्रार्थना. बधाई.
भूखा कभी न सोए बचपन,
ReplyDeleteमाँ तन बेचे न रोटी को।
नहीं दिवाली जगमग होगी,
गर कुटिया तरसे दीपक को। ....गहरे भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति
bahut sunder bhav liye hai aapkee ye rachana...kkash ye duaa pooree ho jae.isee me jan malyan bhee hai.
ReplyDeleteise aakankshaa ke liye aabhar .
thnaks for binding such a good thougths in a sinlge poem ..
ReplyDeleteभूखा कभी न सोए बचपन,
ReplyDeleteमाँ तन बेचे न रोटी को।
नहीं दिवाली जगमग होगी,
गर कुटिया तरसे दीपक को।
बहुत सुंदर भाव।
sandeshprad rachna, bahut shubhkaamnaayen.
ReplyDeleteसुंदर भाव से लबरेज़ सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत और मंगलमय कामना है आपकी.
ReplyDeleteगायत्री मंत्र की तरह.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
काश यह बात सभी समझ सकते.....
ReplyDeleteइंसा को इंसान ही समझें,
धर्म जाति का भेद नहीं हो।
ईद मुबारक़ हिन्दू बोलें,
मुस्लिम होलीरंग में तर हों।
दिल दिमाग को छू जाने वाली पोस्ट..... अगली पोस्ट का बेसब्री से इन्तिज़ार है
भूखा कभी न सोए बचपन,
ReplyDeleteमाँ तन बेचे न रोटी को।
नहीं दिवाली जगमग होगी,
गर कुटिया तरसे दीपक को।
सच्ची संवेदना शब्दों में .....
बहुत बढ़िया रचना | उम्दा प्रस्तुति | आभार |
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में भी आयें |
काव्य का संसार
मेरी कविता
Beautiful poetic expressions with a great message.
ReplyDeleteLoved the last verse.
प्रवास के कारण इतनी सशक्त रचना देर से पढ़ने को मिली। बहुत ही श्रेष्ठ हमेशा की तरह।
ReplyDeletewowwwwwwwwwwwww...............
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