कितना अच्छा लगता है
कभी खुद से खोकर
खुद को ढूँढना.
बीती हुई गलतियों पर
एक निर्पेक्ष दृष्टिपात;
गुजरे रास्तों से
फिर से गुजरना,
छोड़े हुए मोडों पर
जगती जिज्ञासा,
कहाँ ले जाते
वे मोड़
अगर लिये होते.
खुशियों के कुछ मधुर पल
जो आज भी अंकित हैं
स्मृतियों में,
और वे पल भी
जब कभी रोये थे
बिना किसी कंधे के सहारे.
कितने साथी और रिश्ते
जो बने और बिछुड़ गये
और कुछ
जो होकर भी साथ
बन गये अनजाने.
इतिहास के
पीले पन्नों में
कुछ सूखे गुलाब,
आँखों से गिरे
अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,
और उनके बीच झांकता
एक धुंधला चेहरा,
कितना मुश्किल कर देता है
उन पन्नों में ढूँढना
अपने आप को.
काश भूल पाता यह सब
और ढूंढ पाता
खुद को खुद से भूल कर
वह मासूम
और निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में.
अथ--
ReplyDeleteसुन्दर
प्रस्तुति |
बधाई,
इति ||
जीवन की सच्चाई को उजागर करती गहन अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteBahut hi sunder
ReplyDelete. . . dhanyawad. . .
इतिहास के
ReplyDeleteपीले पन्नों में
कुछ सूखे गुलाब,
आँखों से गिरे
अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,
और उनके बीच झांकता
एक धुंधला चेहरा,
बहुत ही सुन्दर कविता !
वह मासूम
ReplyDeleteऔर निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में.
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,बधाई
bahut umda rachna. Aabhaar..
ReplyDeleteMere blog me bhi padharen.
मासूम और निश्छल चेहरा मिल जाए तो सही में मेरा मैं ही मिल जाए. सुन्दर लिखा है
ReplyDeleteकाश भूल पाता यह सब
ReplyDeleteऔर ढूंढ पाता
खुद को खुद से भूल कर
वह मासूम
और निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में.
अनोखी दार्शनिकता का अहसास कराती
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
जीवन की सच्चाई को उजागर करती गहन अभिव्यक्ति| .. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteवह मासूम
ReplyDeleteऔर निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में....
अनोखी रचना सर,
सादर नमन.
कितने साथी और रिश्ते
ReplyDeleteजो बने और बिछुड़ गये
और कुछ
जो होकर भी साथ
बन गये अनजाने.
यही जीवन का सच है...सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
kailash c. sharma ji
ReplyDeletesundar rachna ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
**************
ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
बेहतरीन अभिव्यक्ति .... साधुवाद जी
ReplyDeleteइतिहास के
ReplyDeleteपीले पन्नों में
कुछ सूखे गुलाब,
आँखों से गिरे
अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,
और उनके बीच झांकता
एक धुंधला चेहरा...
सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना...
apne me se khud ko tatolna bahut mushkil hai. lekin agar tatol hi liya jaye to sthiti aisi hi hoti hai. sunder rachna.
ReplyDeleteइतिहास के
ReplyDeleteपीले पन्नों में
कुछ सूखे गुलाब,
आँखों से गिरे
अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,
और उनके बीच झांकता
एक धुंधला चेहरा...
जीवन की सच्चाई को उजागर करती गहन भावों से परिपूर्ण अभिवक्ती...
भावपूर्णअभिवयक्ति....
ReplyDeleteसब कुछ भूलकर स्वयं को ढूढ़ना होगा।
ReplyDeleteIntrospection is not only essential but also a beautiful way of looking inside.
ReplyDeleteFantastic read as ever !!!
बहुत सुन्दर रचना और शब्द चयन |बहुत बहुत बधाई इतनी अच्छी रचना के लिए
ReplyDeleteआशा
काश भूल पाता यह सब
ReplyDeleteऔर ढूंढ पाता
खुद को खुद से भूल कर
स्वयं को ढूढ़ना ही होगा, सुन्दर अभिव्यक्ति.
जीवन है ही मकड़जाल.
ReplyDeleteइतिहास के
ReplyDeleteपीले पन्नों में
कुछ सूखे गुलाब,
आँखों से गिरे
अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,
और उनके बीच झांकता
एक धुंधला चेहरा,
कितना मुश्किल कर देता है
उन पन्नों में ढूँढना
अपने आप को.
sach hai...
बहुत सार्थक,सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब प्रस्तुति ... इंसान अक्सर उस मासूमियत को ढूँढता है जो खो जाती है समय के क्रूर हाथों ... बीते में जाने का प्रयास हमेशा सुखद लगता है ...
ReplyDeleteसुभानाल्लाह..........बहुत अच्छी लगी पोस्ट.........अतीत में भी हमे हमारी याद नहीं आती दुसरो की ही आती है|
ReplyDeleteकाश भूल पाता यह सब
ReplyDeleteऔर ढूंढ पाता
खुद को खुद से भूल कर
....कितनी गहरी बात कह दी आपने कैलाश जी इन चंद पंक्तियों में...उत्त्क्रिष्ठ रचना ...
वह मासूम
ReplyDeleteऔर निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में.
गहरी सच्चाई ...बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति ।
गहन भावो को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना|
ReplyDeletebehtreen prstuti...
ReplyDeleteऔर ढूंढ पाता
ReplyDeleteखुद को खुद से भूल कर
वह मासूम
और निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में.
Sach hai ham sabhi khud ko kho baithe hain is makadjal me....
पता नहीं इस मकड़जाले से हम निकल भी पाएंगे या नहीं।
ReplyDeleteखुद से खो कर खुद को ढूँढना
ReplyDeleteओहो, क्या बात है, बहुत खूब ।
खुशियों के कुछ मधुर पल
ReplyDeleteजो आज भी अंकित हैं
स्मृतियों में
और वे पल भी
जब कभी रोये थे
बिना किसी कंधे के सहारे
जीवन का श्वेत-श्याम युग भी कितना मनोहारी था।
अपना वजूद प्यारा लगता है। हम उसी की तलाश में भटकते हैं।
ReplyDeleteआत्म ज्ञान के लिए पीछे मुड़कर देखना भी ज़रुरी है ... सुन्दर कविता !
ReplyDeleteखुद से खोकर खुद को ढूँढने की कोशिश बहुत सुंदर है...भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteसच है! सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteजब मैं फुर्सत में होता हूँ , पढ़ता हूँ और तहेदिल से इन भावनाओं का शुक्रगुज़ार होता हूँ ....
ReplyDeleteइतिहास के
ReplyDeleteपीले पन्नों में
कुछ सूखे गुलाब,
आँखों से गिरे
अश्कों के कुछ फ़ीके धब्बे,
और उनके बीच झांकता
एक धुंधला चेहरा,
कितना मुश्किल कर देता है
उन पन्नों में ढूँढना
अपने आप को.
बहुत सुन्दर रचना.....अच्छी अभिव्यक्ति
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकितने साथी और रिश्ते जो बने
ReplyDeleteऔर बिछुड गये ।बहुत खुब।
धन्यवाद।यही तो जीवन है।
पर मन कहाँ समझ पाता
है?
उन्ही गलियों में भटकते रहता है।
गहन अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteकाश भूल पाता यह सब
ReplyDeleteऔर ढूंढ पाता
खुद को खुद से भूल कर
वह मासूम
और निश्छल चेहरा
जो फंस गया है
जीवन के मकड़जाल में.
jivan ka yahi sach hai, hum sabhi aise hin ulajh gaye hain. gahri anubhuti, badhai sweekaaren.
आप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१०) के मंच पर शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हमेशा ही इतनी मेहनत और लगन से अच्छा अच्छा लिखते रहें /और हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका ब्लोगर्स मीट वीकली (१०)के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसभी रचनायें एक से बढकर एक
ReplyDeleteजीवन में अस्तित्व व्यक्त करती उदात्त रचना !
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