(१)
बर्फ़ हो गये अहसास
जम गया लहू
ठण्ड के मौसम में,
वर्ना गुज़र नहीं जाते
बचा कर नज़रें
सड़क के किनारे
फटी चादर ओढ़ कर
ठण्ड से कंपकपाते
सोने की कोशिश करते
बच्चों को देख कर.
(२)
घने कोहरे ने
खींच दी दीवार
सब के बीच,
और कर दिया अकेला
अकेलेपन को भी
महानगरों में.
(३)
बाँध कर पोटली यादों की
डुबो दी है
झील के गहरे तल में.
मत फेंको कंकड़
झील के शांत तल में,
खुल जायेगी पोटली
बिखर जायेंगी यादें
और उठने लगेंगी लहरें
फिर शांत जल में.
(४)
गुज़र गयी रात
संघर्ष करते नींद से,
जब भी ली करवट
चुभने लगे कांटे
यादों के.
कैलाश शर्मा
बर्फ़ हो गये अहसास
जम गया लहू
ठण्ड के मौसम में,
वर्ना गुज़र नहीं जाते
बचा कर नज़रें
सड़क के किनारे
फटी चादर ओढ़ कर
ठण्ड से कंपकपाते
सोने की कोशिश करते
बच्चों को देख कर.
(२)
घने कोहरे ने
खींच दी दीवार
सब के बीच,
और कर दिया अकेला
अकेलेपन को भी
महानगरों में.
(३)
बाँध कर पोटली यादों की
डुबो दी है
झील के गहरे तल में.
मत फेंको कंकड़
झील के शांत तल में,
खुल जायेगी पोटली
बिखर जायेंगी यादें
और उठने लगेंगी लहरें
फिर शांत जल में.
(४)
गुज़र गयी रात
संघर्ष करते नींद से,
जब भी ली करवट
चुभने लगे कांटे
यादों के.
कैलाश शर्मा
बहुत ही सुन्दर है क्षणिकाएं.........खासकर पहली वाली तो बहुत ही सुन्दर है|
ReplyDeleteठिठुर रहे जब जन जन पथ पर,
ReplyDeleteनींद कहाँ से आ पायेगी।
क्षण - पूरी ज़िन्दगी
ReplyDeleteक्षणिकाएं - जीवन सार
बहुत सुंदर ..
ReplyDeleteगुज़र गयी रात
ReplyDeleteसंघर्ष करते नींद से,
जब भी ली करवट
चुभने लगे कांटे
यादों के.
बहुत ही बढि़या।
शानदार क्षणिकायें।
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएँ हैं सर!
ReplyDeleteसादर
बर्फ़ हो गये अहसास
ReplyDeleteजम गया लहू
ठण्ड के मौसम में,
वर्ना गुज़र नहीं जाते
बचा कर नज़रें
सड़क के किनारे
फटी चादर ओढ़ कर
ठण्ड से कंपकपाते
सोने की कोशिश करते
बच्चों को देख कर.
दिल को छू गयी यह क्षणिका !
आभार !
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteनीरज
सभी क्षणिकायें शानदार हैं|धन्यवाद|
ReplyDeleteक्षण में जीवन दर्शन....ये हैं आपकी क्षणिकाएं..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
behtarin chanikaye sir...
ReplyDeletebahut khub....
behtarin chanikaye sir...
ReplyDeletebahut khub....
सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं ..
ReplyDeleteवाह कैलाश जी , बेहतरीन, अभिनन्दन
ReplyDeleteगुज़र गयी रात
ReplyDeleteसंघर्ष करते नींद से,
जब भी ली करवट
चुभने लगे कांटे
यादों के.
ये यादें भी ना.....चुभन भी देती हैं...तो बड़ी नाजुकी से...
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं... बड़ी असरदार गहरा अर्थ लिए ...
ReplyDelete"घने कोहरे ने
ReplyDeleteखींच दी दीवार"
बहुत खूब!
गहरी मानवसंवेदनाओं को बयान करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteकविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।
ReplyDeleteहमारी संवेदना का रथ बिन पहियों का क्यूँ होता है... क्यूँ बढ़ जाते हैं हम मानवता को ठिठुरता देख? क्षणिकाओं का प्रभाव झकझोरता है!
ReplyDeleteBahut hi khubsurat likha hai. Sachi baat h ji lahu jam chuka h koi kisi bhi garib ki taraf nahi dekhta.
ReplyDeleteसंक्षिप्त और सुन्दर भाव लिए क्षणिकाएं |
ReplyDeleteआशा
गुज़र गयी रात
ReplyDeleteसंघर्ष करते नींद से,
जब भी ली करवट
चुभने लगे कांटे
यादों के.very nice.
बर्फ़ हो गये अहसास
ReplyDeleteजम गया लहू
ठण्ड के मौसम में,
वर्ना गुज़र नहीं जाते
बचा कर नज़रें
सड़क के किनारे
फटी चादर ओढ़ कर
ठण्ड से कंपकपाते
सोने की कोशिश करते
बच्चों को देख कर.
क्षणिकाओं में जीवन का यथार्थ उतार दिया है, वाह !!!
घने कोहरे ने
ReplyDeleteखींच दी दीवार
सब के बीच,
और कर दिया अकेला
अकेलेपन को भी
महानगरों में
बहुत सुंदर, सारगर्भित !
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteकोहरे, ठंड और चूकती हुई मानवीय संवेदनाओं के इर्द-गिर्द रची आपकी क्षणिकाएँ अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ी हैं.
ReplyDeleteख़ूबसूरत प्रस्तुति,सादर.
ReplyDeleteक्या कहूँ ? एक ही साथ अनेक भाव को उठा जाती है आपकी क्षणिकाएं . स्तब्ध हूँ .
ReplyDeletebahut bahut sundar...
ReplyDeletebahut achchi kshanikayen har kshanika kuch kah rahi hai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं सर... सादर बधाई...
ReplyDeleteदिल को छू गयी, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteघने कोहरे ने
ReplyDeleteखींच दी दीवार
सब के बीच,
और कर दिया अकेला
अकेलेपन को भी
महानगरों में.
umdaa ,saty hai
सुन्दर!
ReplyDeleteati sunder .
ReplyDeleteअसरदार सुंदर क्षणिकाएं...बेहतरीन पोस्ट
ReplyDelete"काव्यान्जलि"--नई पोस्ट--"बेटी और पेड़"--में click करे
खुल जायेगी पोटली
ReplyDeleteबिखर जायेंगी यादें
और उठने लगेंगी लहरें
फिर शांत जल में.
यादों को याद करती हुई अत्युत्तम कविताएं।
बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं ......
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteभई बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर क्षणिकाएं!!
ReplyDeleteबहुत-बहुत अच्छी लगी
ReplyDeletesabhi kshanikayen jiwan ke anubhavon ko vyakta karti hui..... sunder prastuti.
ReplyDeleteहर क्षणिका अपने आप में जिंदगी के अलग अलग अर्थ समेटे हुए ....आभार
ReplyDeleteसारी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक हैं
ReplyDeletebahut hi achchi lagi ye kshnikaye...all are good but 1st one is best :)
ReplyDeleteमत फेंको कंकड़
ReplyDeleteझील के शांत तल में,
खुल जायेगी पोटली
बिखर जायेंगी यादें
और उठने लगेंगी लहरें
फिर शांत जल में.
Vah sharma ji bahut hi sundar abhivyakti .... bahut bahut abhar.
जन्मदिन कि ढेरो शुभकामनाये.....बहुत अच्छी लगी app ki vo rachna bahut achchi lagi
ReplyDeletebahut hi sunder . sabhi ek se badhkar ek, 1,23 bahut pasand aayi. aapko badhai.
ReplyDeletenav varsh ki shubhkamnaye.
बाँध कर पोटली यादों की
ReplyDeleteडुबो दी है
झील के गहरे तल में.
बहुत खूब ... कितना अच्छा होता यादों को बंद कर सकते एक जगह ... लाजवाब हैं सभी सोचें ...
आपको नव वर्ष की बहुत मंगल कामनाएं ...
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteमत फेंको कंकड़
ReplyDeleteझील के शांत तल में,
खुल जायेगी पोटली
बिखर जायेंगी यादें
और उठने लगेंगी लहरें
फिर शांत जल में.
सुन्दर ,लाजवाब क्षणिकाएं.
vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....
बेहतरीन क्षणिकाएँ!
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
बधाई कैलाश जी बहुत ही बेहतरीन क्षणिकाएँ लिखी आप ने ,दिल को छू गयी ,सब से अधिक ये पसंद आई...... बर्फ़ हो गये अहसास
ReplyDeleteजम गया लहू
ठण्ड के मौसम में,
वर्ना गुज़र नहीं जाते
बचा कर नज़रें
नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
ReplyDeleteआशा
बाँध कर पोटली यादों की
ReplyDeleteडुबो दी है
झील के गहरे तल में
एक से बढकर लाजबाब क्षणिकाएं , किसी एक को छांटना मुश्किल है