Friday, December 23, 2011

क्षणिकाएं

     (१)
बर्फ़ हो गये अहसास
जम गया लहू
ठण्ड के मौसम में,
वर्ना गुज़र नहीं जाते
बचा कर नज़रें 
सड़क के किनारे
फटी चादर ओढ़ कर
ठण्ड से कंपकपाते 
सोने की कोशिश करते 
बच्चों को देख कर.


     (२)
घने कोहरे ने 
खींच दी दीवार
सब के बीच,
और कर दिया अकेला
अकेलेपन को भी
महानगरों में.


     (३)
बाँध कर पोटली यादों की
डुबो दी है
झील के गहरे तल में.


मत फेंको कंकड़ 
झील के शांत तल में,
खुल जायेगी पोटली 
बिखर जायेंगी यादें
और उठने लगेंगी लहरें
फिर शांत जल में.


     (४)
गुज़र गयी रात
संघर्ष करते नींद से,
जब भी ली करवट
चुभने लगे कांटे 
यादों के.


कैलाश शर्मा

59 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर है क्षणिकाएं.........खासकर पहली वाली तो बहुत ही सुन्दर है|

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  2. ठिठुर रहे जब जन जन पथ पर,
    नींद कहाँ से आ पायेगी।

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  3. क्षण - पूरी ज़िन्दगी
    क्षणिकाएं - जीवन सार

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  4. गुज़र गयी रात
    संघर्ष करते नींद से,
    जब भी ली करवट
    चुभने लगे कांटे
    यादों के.
    बहुत ही बढि़या।

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  5. शानदार क्षणिकायें।

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  6. बेहतरीन क्षणिकाएँ हैं सर!

    सादर

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  7. बर्फ़ हो गये अहसास
    जम गया लहू
    ठण्ड के मौसम में,
    वर्ना गुज़र नहीं जाते
    बचा कर नज़रें
    सड़क के किनारे
    फटी चादर ओढ़ कर
    ठण्ड से कंपकपाते
    सोने की कोशिश करते
    बच्चों को देख कर.

    दिल को छू गयी यह क्षणिका !
    आभार !

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  8. बहुत सुन्दर रचना...
    नीरज

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  9. सभी क्षणिकायें शानदार हैं|धन्यवाद|

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  10. क्षण में जीवन दर्शन....ये हैं आपकी क्षणिकाएं..
    बहुत सुन्दर.

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  11. सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं ..

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  12. वाह कैलाश जी , बेहतरीन, अभिनन्दन

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  13. गुज़र गयी रात
    संघर्ष करते नींद से,
    जब भी ली करवट
    चुभने लगे कांटे
    यादों के.

    ये यादें भी ना.....चुभन भी देती हैं...तो बड़ी नाजुकी से...

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  14. बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं... बड़ी असरदार गहरा अर्थ लिए ...

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  15. "घने कोहरे ने
    खींच दी दीवार"
    बहुत खूब!

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  16. गहरी मानवसंवेदनाओं को बयान करती सुंदर रचना।

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  17. कविता की पंक्तियां बेहद सारगर्भित हैं।

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  18. हमारी संवेदना का रथ बिन पहियों का क्यूँ होता है... क्यूँ बढ़ जाते हैं हम मानवता को ठिठुरता देख? क्षणिकाओं का प्रभाव झकझोरता है!

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  19. Bahut hi khubsurat likha hai. Sachi baat h ji lahu jam chuka h koi kisi bhi garib ki taraf nahi dekhta.

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  20. संक्षिप्त और सुन्दर भाव लिए क्षणिकाएं |
    आशा

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  21. गुज़र गयी रात
    संघर्ष करते नींद से,
    जब भी ली करवट
    चुभने लगे कांटे
    यादों के.very nice.

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  22. बर्फ़ हो गये अहसास
    जम गया लहू
    ठण्ड के मौसम में,
    वर्ना गुज़र नहीं जाते
    बचा कर नज़रें
    सड़क के किनारे
    फटी चादर ओढ़ कर
    ठण्ड से कंपकपाते
    सोने की कोशिश करते
    बच्चों को देख कर.

    क्षणिकाओं में जीवन का यथार्थ उतार दिया है, वाह !!!

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  23. घने कोहरे ने
    खींच दी दीवार
    सब के बीच,
    और कर दिया अकेला
    अकेलेपन को भी
    महानगरों में
    बहुत सुंदर, सारगर्भित !

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  24. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  25. कोहरे, ठंड और चूकती हुई मानवीय संवेदनाओं के इर्द-गिर्द रची आपकी क्षणिकाएँ अत्यंत प्रभावशाली बन पड़ी हैं.

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  26. ख़ूबसूरत प्रस्तुति,सादर.

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  27. क्या कहूँ ? एक ही साथ अनेक भाव को उठा जाती है आपकी क्षणिकाएं . स्तब्ध हूँ .

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  28. bahut achchi kshanikayen har kshanika kuch kah rahi hai.

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  29. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं सर... सादर बधाई...

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  30. दिल को छू गयी, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने

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  31. घने कोहरे ने
    खींच दी दीवार
    सब के बीच,
    और कर दिया अकेला
    अकेलेपन को भी
    महानगरों में.
    umdaa ,saty hai

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  32. खुल जायेगी पोटली
    बिखर जायेंगी यादें
    और उठने लगेंगी लहरें
    फिर शांत जल में.

    यादों को याद करती हुई अत्युत्तम कविताएं।

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  33. बहुत ही सुन्दर क्षणिकाएं ......

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  34. आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।

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  35. भई बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!

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  36. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं!!

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  37. बहुत-बहुत अच्छी लगी

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  38. sabhi kshanikayen jiwan ke anubhavon ko vyakta karti hui..... sunder prastuti.

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  39. हर क्षणिका अपने आप में जिंदगी के अलग अलग अर्थ समेटे हुए ....आभार

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  40. सारी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक हैं

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  41. bahut hi achchi lagi ye kshnikaye...all are good but 1st one is best :)

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  42. मत फेंको कंकड़
    झील के शांत तल में,
    खुल जायेगी पोटली
    बिखर जायेंगी यादें
    और उठने लगेंगी लहरें
    फिर शांत जल में.

    Vah sharma ji bahut hi sundar abhivyakti .... bahut bahut abhar.

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  43. जन्मदिन कि ढेरो शुभकामनाये.....बहुत अच्छी लगी app ki vo rachna bahut achchi lagi

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  44. bahut hi sunder . sabhi ek se badhkar ek, 1,23 bahut pasand aayi. aapko badhai.
    nav varsh ki shubhkamnaye.

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  45. बाँध कर पोटली यादों की
    डुबो दी है
    झील के गहरे तल में.

    बहुत खूब ... कितना अच्छा होता यादों को बंद कर सकते एक जगह ... लाजवाब हैं सभी सोचें ...
    आपको नव वर्ष की बहुत मंगल कामनाएं ...

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  46. प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । धन्यवाद ।

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  47. मत फेंको कंकड़
    झील के शांत तल में,
    खुल जायेगी पोटली
    बिखर जायेंगी यादें
    और उठने लगेंगी लहरें
    फिर शांत जल में.
    सुन्दर ,लाजवाब क्षणिकाएं.

    vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....

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  48. बेहतरीन क्षणिकाएँ!

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  49. बधाई कैलाश जी बहुत ही बेहतरीन क्षणिकाएँ लिखी आप ने ,दिल को छू गयी ,सब से अधिक ये पसंद आई...... बर्फ़ हो गये अहसास
    जम गया लहू
    ठण्ड के मौसम में,
    वर्ना गुज़र नहीं जाते
    बचा कर नज़रें

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  50. नव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
    आशा

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  51. बाँध कर पोटली यादों की
    डुबो दी है
    झील के गहरे तल में
    एक से बढकर लाजबाब क्षणिकाएं , किसी एक को छांटना मुश्किल है

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