(१)
अंधियारे का मौन
नयनों का सूनापन
अश्कों की अतृप्त प्यास
रिश्तों की झूठी आस
धड़कते दिल की गूँजती आवाज़
रहते हैं हर समय साथ
इस कमरे में
और नहीं महसूस होने देते
दर्द अकेलेपन का.
(२)
आती नहीं कोई आहट
दरवाज़े पर,
मौन हैं गलियों में
कदमों के स्वर,
तोड़ने को मौन
अकेलेपन की घुटन का
पूछते हैं एक दूसरे से
क्या तुमने कुछ कहा.
(३)
चले थे अकेले
जुड़ते रहे लोग
कारवां चलता रहा.
आये कुछ मोड़
छूट गए रिश्ते,
और आज इस मोड़ पर
खड़ा अकेला
ढूँढ़ रहा हूँ
उस कारवां के
कदमों के निशां.
कैलाश शर्मा
अंधियारे का मौन
नयनों का सूनापन
अश्कों की अतृप्त प्यास
रिश्तों की झूठी आस
धड़कते दिल की गूँजती आवाज़
रहते हैं हर समय साथ
इस कमरे में
और नहीं महसूस होने देते
दर्द अकेलेपन का.
(२)
आती नहीं कोई आहट
दरवाज़े पर,
मौन हैं गलियों में
कदमों के स्वर,
तोड़ने को मौन
अकेलेपन की घुटन का
पूछते हैं एक दूसरे से
क्या तुमने कुछ कहा.
(३)
चले थे अकेले
जुड़ते रहे लोग
कारवां चलता रहा.
आये कुछ मोड़
छूट गए रिश्ते,
और आज इस मोड़ पर
खड़ा अकेला
ढूँढ़ रहा हूँ
उस कारवां के
कदमों के निशां.
कैलाश शर्मा
सुन्दर भाव कणिकाए .
ReplyDeleteसुन्दर भाव कणिकाए .
ReplyDeleteतोड़ने को मौन
ReplyDeleteअकेलेपन की घुटन का
पूछते हैं एक दूसरे से
क्या तुमने कुछ कहा.
कितना शोर मचाता है ये मौन अकेलेपन में .... नि:sहब्द करती क्षणिकएं
अकेलेपन की घुटन....और मौन का सूनापन....
ReplyDeleteबहुत गहन रचना...
सादर.
अकेलेपन की आवाज़ बनी सुन्दर क्षणिकाएं!
ReplyDeletebahut sudnar kavitayen
ReplyDeletebahut hi sundar.....pahla wala sabse accha laga.
ReplyDeleteअकेलेपन की त्रासदी का खूब चित्रण किया है।
ReplyDeleteSilence is is very disturbing... especially in advance age..
ReplyDeleteSilence
have riches of
vocabulary
and variety of shades.
Its existence
gives cuts
sharper than blades...
Awesome expressions
the pain and agony was well reflected !!
लाजवाब क्षणिकाएं... पहली क्षणिका भाव विभोर कर गई... अकेलापन भी बहुत कुछ कह जाता है और नहीं रहने देता अकेले... गहन भाव... आभार
ReplyDeleteकितनी दिलकश क्षणिकाएं हैं सर.... वाह!
ReplyDeleteसादर बधाई...
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक भाव लिए सुन्दर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteकभी-कभी तो अकेलापन भी बहुत भाता है,
ReplyDeleteआदमी इस बहाने अपने से मिल पता है !
पता=पाता
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण लगी आपकी ये क्षणिकाएं...बधाई
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
very touchy
ReplyDeleteआपके इस पोस्ट की चर्चा यहाँ पर है..!
ReplyDeletehttp://tetalaa.nukkadh.com/2012/03/blog-post_20.html
सब आहटों के इंतज़ार में हैं, फिर भी आहट नहीं
ReplyDeleteउम्मीदों की पहल हो तो कोई बात बने ...
सभी शब्दचित्र बहुत उम्दा हैं!
ReplyDeletesach akela aakar sabse judkar bhi ek din akele chala jaata hai insaan..
ReplyDeleteakelepan ko mukhar karti sarthak rachna..
phir koi aayegaa,judegaa aapse
ReplyDeleteek se do honge ,do se chaar
kaarvaan phir banegaa .....
achhee rachnaa
बहुत मार्मिक भाव लिए सुन्दर उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeletemy resent post
काव्यान्जलि ...: अभिनन्दन पत्र............ ५० वीं पोस्ट.
सोचने को मजबूर करती क्षणिकाएं ... आभार.
ReplyDeleteprabhavit karti hui.....bahut achchi lagi.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक भाव संयोजन के साथ सार्थक एवं प्रभावशाली रचना....
ReplyDeletegahri anubhuti .....gajab ki rachana ...badhai sweekaren.
ReplyDeletewaah kailash jee dil ko choo gai aaki ye abhiwaykti.
ReplyDeletegahan bhavon ki abhivyakti .NAVSAMVATSAR KI HARDIK SHUBHKAMNAYEN !shradhey maa !
ReplyDeletebahut khub. sahi kaha aapne. akelapan bahut shor karta hai.
ReplyDeleteबहुत बढिया!!अकेलेपन का बहुत सुन्दर चित्रण किया है!
ReplyDeleteअकेलापन इन सबसे कितना भरा भरा लगता है।
ReplyDeleteकलात्मक रचना प्रभावशाली है बधाईयाँ जी /
ReplyDeleteबहुत बढिया।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , पहला और तीसरा छंद तो लाजबाब है !
ReplyDeleteक़दमों की चाप तो सीने पर हुआ करती है जो दर्द ही देती है . अति सुन्दर सृजन..
ReplyDeleteकल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
जिंदगी के सूनेपन को बखूबी लिख डाला हैं आपने ...
ReplyDeleteसूनापन सूना नहीं...शब्दों के माध्यम से मुखर हो उठा|
ReplyDeleteसंवेदना के भाव लिए पंक्तियाँ ....बहुत सुंदर
ReplyDelete...और नहीं महसूस होने देते
ReplyDeleteदर्द अकेलेपन का.
दर्द ही दवा बन जाता है कभी कभी
तीनों ही रचनाएँ अच्छी लगीं
अकेलेपन में अक्सर इंसान खुद से ही बात करता है ...
ReplyDeleteतीनों बहुत गहरी ... भाव प्रधान ...
अंधियारे का मौन
ReplyDeleteनयनों का सूनापन
अश्कों की अतृप्त प्यास
रिश्तों की झूठी आस
धड़कते दिल की गूँजती आवाज़
रहते हैं हर समय साथ
इस कमरे में
और नहीं महसूस होने देते
दर्द अकेलेपन का.
why should i say thank you for these beautiful lines
no .never . i am jealous of you. pranam swikaren.
मौन की भाषा...
ReplyDeleteखड़ा अकेला
ReplyDeleteढूँढ़ रहा हूँ
उस कारवां के
कदमों के निशां.
जिंदगी का सत्य यही है
मौन के क्रंदन को परिभाषित करती रचनायें ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत खूब, वाह !!!!!!!!!!
ReplyDeleteदर्द ले कर चलती हुवी तीनों रचनाएं ..लाजवाब
ReplyDeleteतीनों ही रचनायें लाजवाब हैं ....
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचना है....
sundar kavita
ReplyDeleteakelepan ko abhivyakt karti khoobsurat kanikayen...
ReplyDeleteआती नहीं कोई आहट
ReplyDeleteदरवाजे पर,
मौन हैं गलियों में
कदमों के स्वर,
तोड़ने को मौन
अकेलेपन की घुटन का
पूछते हैं एक दूसरे से
क्या तुमने कुछ कहा.
इस कविता का कथ्य सहज संप्रेषित है और और शिल्प नितांत मौलिक।
उम्र के इस दौर में
ReplyDeleteयह अकेलापन
बहुत ही काटता है.
सुनहले दिन, रिश्ते-नाते,मित्र
और बाँकापन-
बहुत ही काटता है.
यथार्थ के धरातल पर चित्र उकेरे आपने........मार्मिक...........
अनुभूति का चित्रांकन कड़ी कुशलता से किया है !
ReplyDeletebahut hi sundar kavitayan.....
ReplyDeletemaun khali sannata dil ki garaiyon se nikalte shabd aur chal deta hai abhivyakti ka karvaan...atisundar rachna.bahut pasand aai.
ReplyDeleteअंधियारे का मौन
ReplyDeleteनयनों का सूनापन
अश्कों की अतृप्त प्यास
रिश्तों की झूठी आस
धड़कते दिल की गूँजती आवाज़
रहते हैं हर समय साथ
इस कमरे में
और नहीं महसूस होने देते
दर्द अकेलेपन का.
दर्द का प्रहार बहुत तीव्र है. बहुत सुंदर कवितायेँ.
और आज इस मोड़ पर
ReplyDeleteखड़ा अकेला
ढूँढ़ रहा हूँ
कष्ट दायक ...
जीवन की हकीकतें विश्वास लायक नहीं लगतीं कई बार....
आभार भाई जी !
वो निशां भी मिलेंगे ओर कारवाँ भी ..............
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