बनी पगडंडी
नहीं पहुंचाती
किसी नयी मंज़िल पर.
छोड़ देना नौका को
लहरों के सहारे
दे सकता है कुछ पल को
अनिश्चितता जनित संतोष,
पर पाने को साहिल
उठाना होता है चप्पू
अपने ही हाथों में.
चलना होता है
कंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
vaah ..bina prayatn ke koi manjil nahi milti bahut achcha sandesh de rahi hai aapki kavita.
ReplyDeleteवाह ..बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteMY RESENT POST...काव्यान्जलि... तुम्हारा चेहरा.
सत्य कहा सर.... प्रेरक रचना...
ReplyDeleteसादर।
वाह.....
ReplyDeleteyes...
don't just follow,
be a leader....
regards.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....प्रेरक रचना..
ReplyDeleteचलना होता है
ReplyDeleteकंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
सार्थक दृष्टिकोण को दर्शाती शानदार रचना।
प्रेरक प्रस्तुति...इस तरह आगे बढ़ने की कि लोग अनुसरण करें!
ReplyDeleteचलना होता है
ReplyDeleteकंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
बेहतरीन और शानदार है पोस्ट।
पाने को साहिल
ReplyDeleteउठाना होता है चप्पू
अपने ही हाथों में.
अक्षरश: सही कहा है आपने ...बहुत ही बढिया।
और बन जाती है
ReplyDeleteएक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
बस चलना होता है, मिल जाती है नई राह, नई मंजिल... प्रेरक रचना... आभार...
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
अरवीला रविकर धरे, चर्चक रूप अनूप |
ReplyDeleteप्यार और दुत्कार से, निखरे नया स्वरूप ||
आपकी टिप्पणियों का स्वागत है ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
चलना होता है
ReplyDeleteकंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
बेहतरीन !
पाने को साहिल
ReplyDeleteउठाना होता है चप्पू
अपने ही हाथों में... मंजिल इन्हीं हौसलों को मिलती है
छोड़ देना नौका को
ReplyDeleteलहरों के सहारे
दे सकता है कुछ पल को
अनिश्चितता जनित संतोष,
पर पाने को साहिल
उठाना होता है चप्पू
अपने ही हाथों में.
Kya baat kahee hai!
नई राह बनाने में थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है
ReplyDeleteवाह ... बहुत खूब ... खुद चलना पढता है पहले फिर कारवाँ बढ़ता जाता है ... राह बनती जाती है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.....
ReplyDeleteबेहद उम्दा. शानदार.
ReplyDeleteपर पाने को साहिल
ReplyDeleteउठाना होता है चप्पू
अपने ही हाथों में.bilkul shi kha aapne kailash jee kavita ke madhayam se.
बस किसी के शुरुआत करने की देरी होती है ... काफिला अपने आप बनता जाता है ... प्रेरक रचना ... आभार ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteचलना होता है
ReplyDeleteकंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
बहुत सुन्दर
बेहतरीन सृजन , अपने सन्देश में सफल .....बधाईयाँ जी
ReplyDeleteपर पाने को साहिल
ReplyDeleteउठाना होता है चप्पू
अपने ही हाथों में
बहुत सुन्दर
beautiful
ReplyDeleteप्रेरक, बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteअगर दिल में है उमंग
ReplyDeleteतो रस्ते चलेंगे संग !!
बेहद प्रेरक रचना..
ReplyDelete"चलना होता है
कंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से."
वाह.. बहुत खूब लिखा है.. :)
पूरा जीवन भाग्य के सहारे नहीं छोड़ा जा सकता हैं, थोड़ा सुस्ता लेना तो बनता है।
ReplyDeleteनयी मंज़िल की खोज़ में
ReplyDeleteऔर बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से...waah bahut khoob badhai
kabhi -kabhi hamare blog par bhi aayen swagat hai aapka nayi post par
http://sapne-shashi.blogspot.com
sarthak abhivyakti ...!
ReplyDeleteshubhkamnayen ...!!
बहुत उम्दा प्रस्तुति!
ReplyDeleteकैलाश जी , शानदार कविता....
ReplyDeleteपगडण्डी के मार्गदर्शन के लिए शुक्रिया ....
ReplyDeleteपर पाने को साहिल
ReplyDeleteउठाना होता है चप्पू
अपने ही हाथों में... khud ki himmat se hi hoti hai raahein asaan...
Sundar abhivyakti
Saadar
शानदार प्रेरक प्रस्तुति.
ReplyDeleteमंजिल को ध्यान में रख,उस तरफ चलने का प्रयास करना ही सार्थक है.
yahi to jeewan ka yatharth hai. sunder prastuti.
ReplyDeletebahut hi umda!
ReplyDeletesundar rachna,bdhai aap ko
ReplyDeletesundar rachna.
ReplyDeletemere blog par bhi aaiyega
चलना होता है
ReplyDeleteकंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
.......इस उत्कृष्ट रचना के लिए ... बधाई स्वीकारें.
just Best !!
ReplyDeleteनयी मंज़िल की खोज़ में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी...
Loved these lines... hopeful
:)
बेहतरीन रचना ,,,जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित करती हुई ....
ReplyDeleteचलना होता है
ReplyDeleteकंटक भरी पथरीली राह पर
नयी मंज़िल की खोज में
और बन जाती है
एक नयी पगडंडी
पीछे चलते लोगों से.
जीवन का एक सत्य उतर आया है इन पंक्तियों में।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति. जीवन की सत्यता को स्वीकारती. बधाई.
ReplyDeleteसच कहा आपने ...लकीर से हटकर चलने वाले ही अपने निशाँ छोड़ जाते हैं .....!
ReplyDeleteसत्य... कि नदी की धार के साथ बहनेवाला कुछ अलग नहीं कर सकता, वह भेडचाल ही चल सकता है जिंदगीभर...
ReplyDeleteपर recentely मुझे किसी ने हितायद दी कि कभी-कभी, थोड़ी देर के लिए ही सही उस धार के साथ बहना चाहिए, शान्ति मिलती है...
sach kaha...safalta ke liye nayi pagdandi banani hi padti hai
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