मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
ग्यारहवाँ अध्याय
(विश्वरूपदर्शन-योग-११.१८-२५)
तुम अविनाशी परम ब्रह्म हो
आश्रय परम हो इस जग के.
नित्य व शास्वत धर्म के रक्षक
तुम ही सनातनपुरुष विश्व के. (११.१८)
देख रहा हूँ वह रूप आपका
आदि मध्य व अंत रहित है.
हैं असंख्य भुजायें जिसकी,
जिनकी शक्ति अनन्त है. (११.१९)
सूर्य-चन्द्र ही नेत्र हैं जिसके,
मुखों में है अग्नि प्रज्वलित.
जिसके रुप तेज की ज्वाला
करती सम्पूर्ण विश्व संतप्त. (११.१९)
द्युलोक से पृथ्वी के बीच में
व्याप्त आपसे सभी दिशायें.
अद्भुत उग्र यह रूप देख कर
कम्पित तीन लोक हो जायें. (११.२०)
हो भयभीत देवगण सारे
शरणागत हो स्तुति करते.
स्वस्ति वचन व स्त्रोतों से
महर्षि सिद्धगण स्तुति करते. (११.२१)
देख रहे सब विस्मित हो कर
रूद्र आदित्य वसु व साध्यगण.
विश्वदेव अश्विनी मरुद्गण,
पितृ गन्धर्व यक्ष असुर सिद्धगण. (११.२२)
देख अनेक मुख नेत्र भुजायें
उदर पैर दंत पंक्ति को.
मैं व लोक भयभीत हो गये
देख आपके रौद्र रूप को. (११.२३)
विस्तृत मुख आकाश को छूता
दीप्तमान विशाल नेत्र देखकर.
नहीं धैर्य व शान्ति मिल रही
व्याकुल हूँ मैं यह रूप देखकर. (११.२४)
विकराल दाढ़ भयंकर मुख,
प्रलयाग्नि से युक्त देख कर.
दिशा बोध रहा न मुझ को,
हो प्रसन्न आप परमेश्वर. (११.२५)
..........क्रमशः
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कैलाश शर्मा
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरणीय |
ReplyDeleteपुस्तक मेल में भी उपलब्ध है-
आभार ||
श्रीमद्भगवद्गीता का लाजबाब भाव पद्यानुवाद,,,,,शुभकामनाए ,,,,
ReplyDeleteRECENT POST बदनसीबी,
प्रभावोत्पादनकारी पंक्तियां। भावी शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसुंदर चित्रण...
ReplyDelete~सादर!!!
सार्थक लेखन के लिए आपको बहुत-बहुत नमन!
ReplyDeleteस्थानेहृषीकेशतवत्प्रकीर्तया, जगतप्रहस्यतनुरज्य ते च...
ReplyDeleteबिल्कुल वही भाव आपके अनुवाद में।
विश्वरूप का साक्षात् दर्शन हो रहा है .
ReplyDeleteलाजबाब भाव ... शुभकामनाए...
ReplyDeleteआपका यह कार्य अतुलनीय है ...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआभार सहित
सादर
आपकी यह कृति गीता को सहज-सुबोध-सुगेय बना रही है।
ReplyDeleteदेख रहा हूँ वह रूप आपका
ReplyDeleteआदि मध्य व अंत रहित है.
हैं असंख्य भुजायें जिसकी,
जिनकी शक्ति अनन्त है.
बहुत सुन्दर अनुवाद
आज के समय की आवश्यकता है ... गीता का सरल ज्ञान ... आभार आपका ...
ReplyDeleteगीता तो नही पढ़ी किन्तु बहुत बढ़िया आपके उत्कृष्ट लेखन से हम भी लाभान्वित हो रहे हैं हार्दिक बधाई
ReplyDeletesaral va ispasht-***
ReplyDeletenamasthe Kailash sharmaji...Worth reading and thanks for sharing such wonderful works...I convey my respect to you..GOD<3U
ReplyDeleteतुम अविनाशी परम ब्रह्म हो
ReplyDeleteआश्रय परम हो इस जग के.
नित्य व शास्वत धर्म के रक्षक
तुम ही सनातनपुरुष विश्व के.
बहुत सुन्दर रचना, गीता का सरल अर्थ, शुभकामनाएँ.