जीवन सीमित जब रोटी तक,
स्वप्न नहीं आँखों में कल का,
चौराहे पर खड़ा हो बचपन,
पूछो उनसे क्या प्रेम दिवस है.
नहीं मिला जो काम अगर तो,
न मिल पाये बच्चों को रोटी,
नहीं जो बिक पाये गुलाब गर,
भूखे पेट क्या प्रेम दिवस है।
न मिल पाये बच्चों को रोटी,
नहीं जो बिक पाये गुलाब गर,
भूखे पेट क्या प्रेम दिवस है।
चुम्बन, आलिंगन, गुलाब
क्या,
नहीं अभाव का जीवन समझे,
जिस दिन दो रोटी मिल जायें
उनको वह दिन प्रेम दिवस है।
नहीं अभाव का जीवन समझे,
जिस दिन दो रोटी मिल जायें
उनको वह दिन प्रेम दिवस है।
सिर पर बोझ उठाये फिरता,
घर घर झाड़ू पोंछा जो करती,
थकी थकी हर शाम है आती,
कैसा, किसका प्रेम दिवस है?
घर घर झाड़ू पोंछा जो करती,
थकी थकी हर शाम है आती,
कैसा, किसका प्रेम दिवस है?
प्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
प्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है।
प्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है।
....कैलाश शर्मा
वाह !
ReplyDeletebahut sundar waah hardik badhai kailash ji
Deleteआपकी लिखी रचना शनिवार 15/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
कृपया पधारें ....धन्यवाद!
मानवीय संवेदनाओं से भरपूर अत्यंत हृदयग्राही रचना ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसटीक बात कहती बहुत ही सुंदर एवं सार्थक भवाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकितनी सुन्दर कविता कह दी सच मानो यह प्रेम-दिवस है ।
ReplyDeleteसच प्यार तो अंतस से निकली हुई अनुभूति है ..... संवेदना से परिपूर्ण कविता .....
ReplyDeletebahut badhiya...
ReplyDeleteइस बसंती बयार में आपने जीवन की वास्तविकता की बहुत सटीक ढंग से रखा है. बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteजब जीवन के मौलिक प्रश्न अनुत्तरित हों तो कैसा प्रेम दिवस।
ReplyDelete
ReplyDeleteप्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
प्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है।
वाह ! सचमुच हर दिन ही प्रेम दिवस है नहीं तो कोई नहीं..
अर्थपूर्ण भाव ...प्रेम के सही अर्थ समझने होंगें
ReplyDeleteप्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
ReplyDeleteप्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है।
वाह ! बहुत खूब सुंदर रचना ...!
RECENT POST -: पिता
आभार....
ReplyDeleteबहुत गहन और सटीक प्रश्न उठाती सुन्दर पोस्ट |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteअंतस के प्यार को तो प्रेमी-जोड़ों की रोज बनती नई-नई मोर्चाबन्दी हरा ही रही है।
ReplyDeleteसच! प्रेम-दिवस तो ऐसा ही होना चाहिए..
ReplyDeleteभाई सादर प्रणाम
ReplyDeleteआम जन के दर्द को अभिव्यक्त करती बेहतरीन कविता।
ReplyDeleteचुम्बन, आलिंगन, गुलाब क्या,
ReplyDeleteनहीं अभाव का जीवन समझे,
जिस दिन दो रोटी मिल जायें
उनको वह दिन प्रेम दिवस है।
बहुत सुन्दर !
new post बनो धरती का हमराज !
बहुत सही कहा सर!
ReplyDeleteसादर
bahut achchhi bat ......badhai apko sharma ji
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सामयिक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteहृदय में रहनेवाली भावना को ऐसा रूप दे दिया इस दिन ने जैसे अचानक एक दिन बुखार चढ़ आया हो !
ReplyDeletewah kadva sach bayan karti rachna
ReplyDeleteसुंदर ,संवेदन शील कविता ........
ReplyDeleteप्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
ReplyDeleteप्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है ..
आपकी बात से पूरी तरह सहमत ... प्रेम मन की बात है और किसी एक दिवस की मोहताज़ नहीं ...
वाह, क्या खूब कहा आपने.. काश, हम सब समझते संवेदनशीलता का सही अर्थ..!!! परन्तु, इस 'कथित प्रेम-दिवस' में ऐसे डूबे हैं जैसे जीवन सिर्फ ये ही है..
ReplyDeleteअंतिम पैरा पूरी कविता की जान है, चार पंक्तियों में जिस तरह प्रेम की पूरी व्याख्या ही कर दी गई है वो निश्चय ही गागर में सागर है | कविता प्रश्न खड़े करती है, संवेदना से भरी पड़ी है तत्पश्चात, इसका शिल्प पक्ष कमजोर है जो इसे और अधिक सटीक, और अधिक प्रभावशाली बना सकती थी | प्रणाम |
ReplyDeleteप्रेम नहीं अभिव्यक्ति शब्द में,
ReplyDeleteप्रेम है बस मन की अनुभूति,
अंतस में जब प्यार बसा हो,
समझो हर दिन प्रेम दिवस है ..........