मुझसे
उत्तर मत मांगो बेटी,
यह प्रश्न
अनुत्तरित रहने दो.
आकर सपने
में तुम बेटी,
एक प्रश्न
रोज़ करती माँ से.
क्यों मौन
रहीं तुम माँ होकर,
जब रोका
जग में आने से?
मैं कैसे
तुमको समझाऊँ बेटी,
उस
पल थी क्यों मौन रही?
रोम रोम
तड़पा था तब मेरा,
जब तुझको
आने दिया नहीं.
मैं नहीं
चाहती थी मेरी बेटी
आफ़रीन बन
दुनिया में आये.
परिवार की
बेटे की चाहत में,
तुझको न कहीं
दुत्कारा जाये.
कैसे तुम
को बतलाऊँ मैं बेटी?
न समझोगी दर्द
विवशता का.
कितने
स्वप्न बुने मेरे मन ने
हर ताना
बुनते तेरे स्वेटर का.
पर अब न
ऐसा फिर होने दूंगी,
मेरी गोदी
में तुझको आना होगा.
चाहे
दुनिया हो जाये एक तरफ़,
तुझको फ़िर
घर में लाना होगा.
अब मुझको
न समझो अशक्त,
सह लिया
दर्द अबला बन कर.
अब कमज़ोर
न होंगे हाथ मेरे,
कर सकती रक्षा
दुर्गा बन कर.
तुम्हें
सिखाऊँगी जग से लड़ना,
तुमको
अशक्त न मैं बनने दूँगी.
जाग गयी
मेरे अन्दर की नारी,
जन्म
पूर्व तुझको न मरने दूँगी.
...कैलाश
शर्मा
बहुत सुंदर संदेश !
ReplyDeleteतुम्हें सिखाऊँगी जग से लड़ना,
ReplyDeleteतुमको अशक्त न मैं बनने दूँगी.
जाग गयी मेरे अन्दर की नारी,
जन्म पूर्व तुझको न मरने दूँगी....aaj kal aisa ho bhi raha hai ...sundar aur satrhk rachna
तुम्हें सिखाऊँगी जग से लड़ना,
ReplyDeleteतुमको अशक्त न मैं बनने दूँगी.
जाग गयी मेरे अन्दर की नारी,
जन्म पूर्व तुझको न मरने दूँगी..
बहुत ही सुंदर सृजन...! बधाई कैलास जी....
RECENT POST - पुरानी होली.
तुम्हें सिखाऊँगी जग से लड़ना,
ReplyDeleteतुमको अशक्त न मैं बनने दूँगी.
जाग गयी मेरे अन्दर की नारी,
जन्म पूर्व तुझको न मरने दूँगी
बहुत जरूरी वादा जो हर माँ को निभाना है
बेहद मार्मिकता से परिपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत लाज़वाब आदरणीय आपकी रचना।
हार्दिक बधाई
उमड़ी नारी, नारी के लिए अच्छी बात है
ReplyDeleteसुबह हो गई बीती घुप काली रात है
Bahut hi bhawuk aur mrmsparshi rachna..! Sunder khayaal aur ehsaas!
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक भाव, सबकी आवश्यकता है इस जगत को।
ReplyDeleteसार्थकता और सन्देश का भाव देती अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण कविता … प्रभावशाली विचार ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं मर्मस्पर्शी.
ReplyDeleteनई पोस्ट : पंचतंत्र बनाम ईसप की कथाएँ
सार्थक सन्देश देती रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteधन पराया हूँ फिर भी मैं ही तो वल्लरी वंश की बढाती हूँ ।
ReplyDeleteजन्म लेने दो मुझको मत मारो कल के वैभव की नई थाती हूँ॥
बहुत ही सशक्त और सार्थक रचना.
ReplyDeleteरामराम.
महिला दिवस पर प्रेरक पंक्तियाँ...
ReplyDeleteबहुत ही ससक्त और विचारणीय रचना ..... बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteकल 09/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बेहद मार्मिकता से परिपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक भावपूर्ण मार्मिक रचना, आभार आपका।
ReplyDeleteसार्थक भाव लिए मन को छू लेनेवाली रचना...
ReplyDeleteसुंदर सृजन..
ReplyDeleteनारी व्यथा को परिभाषित करने में सफल रचना ।
ReplyDeleteमार्मिक ... मजबूरी और साहस जो केवल माँ ही दे सकती है ... जब वो मजबूरी से पार पा लेगी तभी आशा जगेगी ...
ReplyDeletebahut sundar rachna ............satik aur sarthak bhav.......
ReplyDeleteयदि माँ यह संकल्प ले ले तो उत्तर अवश्य मिलेगा.. अति सुन्दर रचना के लिए बधाई..
ReplyDeleteमंगलकामनाएं माँ को !!
ReplyDeleteसर मुझे आपका ब्लॉग ही आज मिला हैं पर अब लगता हैं सारी पोस्ट्स पढनी पड़ेगी क्यूंकि मुझे लगता हैं कि आप भी मेरी तरह बहुत ज्यादा ही आध्यात्मिक पृवत्ति के हो !!!!!!!!
ReplyDeletenice पोस्ट :-)
sunder ewam arthpurn rachana
ReplyDeleteबहुत गहन और सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteवाह...प्रभावी रचना.....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत खूब आदरणीय!..................................
ReplyDeleteअपने वक्त से संवाद करती बेहद सशक्त रचना।
ReplyDeleteमाँ की प्रेरणा पा कर बेटी दुनिया से जूझ लेगी .
ReplyDeleteholi ki hardik शुभकामनाएं |
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