भागते
रहते जीवन भर
पीछे परछाइयों
के
कभी
आकांक्षाओं की
कभी
रिश्तों की.
नहीं चलती
परछाई
कभी साथ
साथ,
भागती कभी
आगे
रह जाती
कभी पीछे,
ज़िंदगी की
तपिश
जब होती
सर पर
ढूंढ लेती
आश्रय
तुम्हारे
अस्तित्व में.
जीवन
संध्या में
हो जाती
गुम
अन्धकार
के आवरण में
छोड़ सहने
को
दर्द
अकेलेपन का.
काश समझ
पाते
नहीं होता
कोई संबल
किसी
परछाई का,
देती है साथ
केवल
उजाले में
तुम्हारे
अस्तित्व का.
....कैलाश
शर्मा
परछाई की क्रीड़ा निराली है। जब इसकी जरूरत होती यह छोड़ कर चली जाती है।
ReplyDeleteसत्य ........सुंदर कविता
ReplyDeleteजीवन संध्या में
ReplyDeleteहो जाती गुम
अन्धकार के आवरण में
छोड़ सहने को
दर्द अकेलेपन का.......सत्य जीवन का.....
sahi baat ki ...parchhaiyan kab apni huyee hai
ReplyDeleteपरछाई अपनी
ReplyDeleteकिसके समझ
में कभी आई
हरजाई ।
बहुत सुंदर व्याख्या की है परछाई की
ReplyDeleteकाश समझ पाते
ReplyDeleteनहीं होता कोई संबल
किसी परछाई का,
देती है साथ
केवल उजाले में
तुम्हारे अस्तित्व का.
बिलकुल सच कहा आपने ! गहन सोच लिये एक बहुत ही सुंदर रचना !
bahut sundar :)
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteyathaarah umda abhivyakti
ReplyDeletesaadr
हमेशा की तरह सुन्दर व सार्थक , आदरणीय धन्यवाद !
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन - जिंदगी हँसने गाने के लिए है पल - दो पल !
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जीवन संध्या में
ReplyDeleteहो जाती गुम
अन्धकार के आवरण में
छोड़ सहने को
दर्द अकेलेपन का.
vastvikta se ot-prot sundar bhavtamak abhivaykti .badhai
कैसी मृगतृष्णा - जो उबरने भी नहीं देती !
ReplyDeleteनहीं होता कोई संबल
ReplyDeleteकिसी परछाई का,
देती है साथ
केवल उजाले में
तुम्हारे अस्तित्व का.
सच कहा आपने
अजब सी छटपटाहट घुटन कसकन है असह पीडा
ReplyDeleteसमझ लो साधना की अवधि पूरी है ।
अरे घबरा न मन चुपचाप सहता जा
सृजन में दर्द का होना ज़रूरी है ।
अशोक चक्रधर [ इन्हें 2014 में पद्म श्री सम्मान मिला है ।]
-सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपने लिखा....
मैंने भी पढ़ा...
हमारा प्रयास हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 21/04/ 2014 की
नयी पुरानी हलचल [हिंदी ब्लौग का एकमंच] पर कुछ पंखतियों के साथ लिंक की जा रही है...
आप भी आना...औरों को बतलाना...हलचल में और भी बहुत कुछ है...
हलचल में सभी का स्वागत है...
आभार...
Deletezindagi ka bahut hi katy satya hai ye
ReplyDeleteसच है परछाई भी रौशनी हो जीवन में तो साथ देती है ... अन्धेरा अकेले ही पार करना होता है ... इश्वर के सहारे ...
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteअंधेरे में परछाई भी डरती है शायद,,तभी उजाला खोती है.....बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति,आभार आपका।
ReplyDeleteकाश समझ पाते
ReplyDeleteनहीं होता कोई संबल
किसी परछाई का,
देती है साथ
केवल उजाले में
तुम्हारे अस्तित्व का....
jst wow......
सुंदर और अर्थपूर्ण ...
ReplyDeleteगहरी बात .... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुति,आभार आपका।
ReplyDeleteRecent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती
bahut sundar aur gahre bhaw .......
ReplyDeleteनहीं चलती परछाई
ReplyDeleteकभी साथ साथ,
भागती कभी आगे
रह जाती कभी पीछे,
ज़िंदगी की तपिश
जब होती सर पर
ढूंढ लेती आश्रय
तुम्हारे अस्तित्व में.
अर्थपूर्ण अभिव्यंजना सशक्त भाव प्रवाह लिए है यह रचना।
यही जीवन का सत्य... अँधेरे में परछाई भी साथ नहीं देती. भावपूर्ण रचना के लिए बधाई.
ReplyDeleteपर हम सत्य समझ नहीं पाते हैं..सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteमरीचिका की तरह है परछाईं की तलाश...अनजाने ही आकाँक्षाओं और रिश्तों में छाये खोजता फिरता है आदमी...
ReplyDeleteबहुत सुंदर , भाई जी !! मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteनहीं चलती परछाई
ReplyDeleteकभी साथ साथ,
भागती कभी आगे
रह जाती कभी पीछे,
यथार्थपरक सशक्त रचना ....
जीवन के एक यथार्थ सत्य को परछाई का बिम्ब लेकर कितनी सुगमता से समझाया है रचना में ,उजाले में सब साथ देते हैं अपने हिस्से का अन्धकार खुद ही भुगतना होता है ...बहुत खूब हार्दिक बधाई आपको आ० कैलाश जी .
ReplyDeleteसत्य वचन, परछाई हमारी है लेकिन साथ सिर्फ़ उजाले मे देती है
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन के भावो को व्यकत करती एक सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नयी पोस्ट "मै मख्खन बेचता हूँ " पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग manojbijnori12.blogspot.com पर आये
जीवन संध्या में
ReplyDeleteहो जाती गुम
अन्धकार के आवरण में
छोड़ सहने को
दर्द अकेलेपन का-------
परछाई को क्या खूब विश्लेषित किया है
वाह बहुत सुन्दर----
आग्रह है----
और एक दिन
जीवन संध्या में
ReplyDeleteहो जाती गुम
अन्धकार के आवरण में
छोड़ सहने को
दर्द अकेलेपन का.
एकदम सत्य और सार्थक शब्द
बिल्कुल सही कहा है,परछाई जब तक साथ है जब तक हमारा वजूद,अस्तित्व साथ है।
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