मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश:
अठारहवाँ अध्याय
(मोक्षसन्यास-योग-१८.७०-७८) (अंतिम कड़ी)
धर्ममयी इस चर्चा का
जो भी स्वाध्याय करेगा.
ज्ञानयज्ञ के द्वारा मेरी ही
निश्चय वह अर्चना करेगा. (१८.७०)
परित्याग ईर्ष्या का करके
श्रद्धायुक्त हो इसे सुनेगा.
मुक्त सभी पापों से होकर
पुण्यलोक को प्राप्त करेगा. (१८.७१)
क्या तुमने यह सब अर्जुन
करके मन एकाग्र सुना है?
अज्ञानजनित मोह तुम्हारा
क्या सुन इसको दूर हुआ है? (१८.७२)
अर्जुन
मोह नष्ट हो गया है मेरा
लौट आयी है स्मृति भगवन.
सब संदेह मिट गये मेरे
करूँगा अब आज्ञा का पालन. (१८.७३)
संजय
वासुदेव अर्जुन के बीच में
जो संवाद हुआ था राजन.
रोमांचक व विस्मयकारी
मैंने किया है उसका श्रवण. (१८.७४)
महत कृपा व्यास जी की से
परम गुह्य संवाद सुना है.
योग ज्ञान अर्जुन को देते
योगेश्वर से स्वयं सुना है. (१८.७५)
केशव अर्जुन संवाद को
बार बार सुन कर मैं राजन.
मैं आनंदविभोर हो रहा
रोमांचित हो रहा हूँ प्रतिक्षण. (१८.७६)
विस्मय से मैं याद हूँ करता
अद्भुत विश्वरूप का दर्शन.
मुझे महान आश्चर्य हो रहा
पुनः पुनः हर्षित हूँ राजन. (१८.७७)
योगेश्वर श्री कृष्ण जहां हैं
और जहां धनुर्धर अर्जुन.
वहाँ विजय, श्री, वैभव है
ऐसा मेरा मत है राजन. (१८.७८)
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....कैलाश शर्मा
अंतिम कड़ी जैसे अमृत पान कर लिया हो ...
ReplyDeleteये लम्बी श्रंखला बुहत ही अध्बुध और जीवन दर्शन लिए रही ... बहुत बहुत आभार इसकी प्रस्तुति का ...
बहुत ही सुन्दर सुधा पान तुल्य
ReplyDeleteप्रभावकारी अनुवाद बिल्कुल सरल और सहज भाषा में
ReplyDeleteआभार :)
रंगरूट
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (12.09.2014) को "छोटी छोटी बड़ी बातें" (चर्चा अंक-1734)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteआभार..
Deleteकितनी सहजता से व्यक्त किया है आपने भावों को ....
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति
सहज, सुंदर और प्रभावी...आभार!!
ReplyDeleteबहुत आँनंदमय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteउपयोगी काव्यानुवाद।
ReplyDeleteबढ़िया व सुंदर लेखन , सर धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
अर्जुन के मन पर छाया अन्धकार दूर हुआ , प्रेरणा जगी। श्रीकृष्ण के ज्ञानयज्ञ का उद्देश्य पूर्ण हुआ !
ReplyDeleteरसमय भक्तिपूर्ण काव्य !
योगेश्वर श्री कृष्ण जहां हैं
ReplyDeleteऔर जहां धनुर्धर अर्जुन.
वहाँ विजय, श्री, वैभव है
ऐसा मेरा मत है राजन. (१८.७८)
सहज भावपूर्ण सटीक विवरण जो पात्रों को जस का तस खड़ा कर देता है भगवान की गीता के अनुरूप।
बहुत सुन्दर ! सुन्दर आध्यात्मिक प्यास !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteअनुपम अनुवाद
ReplyDeleteमोह नष्ट हो गया है मेरा
ReplyDeleteलौट आयी है स्मृति भगवन.
सब संदेह मिट गये मेरे
करूँगा अब आज्ञा का पालन
काश ऐसा हम सबके साथ हो...
इस गीतामृत के लिए आपका हार्दिक आभार!
ReplyDelete
ReplyDeleteमेरे साथ परेशानी ये रही की मैं आपके ब्लॉग तक थोड़ी देर से पहुंचा और अब लगभग आपका गीता पाठ समाप्ति की ओर है ! मैं पढ़ना चाहूंगा शुरू से , और कोशिश कर रहा हूँ की धीरे धीरे शुरू से आपको पढ़ सकूँ ! बेहतरीन और अनूठी प्रस्तुति है ये ब्लॉग आपका !
bahut hi man bhaya padhna is bhakti bhaav se paripoorna rachna ko.
ReplyDeleteshubhkamnayen
सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नवीनतम रचनाओ को पढ़े !