कागज़ की कश्ती में जाने
कितने सागर पार किये थे,
कंचे, कौड़ी, छल्लों के बदले
कितने ही व्यापार किये थे।
हीरे, पन्नों की चाहत में
धन दौलत के पीछे भगते
वह पल जाने कहाँ खो गये,
कितने सागर पार किये थे,
कंचे, कौड़ी, छल्लों के बदले
कितने ही व्यापार किये थे।
हीरे, पन्नों की चाहत में
धन दौलत के पीछे भगते
वह पल जाने कहाँ खो गये,
कुछ पल वे फ़िर से ले आयें,
चलो आज बचपन ले आयें।
वह मासूम प्रेम के पल थे,
धर्म जाति का भेद नहीं था,
मिलजुल कर के सभी खेलते,
धन दौलत का फ़र्क नहीं था।
सूट, बूट, टाई के अन्दर
वह निर्मलता कहीं दब गयी,
फ़िर से मिलें आज बचपन से
धूल धूसरित तन हो जायें,
धर्म जाति का भेद नहीं था,
मिलजुल कर के सभी खेलते,
धन दौलत का फ़र्क नहीं था।
सूट, बूट, टाई के अन्दर
वह निर्मलता कहीं दब गयी,
फ़िर से मिलें आज बचपन से
धूल धूसरित तन हो जायें,
चलो आज बचपन ले आयें।
थीं छोटी छोटी बातों में खुशियाँ,
दूर हैं खुशियाँ से, सब पा कर,
कुछ पल की खुशियों की ख़ातिर,
हुए हैं गुम रिश्ते सब पथ पर।
भूल गये अपना वो बचपन
नाना नानी से सुनीं कहानी,
आज रज़ाई में बच्चों को
परी लोक की कथा सुनायें,
चलो आज बचपन ले आयें।
दूर हैं खुशियाँ से, सब पा कर,
कुछ पल की खुशियों की ख़ातिर,
हुए हैं गुम रिश्ते सब पथ पर।
भूल गये अपना वो बचपन
नाना नानी से सुनीं कहानी,
आज रज़ाई में बच्चों को
परी लोक की कथा सुनायें,
चलो आज बचपन ले आयें।
बचपन के वे संगी साथी
जाने पथ में कहाँ खो गये,
उन्हें आज़ यदि ढूंढ सकें फ़िर
एक बार बचपन जी जायें,
चलो आज बचपन ले आयें।
जाने पथ में कहाँ खो गये,
उन्हें आज़ यदि ढूंढ सकें फ़िर
एक बार बचपन जी जायें,
चलो आज बचपन ले आयें।
...कैलाश शर्मा
बचपन की यादें ताज़ा करा दीं...बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआभार...
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeleteस्मृतिओं में झांकता बचपन ,बहुत सुन्दर
ReplyDeleteयादों का कारवां रुकता कहाँ है जब बचपन की यादें डेरा जमाने लगती हैं ...
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब ...
इक था बचपन.. इक था बचपन..सुंदर भावों से भरी कविता..
ReplyDeleteबचपन की बातों को बड़े करीने से स्मृतियों के शो केस में सजाया है ! इन्हीं सारी बातों के लिये आज भी मन तरसता है ! और वो पल चुपचाप सिरहाने आ खड़े होते हैं ! बहुत ही प्यारी रचना !
ReplyDeleteबहुत खूब ...बचपन के दिन भी क्या दिन थे......
ReplyDeleteइस प्यारे-से बच्चे की हिम्मत की दाद देती हूँ ,खींच लाया आपका बचपन आपके सामने .
ReplyDeleteइसके साथ का यही तो सुख है!
काश वो बचपन फिर लौट आये
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeleteकाश वो बचपन फिर लौट आये
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना !!
अच्छा लगा बचपन से एकबार फिर मिलकर ! अच्छी रचना !
ReplyDeleteनवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ३
.सुंदर भावों से भरी कविता..
ReplyDeleteआपने तो हमें बचपन में घुमा दिया. पुरानी यादें ताज़ा करा दीं. भुलाये नहीं भूलते वो दिन...आभार !!
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteकागज़ की कश्ती में जाने
कितने सागर पार किये थे,
कंचे, कौड़ी, छल्लों के बदले
कितने ही व्यापार किये थे।
Bahut Sundar
ReplyDeletehttp://swayheart.blogspot.in/2014/09/blog-post.html
बहुत खूब
ReplyDeleteथीं छोटी छोटी बातों में खुशियाँ,
ReplyDeleteदूर हैं खुशियाँ से, सब पा कर,
कुछ पल की खुशियों की ख़ातिर,
हुए हैं गुम रिश्ते सब पथ पर।
भूल गये अपना वो बचपन
नाना नानी से सुनीं कहानी,
आज रज़ाई में बच्चों को
परी लोक की कथा सुनायें,
चलो आज बचपन ले आयें।
काश ! बचपन वापस ले आये कोई