थके क़दम कब तक चल पायें,
मंज़िल नज़र नहीं आती है,
जीवन का उद्देश्य नहीं बस
केवल मील के पत्थर गिनना।
मंज़िल नज़र नहीं आती है,
जीवन का उद्देश्य नहीं बस
केवल मील के पत्थर गिनना।
सफ़र हुआ था शुरू ज़हाँ से
कितने साथ मिले राहों में,
कभी काफ़िला साथ साथ था
अब बस सूनापन राहों में।
कैसे जीवन से हार मान लूँ,
मुझको दूर बहुत है चलना।
कितने साथ मिले राहों में,
कभी काफ़िला साथ साथ था
अब बस सूनापन राहों में।
कैसे जीवन से हार मान लूँ,
मुझको दूर बहुत है चलना।
बना सीढियां सदा सभी को,
पर मैं खड़ा उसी सीढ़ी पर।
मुड़ कर नहीं किसी ने देखा,
जो पहुंचा ऊपर सीढ़ी पर।
सूरज ढला मगर मैं क्यों ठहरूँ,
मुझे चाँद के साथ है चलना।
पर मैं खड़ा उसी सीढ़ी पर।
मुड़ कर नहीं किसी ने देखा,
जो पहुंचा ऊपर सीढ़ी पर।
सूरज ढला मगर मैं क्यों ठहरूँ,
मुझे चाँद के साथ है चलना।
जो कुछ बीत गया जीवन में,
उस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।
उस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।
नहीं काफ़िला, मगर रुकूं क्यों,
सूनापन
लगता जब अपना।
...कैलाश शर्मा
जो कुछ बीत गया जीवन में,
ReplyDeleteउस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।..
यही है आशा और उम्मीद की किरण जो प्रेरित करती है सदा चलते रहने की ...
बहुत ही लाजवाब भावपूर्ण रचना है ...
Prerak abhivykti.....sashakt bhav liye
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बना सीढियां सदा सभी को,
ReplyDeleteपर मैं खड़ा उसी सीढ़ी पर।
मुड़ कर नहीं किसी ने देखा,
जो पहुंचा ऊपर सीढ़ी पर।
सूरज ढला मगर मैं क्यों ठहरूँ,
मुझे चाँद के साथ है चलना।
शानदार प्रेरणादायक शब्द श्री शर्मा जी
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबस चलते जाना. सुंदर भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteसफ़र हुआ था शुरू ज़हाँ से
ReplyDeleteकितने साथ मिले राहों में,
कभी काफ़िला साथ साथ था
अब बस सूनापन राहों में।
कैसे जीवन से हार मान लूँ,
मुझको दूर बहुत है चलना।
सुंदर पंक्तियां
आभार।
आभार...
ReplyDeleteजीवन का उद्देश्य नहीं बस
ReplyDeleteकेवल मील के पत्थर गिनना...खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जीवन को गहराई से देखने की ललक..
ReplyDeleteजो कुछ बीत गया जीवन में,
ReplyDeleteउस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।
सकारात्मक और सार्थक पंक्तियाँ, आशा और विश्वास से परिपूर्ण रचना
उदास होने के बाद भी आत्मप्रेरणा से अपने लिए सकारात्मकता व आशा तलाशना,.....सुन्दर तरीके से बताती कविता।
ReplyDeleteसूरज ढला मगर मैं क्यों ठहरूँ,
ReplyDeleteमुझे चाँद के साथ है चलना।
चरैवेति-चरैवेति को इस अंदाज़ में पढ़ना सुखद लगा।
उम्दा....बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
जो कुछ बीत गया जीवन में,
ReplyDeleteउस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।
नहीं काफ़िला, मगर रुकूं क्यों,
सूनापन लगता जब अपना।
आस और विश्वास जगाती रचना । आपको बधाई।
काफ़िला कहाँ साथ ,जीवन की धूप-छाँही राह अकेले दम पार करनी है - सुन्दर कविता !
ReplyDeleteसकारात्मक भावना से भरी प्रेरणादायक रचना … मंगलकामनाएं
ReplyDeleteवाह आशावाद का रंग लिये .....
ReplyDeleteआशा का संचार करती हुई सुन्दर कविता।
ReplyDeleteआभार..
ReplyDeleteजो कुछ बीत गया जीवन में,
ReplyDeleteउस पर अश्रु बहा क्या होगा।
क्यों अंधियारे से हो समझौता,
जब प्रभात निश्चय ही होगा।
बिलकुल सटीक अभिव्यक्ति
नेता और भ्रष्टाचार!
जीवन का सत्य बयां करती....प्रेरणादायक..सार्थक रचना!
ReplyDeleteआशा के वितान - तले सकारात्मक - सोच । सुन्दर हैं मन के उद्गार ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनहीं काफ़िला, मगर रुकूं क्यों,
ReplyDeleteसूनापन लगता जब अपना।
...............विश्वास जगाती रचना ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
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