मत ढूंढो पगडंडियां
बनायी औरों की
सुखद यात्रा को,
बनाओ अपनी पगडंडी
और चुनो अपनी
एक नयी मंज़िल.
बनायी औरों की
सुखद यात्रा को,
बनाओ अपनी पगडंडी
और चुनो अपनी
एक नयी मंज़िल.
जरूरी तो नहीं सही हो
हर भीड़ वाली राह,
क्यूँ बनते हो हिस्सा
किसी काफ़िले का,
मत चलो किसी के पीछे
थाम कर हाथ उसकी सोच का,
जागृत करो अपनी सोच
अपना आत्म-चिंतन,
समेटो अपनी बांहों में
स्व-अर्जित अनुभव
बनाओ स्वयं अपनी पगडंडी
अपनी मंज़िल को,
खड़े हो धरा पर
अपने पैरों पर अविजित।
मत चलो किसी के पीछे
थाम कर हाथ उसकी सोच का,
जागृत करो अपनी सोच
अपना आत्म-चिंतन,
समेटो अपनी बांहों में
स्व-अर्जित अनुभव
बनाओ स्वयं अपनी पगडंडी
अपनी मंज़िल को,
खड़े हो धरा पर
अपने पैरों पर अविजित।
...कैलाश शर्मा
अत्यंत प्रेरक एवं सार्थक सशक्त रचना !
ReplyDeleteस्वार्जित अनुभव और आत्म चिंतन से जीवन की राह आसान हो जाती है ।
ReplyDeleteप्रेरणादायी रचना ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-06-2015) को "बनाओ अपनी पगडंडी और चुनो मंज़िल" {चर्चा अंक-2007} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार...
Deleteबहुत सुंदर रचना ।
ReplyDeletesundar chintan parak prastuti !
ReplyDeleteआत्मविश्वास को जागृत करनें वाली रचना।बेहतरीन कविता शर्मा जी।
ReplyDeleteBemishal...
ReplyDeleteबहुत खूब। खुद की पगडंडी पर चलने की बात ही कुछ और है।
ReplyDeleteआत्म चिंतन और मंथन से अपनी राह खुद बनती है
ReplyDeleteसुन्दर रचना !!
युवाओं को प्रेरणा देती सार्थक रचना.
ReplyDeleteसमेटो अपनी बांहों में
ReplyDeleteस्व-अर्जित अनुभव
बनाओ स्वयं अपनी पगडंडी
अपनी मंज़िल को,
बहुत सुंदर ! निजता में जीना ही असली जीवन है
बहुत ही प्रेरणास्पद सशक्त रचना आदरणीय।
ReplyDeleteप्रेरक रचना.
ReplyDeleteसही कहा आपने. ज्यादातर लोग लीक से हटकर चलने के बजाय भीड़ के साथ ग़लत रास्ते पर चलना पसंद करते हैं. लीक से हटकर चलना तो अच्छा है लेकिन मुश्किल है. सबसे अलग होने की हिम्मत दिखाएँ और अपनी तक़दीर ख़ुद बनाएँ...सुंदर, सार्थक और प्रेरक रचना...
ReplyDeleteसुंदर, अपनी पग़डंडी और अपनी ही मंजिल बनाती है विजेता।
ReplyDeleteसच ही है मंजिल तो हम निर्धारित कर सकते है पर वहाँ जाने का रास्ता तो हमें ही बनाना होता है प्रेरक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआत्मविश्वास से ही मंजिल तक पंहुचा जा सकता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सच है अपनी राह खुद बना के चलने में जो मजा है ... जो संतुष्टि है ... वो और कहाँ है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव ...
सादर नमस्ते भैया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteप्रेरणादायक रचना है सर
ReplyDeleteबहुत प्रेरक रचना
ReplyDeleteसुंदर और प्रभावी रचना ---- वाह
ReplyDeleteसादर
लक्ष्य की ओर प्रेरित करती सुन्दर - रचना ।
ReplyDeleteआभार ।
जरूरी तो नहीं सही हो
ReplyDeleteहर भीड़ वाली राह,
क्यूँ बनते हो हिस्सा
किसी काफ़िले का,
मत चलो किसी के पीछे
थाम कर हाथ उसकी सोच का,
प्रेरणादायी शब्द ! और नया इतिहास भी वो ही लिखते हैं जो नया रास्ता बनाते हैं ! शानदार अभिव्यक्ति आदरणीय शर्मा जी
उन्मुक्त ज्ञानप्रवाह कराती समझाती कैसे व्यक्ति को स्वयं ही अभिव्यक्त होना चाहिए सबसे अलग।
ReplyDeleteसुन्दरपंक्तियाँ
ReplyDeleteसुंदर
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