जग से है क्यूँ मोह बढाता
कौन हुआ किसका बंजारा।
मिले काफ़िले उन्हें भुला दे
कौन साथ चलता बंजारा।
कौन हुआ किसका बंजारा।
मिले काफ़िले उन्हें भुला दे
कौन साथ चलता बंजारा।
कौन रुका है यहाँ सदा को
कौन ठांव होता अपना है।
सभी मुसाफ़िर हैं सराय में
एक एक सबको चलना है।
पल भर हाथ थाम ले काफ़ी
सदा साथ सपना बंजारा।
सभी मुसाफ़िर हैं सराय में
एक एक सबको चलना है।
पल भर हाथ थाम ले काफ़ी
सदा साथ सपना बंजारा।
अच्छा बुरा कौन है जग में
जो भी मिलता साथ उठाले।
कौन है अपना कौन पराया
जो भी मिलता गले लगाले।
छोड़ यहीं जब सब जाना है
क्यूँ है फ़िर चुनता बंजारा।
कौन है अपना कौन पराया
जो भी मिलता गले लगाले।
छोड़ यहीं जब सब जाना है
क्यूँ है फ़िर चुनता बंजारा।
आज़ नहीं, न कल था तेरा
आने वाला कल क्या होगा।
मेहंदी रचा हाथ में कोई
इंतज़ार कब करता होगा।
थके क़दम पर नहीं है रुकना
नियति तेरी चलना बंजारा।
मेहंदी रचा हाथ में कोई
इंतज़ार कब करता होगा।
थके क़दम पर नहीं है रुकना
नियति तेरी चलना बंजारा।
......©कैलाश शर्मा
सच को उकेरती पंक्तियाँ
ReplyDeleteजीवन दर्शन से भरपूर एक सशक्त प्रस्तुति !
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteआज इस सत्य को लोग भूल चुके हैं। बहुत सुन्दर कवित्व।
ReplyDelete
ReplyDeleteअच्छा बुरा कौन है जग में
जो भी मिलता साथ उठाले।
कौन है अपना कौन पराया
जो भी मिलता गले लगाले।
छोड़ यहीं जब सब जाना है
फ़िर क्यूँ चुनता है बंजारा।
बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपको बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस पोस्ट को, १४ अगस्त, २०१५ की बुलेटिन - "आज़ादी और सहनशीलता" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteआभार..
Deleteभावपूर्ण सुंदर गीत.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ.
सुंदर
ReplyDeleteHAPPY INDEPENDENCE DAY
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
मन कि उपजाऊ धरती पे
ReplyDeleteलेखनी कि कलम चलेगी
आप के ब्लॉग लाज़वाब
गहरे भाव लिय हुए रचना । मेरी ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteकौन रुका है यहाँ सदा को
ReplyDeleteकौन ठांव होता अपना है।
सभी मुसाफ़िर हैं सराय में
एक एक सबको चलना है।
पल भर हाथ थाम ले काफ़ी
सदा साथ सपना बंजारा।
जीवन यही बस है किन्तु सब कुछ जानते हुए भी आदमी राक्षस बना हुआ है !! बहुत ही सुन्दर
नदी का बहना और मानव का चलना ही जीवन ...............
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
सुंदर और सार्थक
ReplyDeletebahut hi saargarbhit rachna----------sir
ReplyDeletebahut hi saargarbhit rachna----------sir
ReplyDeletebahut hi bhavpurn rachna ----sir
ReplyDeleteआज़ नहीं, न कल था तेरा
ReplyDeleteआने वाला कल क्या होगा।
मेहंदी रचा हाथ में कोई
इंतज़ार कब करता होगा।
थके क़दम पर नहीं है रुकना
नियति तेरी चलना बंजारा।
mahtvpurn panktiyan
अच्छा बुरा कौन है जग में
ReplyDeleteजो भी मिलता साथ उठाले।
कौन है अपना कौन पराया
जो भी मिलता गले लगाले।
संसार की नश्वरता को प्रतिबिम्बित करता सुंदर गीत।
नश्वर - जगत को परिभाषित करती सुन्दर - प्रस्तुति ।
ReplyDeleteसच कहा भीड़ केवल आभास देती है साथ होने का लेकिन हर मनुष्य को अकेले ही
ReplyDeleteचलना होता है यही नियति है ! बहुत सार्थक जीवन दर्शन है रचना में, आभार !