अंतस का कोलाहल
रहा अव्यक्त शब्दों में,
कुनमुनाते रहे शब्द
उफ़नते रहे भाव
उबलता रहा आक्रोश
उठाने को ढक्कन
शब्दों के मौन का।
रहा अव्यक्त शब्दों में,
कुनमुनाते रहे शब्द
उफ़नते रहे भाव
उबलता रहा आक्रोश
उठाने को ढक्कन
शब्दों के मौन का।
बहुत आसान है
फेंक देना शब्दों को
दूसरों पर आक्रोश में,
हो जाते शब्द
शांत कुछ पल को
हो जाती संतुष्टि अभिव्यक्ति की।
फेंक देना शब्दों को
दूसरों पर आक्रोश में,
हो जाते शब्द
शांत कुछ पल को
हो जाती संतुष्टि अभिव्यक्ति की।
होने पर शांत तूफ़ान
डूबने उतराने लगते शब्द
पश्चाताप के दलदल में,
हो जाता और भी कठिन
निकलना इस दलदल से।
डूबने उतराने लगते शब्द
पश्चाताप के दलदल में,
हो जाता और भी कठिन
निकलना इस दलदल से।
कब होता है शाश्वत
अस्तित्व तूफ़ान का,
बेहतर है सहलाना शब्दों को
बहलाना रहने को मौन
तूफ़ान के गुज़र जाने तक।
अस्तित्व तूफ़ान का,
बेहतर है सहलाना शब्दों को
बहलाना रहने को मौन
तूफ़ान के गुज़र जाने तक।
....©कैलाश शर्मा
सच में .......
ReplyDeleteबेहतर है सहलाना शब्दों को
बहलाना रहने को मौन
तूफ़ान के गुज़र जाने तक।
सच कहा है शब्दों को इस्तेमाल सावधानी स करना चाहिए ... नहीं तो पछतावा रह जाता है ....
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ...
सुंदर और गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसही कहा है आपने एक बार जिव्हा से निकले वचन वापस नहीं होते, आक्रोश में कहे गए कटु वचन बाद में पछतावे के सिवा और कुछ नहीं देते … गहन भाव
ReplyDeleteशब्दों के बाण बहुत गहरा घाव दे जाते हैं जिस पर कोई मरहम काम नहीं करता ! ये बाण तरकश में ही सजे रहें वही उचित है ! बहुत ही सार्थक एवं सशक्त अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteहोने पर शांत तूफ़ान
ReplyDeleteडूबने उतराने लगते शब्द
पश्चाताप के दलदल में, bahut khoob ...
होनें पर शांत तूफान
ReplyDeleteडूबनें उतरानें लगते शब्द
पाश्चाताप के दलदल में,
हो जाता और भी कठिन
निकलना इस दलदल से।
बिल्कुल सच।खूबसूरत अभिव्यक्ति।
सुंदर रचना ।
ReplyDeleteआभार..
ReplyDeleteआभार..
ReplyDeleteसशक्त।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteआभार...
Deleteबहुत सुंदर भाव.
ReplyDeleteसशक्त भाव
ReplyDeleteबहलाना रहने को मौन
ReplyDeleteतूफान के गुजर जाने तक --मन को छू लेने वाले भाव!
बहलाना रहने को मौन
ReplyDeleteतूफान के गुजर जाने तक --मन को छू लेने वाले भाव!
बहलाना रहने को मौन
ReplyDeleteतूफान के गुजर जाने तक --मन को छू लेने वाले भाव!
बहुत सही कहा है आपने..शब्दों को सोच-समझ कर ही अपना हथियार बनाना चाहिए..मौन सर्वोत्तम उपाय है..
ReplyDeleteशब्द सबसे घातक हथियार हैं ब्रम्हास्त्र की तरह....सच कहा आपने।
ReplyDeleteबेहतरीन , बहुत खूब , बधाई अच्छी रचना के लिए
ReplyDeleteकभी इधर भी पधारें
होने पर शांत तूफ़ान
ReplyDeleteडूबने उतराने लगते शब्द
पश्चाताप के दलदल में,
हो जाता और भी कठिन
निकलना इस दलदल से।
बहुत सुंदर प्रस्तुति. रक्षाबंधन की शुभकामनायें.
सुंदर कविता. शब्दों के प्रभाव से कौन बच पाया है.
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ReplyDeleteबहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति.
बहुत आसान है
ReplyDeleteफेंक देना शब्दों को
दूसरों पर आक्रोश में,
हो जाते शब्द
शांत कुछ पल को
हो जाती संतुष्टि अभिव्यक्ति की।
बहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति.आदरणीय कैलाश शर्मा जी !!
बहुत सही लिखा है आपने । बिना विचारे बोलना कभी -कभी बहुत महंगा पड़ जाता है ।
ReplyDelete" भावो हि विद्यते देवो तस्मात् भावो हि कारणम् ।" भगवान भाव में बसते हैं और शब्द भावों के वाहक हैं इसलिए शब्द को भी " ब्रह्म" कहा जाता है ।
ReplyDeleteआपकी लेखनी प्रणम्य है ।
अच्छी भावनात्मक रचना , सुखद लेखन कैलाश जी
ReplyDeletebahut bahut hi sarthak abhivyakti----sir
ReplyDeleteकब होता है शाश्वत
अस्तित्व तूफ़ान का,
बेहतर है सहलाना शब्दों को
बहलाना रहने को मौन
तूफ़ान के गुज़र जाने तक।
bilkul axarshah ek-ek shabd sachchai liye hue hai---bahut bahut badhai
बहुत उद्विग्न करने वाली स्थिति होती है यह. सुन्दर रचना.
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