आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-10-2015) को "प्रातः भ्रमण और फेसबुक स्टेटस" (चर्चा अंक-2127) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ये एहसास भी अजीब माध्यम है सर कभी इसे अश्कों का समंदर चाहिए तो कभी अपने कातिलों को भी अपनी उम्र दे आती है। गर ये कड़ी साथ है तो फिर से मिलने की बात लाजिमी है. ।
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteमंजिले अपनी जगह है रास्ते अपनी जगह फिर भी दो कदम गर कोई साथ दे तो रहा आसान हो जाती है। सुन्दर रचना।
ReplyDeleteभूल सब ही गिले,
ReplyDeleteआज़ फ़िर से मिलें।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (12-10-2015) को "प्रातः भ्रमण और फेसबुक स्टेटस" (चर्चा अंक-2127) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteवाह! बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, मोती से शब्दों में पिरे हुए अहसास
ReplyDeleteराह कब एक हैं,
ReplyDeleteमोड़ तक तो चलें।
… सच जितना साथ हो उतना खुशनुमा पल हों तो अच्छा है
बहुत सुन्दर
"मोड़ तक तो चलें "
ReplyDeleteबहुत खूब |
आगे बढ़ने को यही विचार आवश्यक हैं. सुंदर कविता.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव..संग साथ बना रहे तो संवाद पुनः घटता है
ReplyDeleteये एहसास भी अजीब माध्यम है सर
ReplyDeleteकभी इसे अश्कों का समंदर चाहिए तो
कभी अपने कातिलों को भी अपनी उम्र
दे आती है। गर ये कड़ी साथ है तो फिर से
मिलने की बात लाजिमी है. ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletekhoobsurat abhivakti ....
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति ! इंसान अगर साथ चल सके उस में भी सुकून के पल मिल जाते हैं !!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
वाह! लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteवाह छोटी बहर में शब्दों की जादूगरी ...
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