नहीं चल पाता सत्य
आज अपने पैरों पर,
वक़्त ने कर दिया मज़बूर
पकड़ कर चलने को
उंगली असत्य की।
आज अपने पैरों पर,
वक़्त ने कर दिया मज़बूर
पकड़ कर चलने को
उंगली असत्य की।
***
चलते
नहीं साथ साथ
हमारे दो पैर भी
एक बढ़ता आगे
दूसरा रह जाता पीछे,
क्यूँ हो फ़िर शिकायत
जब न दे कोई साथ
जीवन के सफ़र में।
हमारे दो पैर भी
एक बढ़ता आगे
दूसरा रह जाता पीछे,
क्यूँ हो फ़िर शिकायत
जब न दे कोई साथ
जीवन के सफ़र में।
***
ढूँढते प्यार हर मुमकिन कोने में
पाते हर कोना खाली
और बैठ जाते निराशा से
पाते हर कोना खाली
और बैठ जाते निराशा से
एक कोने में.
समय करा देता अहसास
छुपी थी खुशियाँ और प्यार
अपने ही अंतर्मन में
अनजान थे जिससे अब तक।
छुपी थी खुशियाँ और प्यार
अपने ही अंतर्मन में
अनजान थे जिससे अब तक।
***
समझौता हर क़दम
अपनी खुशियों से,
कुचलना ख्वाहिशों का
जीवन के हर पल में,
क्या अर्थ ऐसे जीवन का।
अपनी खुशियों से,
कुचलना ख्वाहिशों का
जीवन के हर पल में,
क्या अर्थ ऐसे जीवन का।
समझौतों के साथ जीने से
क्या नहीं बेहतर है
अकेलेपन का सूनापन?
अकेलेपन का सूनापन?
***
...©कैलाश शर्मा
दिल को छूती बहुत सुन्दर क्षणिकाएं...
ReplyDeleteएक लम्बे अंतरालके बाद? सुन्दर प्रस्तुति। आशा है सब कुशल से होंगे आदरणीय?
ReplyDeleteकुछ आलस के कारण ही ब्लॉग जगत से दूर रहा. मैं स्वस्थ हूँ. बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सटीक और सुन्दर क्षणिकाएं लिखी हैं आपने आदरणीय शर्मा जी ...
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (03-12-2018) को "द्वार पर किसानों की गुहार" (चर्चा अंक-3174) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आभार...
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/98.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार..
Deleteउत्कृष्ट अभिव्यक्ति, सटीक संवेदनशील।
ReplyDeleteअसत्य की ऊँगली छू कर चलता सत्य ...
ReplyDeleteसमझोता या अकेलेपन का सूना पन ... बहुत लाजवाब ... हर क्षणिका में छुपा सार्थक स्पष्ट सन्देश ...
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteहृदयगाथा बयान करती सुंदर क्षणिकाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, सार्थक, लाजवाब क्षणिकाएं...
ReplyDeleteसमय करा देता अहसास
छुपी थी खुशियाँ और प्यार
अपने ही अंतर्मन में
अनजान थे जिससे अब तक।
बहुत खूब
ReplyDeleteचलते नहीं साथ साथ
ReplyDeleteहमारे दो पैर भी
एक बढ़ता आगे
दूसरा रह जाता पीछे,
क्यूँ हो फ़िर शिकायत
जब न दे कोई साथ
जीवन के सफ़र में।सार्थक प्रश्न और स्वयं के उत्तरों से खुद को समझती रचना | सस्नेह बधाई आदरणीय |
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