जियो हर पल को
एक पल की तरह
सम्पूर्ण अपने आप में,
न जुड़ा है कल से
न जुड़ेगा कल से।
एक पल की तरह
सम्पूर्ण अपने आप में,
न जुड़ा है कल से
न जुड़ेगा कल से।
***
काश होता जीवन
कैक्टस पौधे जैसा,
अप्रभावित
धूप पानी स्नेह से,
खिलता जिसका फूल
तप्त मरुथल में
दूर स्वार्थी नज़रों से|
कैक्टस पौधे जैसा,
अप्रभावित
धूप पानी स्नेह से,
खिलता जिसका फूल
तप्त मरुथल में
दूर स्वार्थी नज़रों से|
***
दुहराता है इतिहास
केवल उनके लिए
जो रखते नज़र इतिहास पर।
केवल उनके लिए
जो रखते नज़र इतिहास पर।
जो चलते हैं साथ
पकड़ उंगली वर्त्तमान की,
उनका हर क़दम
बन जाता स्वयं इतिहास
अगली पीढी का।
पकड़ उंगली वर्त्तमान की,
उनका हर क़दम
बन जाता स्वयं इतिहास
अगली पीढी का।
***
धुंधलाती शाम
सिसकती हवा
टिमटिमाते कुछ स्वप्न
कसमसाते शब्द
सबूत हैं मेरे वज़ूद का।
सिसकती हवा
टिमटिमाते कुछ स्वप्न
कसमसाते शब्द
सबूत हैं मेरे वज़ूद का।
***
...©कैलाश शर्मा
वाह। सटीक क्षणिकाएं।
ReplyDeleteवर्तमान के हर पल को संजोती सुंदर क्षणिकाएं।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-12-2018) को "सुख का सूरज नहीं गगन में" (चर्चा अंक-3185) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार...
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार...
Deleteजीवन के अनुभवों का विश्लेषण करके लिखी गई एक मार्गदर्शी रचना। बहुत बढ़िया सर...
ReplyDeleteलाजवाब क्षणिकाएं....
ReplyDeleteवाह!!!
हमारे वक्त की आवाज़ है कराहट है यह गीत। जिसमें संगीत भी है राजनीतिक खड़दूम भी ,नुचती छीजती प्रकृति भी कंगाली का आर्तनाद भी चिल्लाहट भी ,राजनीतिक बे -शर्मी की अट्टाहस भी ,सुंदर मनोहर :
ReplyDeleteveerusa.blogspot.com
veerujan.blogspot.com
veerusahab2017.blogspot.com
satshriakaljio.blogspot.com
यह कविता का अर्थ जीवन का मर्म सार समझाती सम्प्रेषण प्रधान कविता कैलाश शर्मा साहब की !
ReplyDeleteveerusa.blogspot.com
veerujan.blogspot.com
veerusahab2017.blogspot.com
satshriakaljio.blogspot.com
यह कविता का अर्थ जीवन का मर्म सार समझाती सम्प्रेषण प्रधान कविता कैलाश शर्मा साहब की !
हमारे वक्त की आवाज़ है कराहट है यह गीत। जिसमें संगीत भी है राजनीतिक खड़दूम भी ,नुचती छीजती प्रकृति भी कंगाली का आर्तनाद भी चिल्लाहट भी ,राजनीतिक बे -शर्मी की अट्टाहस भी ,सुंदर मनोहर :
जियो हर पल को
एक पल की तरह
सम्पूर्ण अपने आप में,
न जुड़ा है कल से
न जुड़ेगा कल से।
***
काश होता जीवन
कैक्टस पौधे जैसा,
अप्रभावित
धूप पानी स्नेह से,
खिलता जिसका फूल
तप्त मरुथल में
दूर स्वार्थी नज़रों से|
***
दुहराता है इतिहास
केवल उनके लिए
जो रखते नज़र इतिहास पर।
जो चलते हैं साथ
पकड़ उंगली वर्त्तमान की,
उनका हर क़दम
बन जाता स्वयं इतिहास
अगली पीढी का।
***
धुंधलाती शाम
सिसकती हवा
टिमटिमाते कुछ स्वप्न
कसमसाते शब्द
सबूत हैं मेरे वज़ूद का।
***
...©कैलाश शर्मा
बहुत खूब
ReplyDeleteवर्तमान के सच को उजागर करती बेहतरीन क्षणिकाएं
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/mitrmandali100.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteयथार्थ के धरातल पर पांव जमा कर चलते चलो।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब।
बहुत खूब ...
ReplyDeleteसच के करीब बैठ कर लिखी सत्य कहती क्षणिकाएं ...
जिन्दा हैं तो सुबूत होना जरूरी है ....
सभी क्षणिकाएँ बेहद भावपूर्ण, बधाई.
ReplyDeleteInsight Online News Portal is a Trusted Online News Portals In Hindi and English to be get latest news update from Bihar and Jharkhand this news portal is better and quality content and daily updated news from Bihar, politics news from Bihar, and Patna latest news update
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं एक से बढ़ कर एक हैं। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक क्षणिकाएं आदरणीय सर | पर ये मुझे बहुत खास लगी मुझे |
ReplyDeleteकाश होता जीवन
कैक्टस पौधे जैसा,
अप्रभावित
धूप पानी स्नेह से,
खिलता जिसका फूल
तप्त मरुथल में
दूर स्वार्थी नज़रों से
सादर बधाई और शुभकामनायें |