Monday, February 04, 2019

मन का आँगन प्यासा है


बरस गया सावन तो क्या है, मन का आँगन प्यासा है।
एक बार फिर तुम मिल जाओ, केवल यह अभिलाषा है।

अपनी अपनी राह चलें हम,
शायद नियति हमारी होगी।
मिल कर दूर सदा को होना,
विधि की यही लकीरें होंगी।

इंतज़ार के हर एक पल ने, बिखरा दिए स्वप्न आँखों के,
रिक्त हुए हैं अश्रु नयन के, मन में गहन पिपासा है।

साथ रहा जो कुछ कदमों का
जीवन भर का दर्द बन गया।
अहसासों में बसती जो गर्मी
अब स्पंदन है सर्द बन गया।

जाने से पहले कुछ कहते, बोझ जुदाई कुछ कम होता,
मौन दे गया प्रश्न अबूझे, अंतस में गहन कुहासा है।

एक जन्म का साथ न पाया,
जन्म जन्म का स्वप्न व्यर्थ है।
फिसल गयी जो रेत हाथ से,
उसके संचय की आस व्यर्थ है।

स्वप्न अधिक न पालो मन में, स्वप्न टूटने पर दुख होता,
हर पल को मुट्ठी में बांधो, जीवन बस एक तमाशा है।

...©कैलाश शर्मा

13 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना। स्वप्न तो स्वप्न ही होते हैं, मन फिर भी इन पर विश्वास कर लेता है और दुख सहता रहता है। जीवन से जुड़ी इस रचना के लिए शुभकामनाएं आदरणीय कैलाश जी।

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  2. दिल के दर्द को शब्दों में खूबसूरती से पिरोया गया है..जीवन एक खेल ही तो है..कभी ख़ुशी कभी गम..

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  3. जाने से पहले कुछ कहते, बोझ जुदाई कुछ कम होता,
    मौन दे गया प्रश्न अबूझे, अंतस में गहन कुहासा है।
    bahut sundar ......no words to say .......

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-02-2019) को "बहता शीतल नीर" (चर्चा अंक-3239) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 6 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  6. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना ...
    मन को छूते हैं सभी छंद ... सिल जे पास जैसे ...

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  7. हर पल को मुट्ठी में बांधने का यत्न आगे के लिये आशान्वित करता रहेगा.

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  8. सुंदर अभिव्यक्ति

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