Thursday, February 14, 2019

क्षणिकाएं


जब भी पीछे मुड़कर देखा
कम हो गयी गति कदमों की,
जितना गंवाया समय
बार बार पीछे देखने में
मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर 
व्यर्थ की आशा में।
****

बदल जाते हैं शब्दों के अर्थ
व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।

****

झुलसते अल्फाज़,
कसमसाते अहसास
होने को अभिव्यक्त,
पूछती हर साँस
सबब वापिस आने का,
केवल एक तुम्हारे न होने से।

...©कैलाश शर्मा

15 comments:

  1. छोटे अल्फ़ाज़,गहरे मायने!

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  2. पहली क्षणिका ने मिल्खा सिंह की ओलम्पिक दौड़ याद दिला दी जिसमे पीछे देखने के चक्कर मे गिरने से वे इतिहास बनाने से चूक गए।
    दूसरी क्षणिका मन के भीतर के कोलाहल को चुनोती दे गयी जो जिह्वा के अचल रहने पर भी मौन नही होता।
    तीसरी क्षणिका में उर्दू के शब्द खले।हिन्दी शब्दों की सुंदरता ही अलग होती!

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  3. बदल जाते हैं शब्दों के अर्थ
    व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
    लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
    अगर समझ पाओ तो।
    - बहुत सार्थक अभिव्यक्ति.

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  4. वाह ! अति सुंदर अभिव्यक्ति !

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  5. सभी क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर और गहरे अर्थ लिए हुए. बधाई कैलाश जी.

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  9. बहुत बढ़िया

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  10. मौत एक शाश्वत सत्य है ...
    बहत ही गहरी बात कुछ शब्दों में कह दी आपने ... लाजवाब ...

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