जब
भी पीछे मुड़कर देखा
कम हो गयी गति कदमों की,
जितना गंवाया समय
बार बार पीछे देखने में
मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर
व्यर्थ की आशा में।
कम हो गयी गति कदमों की,
जितना गंवाया समय
बार बार पीछे देखने में
मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर
व्यर्थ की आशा में।
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बदल जाते हैं शब्दों के अर्थ
व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।
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व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।
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झुलसते अल्फाज़,
कसमसाते अहसास
होने को अभिव्यक्त,
पूछती हर साँस
सबब वापिस आने का,
केवल एक तुम्हारे न होने से।
कसमसाते अहसास
होने को अभिव्यक्त,
पूछती हर साँस
सबब वापिस आने का,
केवल एक तुम्हारे न होने से।
...©कैलाश शर्मा
छोटे अल्फ़ाज़,गहरे मायने!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteपहली क्षणिका ने मिल्खा सिंह की ओलम्पिक दौड़ याद दिला दी जिसमे पीछे देखने के चक्कर मे गिरने से वे इतिहास बनाने से चूक गए।
ReplyDeleteदूसरी क्षणिका मन के भीतर के कोलाहल को चुनोती दे गयी जो जिह्वा के अचल रहने पर भी मौन नही होता।
तीसरी क्षणिका में उर्दू के शब्द खले।हिन्दी शब्दों की सुंदरता ही अलग होती!
बदल जाते हैं शब्दों के अर्थ
ReplyDeleteव्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।
- बहुत सार्थक अभिव्यक्ति.
वाह ! अति सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ बहुत सुन्दर और गहरे अर्थ लिए हुए. बधाई कैलाश जी.
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ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह अनुपम
ReplyDeleteमौत एक शाश्वत सत्य है ...
ReplyDeleteबहत ही गहरी बात कुछ शब्दों में कह दी आपने ... लाजवाब ...
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