Saturday, July 06, 2019

मेरी जीवन अभिलाषा हो


तुम संबल हो, तुम आशा हो,
तुम जीवन की परिभाषा हो।

शब्दों का कुछ अर्थ न होता,
उन से जुड़ के तुम भाषा हो।

जब भी गहन अँधेरा छाता,
जुगनू बन देती आशा हो।

जीवन मंजूषा की कुंजी,
करती तुम दूर निराशा हो।

नाम न हो चाहे रिश्ते का,
मेरी जीवन अभिलाषा हो।

...©कैलाश शर्मा

15 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-07-2019) को "चिट्ठों की किताब" (चर्चा अंक- 3390) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जुगनू की प्रभा भला कब तक दिशा दिखायेगी..दुनियावी प्रेम ऐसे ही होते हैं..सूरज जब तक न मिले मार्ग नहीं मिलता...

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  3. वाह!!बहुत खूब!

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  4. बहुत सुंदर एहसास पिरोए सुंदर प्रस्तुति ।

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  5. दिल पे दस्तक देती....एक सुखद अहसास की भांति

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 10 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. बहुत सुंदर रचना।

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  8. जब भी गहन अँधेरा छाता,
    जुगनू बन देती आशा हो।
    बहुत ही लाजवाब
    वाह!!!

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  9. अच्छी ग़ज़ल... शुभकामनायें

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  10. बहुत बढ़िया

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  11. बहुत ही सुंदर अभिलाषा

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