Thursday, August 08, 2019

क्षणिकाएं


बन न पाया पुल शब्दों का,
भ्रमित नौका अहसासों की
मौन के समंदर में,
खड़े है आज भी अज़नबी से
अपने अपने किनारे पर।
****

अनछुआ स्पर्श
अनुत्तरित प्रश्न
अनकहे शब्द
अनसुना मौन
क्यों घेरे रहते
अहसासों को
और माँगते एक जवाब
हर पल तन्हाई में।
****

रात भर सिलते रहे
दर्द की चादर,
उधेड़ गया फिर कोई
सुबह होते ही.
****

ख्वाहिशों की दौड़ में
भरते जाते मुट्ठियाँ,
पाते विजय रेखा पर
अपने आप को
बिलकुल रीता और अकेला।

...©कैलाश शर्मा

15 comments:

  1. वाह! बहुत गहरे अहसास।

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (10-08-2019) को "दिया तिरंगा गाड़" (चर्चा अंक- 3423) पर भी होगी।


    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

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  3. सुंदर क्षणिकाएं

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  4. रात भर सिलते रहे
    दर्द की चादर,
    उधेड़ गया फिर कोई
    सुबह होते ही.
    बहुत सुन्दर ,भाव अभिव्यक्ति

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  5. रात भर सिलते रहे
    दर्द की चादर,
    उधेड़ गया फिर कोई
    सुबह होते ही.
    वाह!!!
    कमाल का अभिव्यक्ति...

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  6. @रात भर सिलते रहे,दर्द की चादर, उधेड़ गया फिर कोई सुबह होते ही................
    बेहतरीन

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  7. दिल को छूती हुयी हर क्षणिका ... दिल के करीब से लिखी ...
    बहुत सुन्दर ...

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  8. aapka article bahut hi achha hai.
    Me aapka har Ek Article Read karta Hu
    Aise Hi Aap Article Likhte Rahe
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  10. नमन आदरणीय सर 🙏😔🙏😔🙏🙏🙏

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