Saturday, December 10, 2011

क्षणिकाएं और मुक्तक

         (1)
चुरा के रख ली है
आवाज़ तेरी अंतस में,
सताने लगती है 
जब भी तनहाई,
मूँद आँखों को 
सुन लेता हूँ। 

         (2)

सीढ़ी तो बनाई थी
तुम तक पहुँचने को,
पर बदनसीबी,
नींद टूट गयी 
तुम तक पहुँचने से पहले ही।

         (3)
कहने की बातें हैं
मेहनत का फल मीठा है,
बनाते हैं महल
मिलती नहीं 
झोंपड़ी भी। 

         (4)
नींद भी अब साथ देते थक गयी,
आज वह करवट बदल कर सो गयी।
ज़िंदगी सब रंग तेरे देख कर,
मौत से मिलने की ख्वाहिस हो गयी। 

         (5)
ज़िंदगी जी न पाये हम कभी खुल के,
अश्क़ आँखों की कोर पर रहे थम के। 
खुशियाँ देने को सब की चाहत में,
जी रहे अपनी खुशियाँ ताक पे रख के। 
      

48 comments:

  1. अनुभव की मिट्टी से उगी सुन्दर क्षणिकाएं !
    सुन्दर!

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  2. ज़िंदगी जी न पाये हम कभी खुल के,
    अश्क़ आँखों की कोर पर रहे थम के।
    खुशियाँ देने को सब की चाहत में,
    जी रहे अपनी खुशियाँ ताक पे रख के।
    यही असली इन्सान की पहचान होती हैं बहुत सुंदर भाव सभी क्षणिकाएं बहुत सुंदर.......

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  3. क्या बात है सर ! उम्मीद जुड़ती है तो टूट जाने का सबब बौद्धिकता नहीं पूर्वाग्रह होता है , जो आपके सृजन में कहीं नहीं दिखता ......भावनाओं का प्रवाह यूँ ही सतत कायम रहे ..../

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  4. हर क्षणिका जीवन का सार बताती हुयी।

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  5. Sundar aur goodh kshanikaye hai sir ji. Behad acha lga pdh ke

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  6. apki rachit uparukt pancho chanikaye
    bahut hi acchi aur bhavpurn hai...
    ज़िंदगी जी न पाये हम कभी खुल के,
    अश्क़ आँखों की कोर पर रहे थम के।
    खुशियाँ देने को सब की चाहत में,
    जी रहे अपनी खुशियाँ ताक पे रख के।
    lajavab..

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  7. 4 थी क्षणिका बहुत अच्छी लगी सर!

    सादर

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  8. नींद भी अब साथ देते थक गयी,
    आज वह करवट बदल कर सो गयी।
    ज़िंदगी सब रंग तेरे देख कर,
    मौत से मिलने की ख्वाहिस हो गयी....बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति..

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  9. सीढ़ी तो बनाई थी
    तुम तक पहुँचने को,
    पर बदनसीबी,
    नींद टूट गयी
    तुम तक पहुँचने से पहले ही।
    bahut hi badhiyaa

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  10. सारी क्षनिकाएं बेहतरीन है. पर पांचवी सबसे ज्यादा अच्छी लगी.

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  11. सीढ़ी तो बनाई थी
    तुम तक पहुँचने को,
    पर बदनसीबी,
    नींद टूट गयी
    तुम तक पहुँचने से पहले ही।
    behad khoobsurat

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  12. कहने की बातें हैं
    मेहनत का फल मीठा है,
    बनाते हैं महल
    मिलती नहीं
    झोंपड़ी भी।

    सुंदर क्षणिकाएं ....

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  13. सुंदर क्षणिकाएं, जीवन का सार बताती.

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  14. कहने की बातें हैं
    मेहनत का फल मीठा है,
    बनाते हैं महल
    मिलती नहीं
    झोंपड़ी भी।

    दिल की गहराई में उतर कर
    बिल्कुल सच बात कही हैं जी आपने....
    बहुत ही अच्छी प्रस्तुती के लिए बधाई स्वीकारें...

    आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन

    pliz join my blog........

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  15. बहुत सुंदर कैलाश जी,...क्या बात है.
    बहुत ही अच्छी क्षणिकायें,प्यारी पोस्ट
    मेरे पोस्ट में...आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ बातें

    ममता मयी हैं माँ की बातें, शिक्षा देती गुरु की बातें
    अच्छी और बुरी कुछ बातें, है गंभीर बहुत सी बातें
    कभी कभी भरमाती बातें, है इतिहास बनाती बातें
    युगों युगों तक चलती बातें, कुछ होतीं हैं ऎसी बातें

    आपका इंतजार है,...

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  16. नींद भी अब साथ देते थक गयी,
    आज वह करवट बदल कर सो गयी।
    ज़िंदगी सब रंग तेरे देख कर,
    मौत से मिलने की ख्वाहिस हो गया।

    बहुत सुंदर क्षणिकाएँ. अनुपम भावाभिव्यक्ति.

    बधाई.

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  17. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.

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  18. ज़िंदगी की सच्चाई को कहती अच्छी क्षणिकाएँ

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  19. ज़िंदगी जी न पाये हम कभी खुल के,
    अश्क़ आँखों की कोर पर रहे थम के।
    खुशियाँ देने को सब की चाहत में,
    जी रहे अपनी खुशियाँ ताक पे रख के।

    सभी क्षणिकाएँ सारगर्भित हैं...

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  20. हर क्षणिका में जिंदगी की सच्‍चाई छुपी है....
    बहुत खूब लिखा है आपने।

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  21. चुरा के रख ली है
    आवाज़ तेरी अंतस में,
    सताने लगती है
    जब भी तनहाई,
    मूँद आँखों को
    सुन लेता हूँ।

    (2)

    सीढ़ी तो बनाई थी
    तुम तक पहुँचने को,
    पर बदनसीबी,
    नींद टूट गयी
    तुम तक पहुँचने से पहले ही।
    जीवन दर्शन कराती शानदार क्षणिकायें…………बेहतरीन

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  22. उस तुम तक पहुँचने के लिए ही तो हम सीढ़ी बनाते रह जाते हैं आजीवन . आँख खुलती है तो वही अकेले मिलते है खुद को . शाश्वत सत्य ..

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  23. some usolved riddles of life..
    beautifully penned :)

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  24. नायाब.........लाजवाब.........बेहतरीन, शानदार और जानदार क्षणिकायें...........

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  25. नींद भी अब साथ देते थक गयी,
    आज वह करवट बदल कर सो गयी।
    ज़िंदगी सब रंग तेरे देख कर,
    मौत से मिलने की ख्वाहिस हो गयी।

    क्या बात है कैलाश जी , बहुत खूब.

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  26. नींद भी अब साथ देते थक गयी,
    आज वह करवट बदल कर सो गयी।
    ज़िंदगी सब रंग तेरे देख कर,
    मौत से मिलने की ख्वाहिस हो गयी।

    लाजवाब... बेहतरीन क्षणिकायें....

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  27. ज़िंदगी जी न पाये हम कभी खुल के,
    अश्क़ आँखों की कोर पर रहे थम के।
    खुशियाँ देने को सब की चाहत में,
    जी रहे अपनी खुशियाँ ताक पे रख के।

    dil cheer k rakh diya ho mano.

    sari kshanikaaye behtareen.

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  28. नींद भी अब साथ देते थक गयी,
    आज वह करवट बदल कर सो गयी।
    bahut khoob…!

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  29. जीवन के रंग में रंगी सुन्दर क्षणिकाएं !
    आभार !

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  30. बहुत खूब |

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  31. जीवन को गहराई से जीने के बाद ही ये मोती मिलते हैं...आभार!

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  32. पाँचों बहुत ही शशक्त .... लाजवाब ... कुछ शब्दों में दूर की गहरी बात की है ....

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  33. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍त‍ुति ।

    कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, मसीहा बनने का संस्‍कार लिए ....

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  34. jeevan ka sar batati sundar kshanikayen.

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  35. आपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट नकेनवाद पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  36. चुरा के रख ली है
    आवाज़ तेरी अंतस में,
    सताने लगती है
    जब भी तनहाई,
    मूँद आँखों को
    सुन लेता हूँ।

    सोचा कि कुछ पंक्तियों को select कर के कुछ लिखूं
    लेकिन आपने असमर्थ कर दिया हर जगह..किसी एक को चुनुं तो दूसरी के साथ नाइंसाफी होगी...फिर भी इन्हें अपने ज़ेहन से नहीं निकल पा रही हूँ...!!
    सारी ही क्षणिकाएं अपने आप में सुन्दर हैं
    सुन्दर रचना के लिए बधाई...!!

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  37. (5)
    ज़िंदगी जी न पाये हम कभी खुल के,
    अश्क़ आँखों की कोर पर रहे थम के।
    खुशियाँ देने को सब की चाहत में,
    जी रहे अपनी खुशियाँ ताक पे रख के।

    bahut khubsurat pankitiyaan

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  38. नींद भी अब साथ देते थक गयी,
    आज वह करवट बदल कर सो गयी।
    ज़िंदगी सब रंग तेरे देख कर,
    मौत से मिलने की ख्वाहिस हो गयी।


    (5)
    ज़िंदगी जी न पाये हम कभी खुल के,
    अश्क़ आँखों की कोर पर रहे थम के।
    खुशियाँ देने को सब की चाहत में,
    जी रहे अपनी खुशियाँ ताक पे रख के।
    Waise to sabhee kshanikayen behtareen hain,par uprokt dil me ghar kar gayeen!

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  39. अद्भुत क्षणिकाएं हैं सर...
    सादर...

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  40. मन के भावों को बड़ी खूबसूरती से सजाया है शब्दों मे

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  41. हर मुक्तक बहुत अच्छा है परंतु तीसरे में तो आपने अपने अनुभव का निचोड़ ही रख दिया है जैसे।

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  42. दोनो ही रूप बहुत अच्छा लगा।

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  43. बहुत अच्छे लगे क्षणिकाओ के दोनों रूप कमाल की रचना,....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
    चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
    छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
    अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,


    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  44. सारी ही क्षणिकाएं
    हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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