चतुर्थ अध्याय
(ज्ञान-योग - ४.३३-४२)
यज्ञ द्रव्य आदि वस्तु से,
ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ होता है.
कर्म पूर्ण रूप से अर्जुन
ज्ञान रूप में ढल जाता है. (३३)
श्रद्धा, भक्ति और सेवा से,
ज्ञानी जन से जब पूछोगे.
तत्व शास्त्र ज्ञाताओं से
परम ज्ञान शिक्षा पाओगे. (३४)
पाकर ज्ञान जिसे तुम अर्जुन,
मोह प्राप्त फ़िर न तुम होगे.
स्वआत्मा में देखोगे सबको
और सभी को मुझमें पाओगे. (३५)
करने वाले अगर पाप तुम
समस्त पापियों से बढ़ कर.
पार करोगे पाप सभी तुम
ज्ञान रूप नौका पर चढ़ कर. (३६)
जैसे प्रदीप्त अग्नि हे अर्जुन!
लकड़ी जला राख कर देती.
तदा आत्म ज्ञान की अग्नि,
कर्म सभी भस्म कर देती. (३७)
इस पृथ्वी पर ज्ञान के सदृश
कुछ भी पवित्र नहीं है होता.
कर्म योग से हुआ सिद्ध जो
उसे है निज अंतस में पाता. (३८)
श्रद्धावान, संयमित इन्द्रिय,
परम ज्ञान को है वह पाता.
ज्ञान प्राप्ति जैसे ही होती,
परम शान्ति है वह पाता. (३९)
श्रद्धा हीन और अज्ञानी,
संशयवान विनाश है पाता.
दोनों लोक गंवाता है वह,
संशयशील न है सुख पाता. (४०)
त्याग दिया है सब कर्मों को
जिसने कर्म योग के द्वारा.
वह न कर्म बंधन में बंधता
संशय जला ज्ञान के द्वारा. (४१)
ज्ञान रूप तलवार से काटो.
कर्म योग में स्थित होकर
युद्ध कर्म को तुम उठ जाओ. (४२)
......क्रमशः
चतुर्थ अध्याय समाप्त
कैलाश शर्मा
बहुत सहज और सरल शब्दों में सुंदर अनुवाद
ReplyDeleteकर्मयोग की पराकाष्ठा..
ReplyDeleteलाजबाब सुन्दर अनुवाद... सार्थक प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सरल पद्यानुवाद. लिखते जाइये हम इंतजार कर रहे हैं अगली पोस्ट का...
ReplyDeleteपाकर ज्ञान जिसे तुम अर्जुन,
ReplyDeleteमोह प्राप्त फ़िर न तुम होगे.
स्वआत्मा में देखोगे सबको
और सभी को मुझमें पाओगे. ..वाह: बहुत सार्थक प्रस्तुति..आभार कैलाशजी..
है अज्ञान जनित संशय जो,
ReplyDeleteज्ञान रूप तलवार से काटो.
कर्म योग में स्थित होकर
युद्ध कर्म को तुम उठ जाओ
यही तो उत्तम ज्ञान है…………आभार
सुन्दर रचना, सार्थक पोस्ट, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना शुभाशीष प्रदान करें , आभारी होऊंगा .
श्रद्धावान, संयमित इन्द्रिय,
ReplyDeleteपरम ज्ञान को है वह पाता.
ज्ञान प्राप्ति जैसे ही होती,
परम शान्ति है वह पाता.
सत्य वचन ! आभार!
श्रद्धा का भण्डार है, सारा गीता ज्ञान।
ReplyDeleteपढ़ना इसको ध्यान से, इसमें है विज्ञान।।
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ReplyDeleteबहुत अच्छा अनुवाद कर रहे हैं पढने में बहुत सहज हो गया है हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति...बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सरल पद्यानुवाद. .....
ReplyDeleteलाजबाब ......... सार्थक प्रस्तुति.
greatly translated.. made it easy to understand..
ReplyDeletethanks
postingan yang bagus tentang"श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२१वीं-कड़ी)"
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