चतुर्थ अध्याय
(ज्ञान-योग - ४.१०-१९)
राग, क्रोध, भय को तज कर,
सच्चे मन से शरण में आया.
ज्ञान यज्ञ से कर पवित्र मन,
उसने मेरे स्वरुप को पाया.
जैसे भाव सहित वह आता,
उसी भाव से मैं अपनाता.
पार्थ कोई भी मार्ग चुने वह,
मेरा मार्ग ही है अपनाता.
चाहें जो फल कर्म यहीं पर,
शरण देवताओं की वे जाते.
मनुज लोक में कर्मों के फल,
शीघ्र मनुज को हैं मिल जाते.
कर्म और गुण पर आधारित
चार वर्ण का सर्जक हूँ मैं.
यद्यपि इन कर्मों का कर्ता,
पर अकर्म अविनाशी हूँ मैं.
नहीं कर्म फल की इच्छा,
लिप्त कर्म मुझे न करता.
मुझे जानता है जो ऐसे,
वह भी कर्मों से न बंधता.
इस रहस्य को जान पूर्व में,
मुमुक्षुओं ने कर्म किया था.
अपना कर्म करो वैसे ही,
पूर्वज जन ने पूर्व किया था.
क्या है कर्म, अकर्म है कैसा,
भ्रमित विवेकी भी हो जाते.
वह कर्म, अकर्म बताता हूँ मैं
जान जिसे सब मोक्ष हैं पाते.
तत्व कर्म का ज्ञान योग्य है,
और अकर्म को भी समझो.
जानो रूप निषिद्ध कर्म का,
गहन गति कर्मों की समझो.
जो अकर्म कर्म में देखे,
और कर्म अकर्म में बूझे.
बुद्धिमान योगी वह जन है,
सब निष्पन्न कर्म हैं उसके.
समारंभ सारे कर्मों का
फल इच्छा के बिना हैं करते.
ज्ञानाग्नि में कर्म जलाये,
ज्ञानी उसे ही पंडित कहते.
.........क्रमशः
कैलाश शर्मा
तत्व कर्म का ज्ञान योग्य है,
ReplyDeleteऔर अकर्म को भी समझो.
जानो रूप निषिद्ध कर्म का,
गहन गति कर्मों की समझो.
कर्मों की गति अति गहन है...ज्ञानी जन भी इसे समझ नहीं पाते...
ज्ञानवर्धक पोस्ट !
अद्भुत ………आनन्ददायक
ReplyDeleteराग, क्रोध, भय को तज कर,
ReplyDeleteIf I can implement this..
purpose of life is solved..
राग, क्रोध, भय को तज कर,
ReplyDeleteसच्चे मन से शरण में आया.
ज्ञान यज्ञ से कर पवित्र मन,
उसने मेरे स्वरुप को पाया.
बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक रचना के लिए आपका आभार ... क्रमशः का इंतजार है
बहुत सुंदर और ज्ञानवर्धक पोस्ट
ReplyDeleteनहीं कर्म फल की इच्छा,
ReplyDeleteलिप्त कर्म मुझे न करता.
मुझे जानता है जो ऐसे,
वह भी कर्मों से न बंधता......sundar
वाह ... अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ..आभार
ReplyDeleteफल की चिंता किये बगैर ,
ReplyDeleteकर्म करें |
बढ़िया भाव -
सहज सौन्दर्य ||
क्या है कर्म, अकर्म है कैसा,
ReplyDeleteभ्रमित विवेकी भी हो जाते.
वह कर्म, अकर्म बताता हूँ मैं
जान जिसे सब मोक्ष हैं पाते.
यही कर्म का सन्देश तो सभी की समझ में आना चाहिए ना ....आप बेहतर पद्यानुवाद कर रहे हैं ....!
Lagta hai padhti rahun...
ReplyDeleteउतरा रहें हैं, बस..
ReplyDeleteकर्म कए जा,
ReplyDeleteफल की चिंता,
ना कर तू इंसान
ये है गीत्ता का ज्ञान ,,,
बढ़िया पद्यानुवाद,,,,,,
MY RECENT POST...:चाय....
बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक पोस्ट..
ReplyDeleteउत्कृष्ट :-)
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
ReplyDelete~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
*****************************************************************
उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
***********************************************
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
ReplyDelete~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~
*****************************************************************
उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
***********************************************
~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^~^
**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**♥**
कर्म अकर्म की व्याख्या । सुंदर पद्यानुवाद ।
ReplyDeleteमनन योग्य प्रशंसनीय प्रस्तुति..
ReplyDelete