Friday, July 20, 2012

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (२२वीं-कड़ी)


पंचम अध्याय
(कर्मसन्यास-योग - ५.१-१०) 


अर्जुन 


कभी कर्म सन्यास श्रेष्ठ है, 
कर्म योग की कभी प्रशंसा.
निश्चित श्रेष्ठ कौन दोनों में,
कृष्ण करो उसकी अनुशंसा. (१)


श्री भगवान 


कर्म योग व कर्म सन्यास,
दोनों ही हैं मुक्ति प्रदाता.
मगर कर्म सन्यास अपेक्षा,
कर्म योग श्रेष्ठ कहलाता. (२)


नहीं किसी के लिये द्वेष है,
वह न कोई आकांक्षा रखता.
वह निर्द्वन्द्व नित्य सन्यासी
सहज मुक्त बंधन है रहता. (३)


सांख्य और योग में अंतर 
केवल अज्ञानी जन हैं करते.
एक मार्ग में भी स्थित हो,
वह दोनों का ही फल लभते. (४)


सांख्य मार्ग से मिले जो मंजिल
वही कर्म योगी भी पाता.
सांख्य व योग को एक मानता 
वही सत्य का ज्ञाता होता. (५)


बिना कर्म योग के अर्जुन 
दुष्कर है सन्यास प्राप्ति.
कर्म योग निष्ठा से करके
शीघ्र ही होती ब्रह्म प्राप्ति. (६)


योगयुक्त, शुद्धचित्त जन जो
जीत इन्द्रियों को है लेता.
सर्व आत्माओं से तदात्म कर, 
करके कर्म भी लिप्त न होता. (७)


हो जाता जो युक्त ब्रह्म से 
और तत्व वेत्ता जो होता.
कर्म इन्द्रियों से कर यह समझे
मैं न कर्म का कर्ता होता. (८)


इन्द्रिय जनित कर्म सब करके,
ज्ञानी जन है सदा समझता.
इन्द्रिय इन्द्रिय विषयों को करतीं,
उनमें है वह लिप्त न होता. (९)


ब्रह्म समर्पित कर कर्मों को,
तज आसक्ति कर्म जो करता.
पाप कर्म से लिप्त न होता,
जैसे जल में कमल का पत्ता. (१०)


               ........क्रमशः


कैलाश शर्मा 

13 comments:

  1. कर्म योग व कर्म सन्यास,
    दोनों ही हैं मुक्ति प्रदाता.
    मगर कर्म सन्यास अपेक्षा,
    कर्म योग श्रेष्ठ कहलाता.
    बिल्कुल सटीक..

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  2. बहुत सार्थक एवं भावपूर्ण प्रस्तुति...

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  3. पूर्ण निष्ठां से कर्म करने पर जरुर
    सफलता मिलती है...बहुत बेहतरीन सार्थकता लिए दोहे...:-)

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  4. इन्द्रिय जनित कर्म सब करके,
    ज्ञानी जन है सदा समझता.
    इन्द्रिय इन्द्रिय विषयों को करतीं,
    उनमें है वह लिप्त न होता

    बहुत सटीक ज्ञान और बहुत सरल भाषा में, आभार!

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  5. कर्म योग व कर्म सन्यास,
    दोनों ही हैं मुक्ति प्रदाता.
    मगर कर्म सन्यास अपेक्षा,
    कर्म योग श्रेष्ठ कहलाता.,,,,,

    सटीक सार्थकता लिए दोहे...

    RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

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  6. कभी कर्म सन्यास श्रेष्ठ है,
    कर्म योग की कभी प्रशंसा.
    निश्चित श्रेष्ठ कौन दोनों में,
    कृष्ण करो उसकी अनुशंसा. (१)

    भावपूर्ण अर्थानुवाद .पूरा अध्याय सार स्पष्ट .बिदाई महाप्रयाण पर .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    शुक्रवार, 20 जुलाई 2012
    क्या फर्क है खाद्य को इस्ट्यु ,पोच और ग्रिल करने में ?
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    कौन सा तरीका सेहत के हिसाब से उत्तम है ?
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  7. कर्म या योग या कर्मयोग..सुन्दर भावानुवाद..

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  8. कर्म योग व कर्म सन्यास,
    दोनों ही हैं मुक्ति प्रदाता.
    मगर कर्म सन्यास अपेक्षा,
    कर्म योग श्रेष्ठ कहलाता.
    सशक्‍त भाव लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति आभार

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  9. इतना सरल व सहज शब्दों में गीता को पढ़ना अलग ही आनंद देता है ..आपकी कृपा से ..

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  10. कर्मयोग का सुंदर सिद्धांत सरल शब्दों में.

    बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  11. उत्कृष्ट रचना

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  12. सरल भाषा में गूढ़ ज्ञान को बाँट रहें हैं आप ... बहुत शुक्रिया ...

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  13. सहज सरल सुन्दर बोध गम्य भावपूर्ण प्रस्तुति .शुक्रिया .

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