नहीं बैठता कागा
इस घर की मुंडेर पर,
नहीं सुनायी देती
अब उसकी आवाज़,
गुज़र जाता मौन
छत के ऊपर से,
पता है उसको
नहीं आता कोई
इस सुनसान घर में,
नहीं चाहता जगाना
झूठी आशा
तन्हा दिल में।
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सुनी है कभी
खामोशी की आवाज़
चीखती है सन्नाटे में
मिटाने को अकेलापन
सुनसान कोनों का.
.....कैलाश शर्मा
ऐसे वीराने में एक दिन घुट के...................
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति गुरुवार को चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है |
ReplyDeleteआभार
आभार...
Deleteभावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteExtremely well written and well presented .. kudos to u
ReplyDeleteplz visit :
http://swapnilsaundaryaezine.blogspot.in/2014/01/vol-01-issue-04-jan-feb-2014.html
namste bhaiya .......sundar
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteसुंदर भाव.......
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ReplyDeleteसुन्दर भाव संयोजन
ReplyDeletekhoobsurat rachna ..
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ! मर्म को छूती बहुत ही कोमल रचना ! अति सुंदर !
ReplyDeleteप्रणाम सरजी... ! बेहतरीन उदास रचना.. ! शून्य का कर्कश कालापन.. !
ReplyDeleteवाह !
मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteसुनी है कभी
खामोशी की आवाज़
चीखती है सन्नाटे में
मिटाने को अकेलापन
सुनसान कोनों का.
मौन के चीत्कार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteखामोशी की आवाज़
ReplyDeleteचीखती है सन्नाटे में .... WAKAI.. BOHAT KHOOB
खामोशियाँ ...भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आपका-
बहुर सुन्दर भाव से सजी रचना !
ReplyDeleteनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
कल 10/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
शुक्रिया....
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कहीं ठंड आप से घुटना न टिकवा दे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया...
Deleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteतनहाई होती ही है जानलेवा। बहुत भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDeleteख़ामोशी ,सुनसान और आवाज की जुगलबंदी कमाल है !
ReplyDeletesundar post
ReplyDeleteबेहतरीन मर्मस्पर्शी रचना कैलाशा जी
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम
ReplyDeleteयही तो अच्छी तरह सुनाई देती है। सुंदर रचना
ReplyDeleteसन्नाटे की चीख और खामोशी की आवाज़ .... वाह !
ReplyDeleteबहुत शोर करती है कभी-कभी ये ख़ामोशी भी … मर्मस्पर्शी भाव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteutam
ReplyDeleteइस मौन में भी कोई बोलता है...सर पर हाथ कोई अदृश्य डोलता है...आभार !
ReplyDeleteकई बार चुभती तो है आवाज़ कागा की ... पर फिर लगता है जरूरी है ये तन्हाई के आलम से बाहर आने को ...
ReplyDeleteकाश की कागा हर मुंडेर पे बोले ...
आशा से आकाश थमा है ।
ReplyDeleteवाह!
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