बहुत बहाये हैं आंसू इन नयनों ने,
अब तो बाक़ी कुछ तर्पण को रहने दो.
क्यों बेमानी हो गये शब्द,
भावों के सोते सूख गये.
कहने को कितनी बातें थीं,
क्यों अधर न जाने रूठ गये.
बहुत भटकता रहा ख्वाब के ज़ंगल में,
कुछ देर हकीक़त के दामन में रहने दो.
क्यों परसा मौन है जीवन में,
क्यों स्वप्न हो गए रंग हीन.
आशा की लहर जो आयी थी,
क्यों हुई किनारे पर विलीन.
अब नहीं चाहता कोई कांधा रोने को,
अपने जीवन की लाश स्वयं ही ढ़ोने दो.
चाहत के बीज क्यों बोये थे,
क्यों फल पाने की इच्छा की.
कुछ समय दिया होता ख़ुद को
मन होता आज न एकाकी.
देख लिए हैं बहुत रूप तेरे जीवन,
अब चिरनिद्रा में मुझे शांति से सोने दो.
....कैलाश शर्मा
जीवन की सत्यता छुपी हुई है आपकी रचना मेँ
ReplyDeleteजीवन का सच यही है माना ..पर ये उदासी क्यो...?
ReplyDeleteजीवन का मर्म सिखाती पंक्तियाँ..फल की इच्छा नहीं करनी है यही तो कृष्ण ने कहा है..
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteकितना सोचें, अब रुक कर बैठें। गहरा अनुभव उभर कर आया है कविता में।
ReplyDeleteक्यों बेमानी हो गये शब्द,
ReplyDeleteभावों के सोते सूख गये.
कहने को कितनी बातें थीं,
क्यों अधर न जाने रूठ गये.so nice aage kuchh kahne ki jarurat hi nahi hai ati ki prakashtha hai ye ......
अन्ततः जीवन एकान्त ही सम्हाला जाता है।
ReplyDeleteमर्मसपर्शी भाव लिए बेहतरीन रचना..
ReplyDeleteचाहत के बीज क्यों बोये थे,
ReplyDeleteक्यों फल पाने की इच्छा की.
कुछ समय दिया होता ख़ुद को
मन होता आज न एकाकी.
सच्चाई को कहती खूबसूरत रचना ।
भाव विह्वल करती हुई रचना...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
~सादर
चाहत के बीज क्यों बोये थे,
ReplyDeleteक्यों फल पाने की इच्छा की.
कुछ समय दिया होता ख़ुद को
मन होता आज न एकाकी.
एकल मन की व्यथा बहुत खूबसूरती से उकेरी है ...!!
उत्कृष्ट रचना ! भावुकता से ओतप्रोत मर्मस्पर्शी रचना ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteगुज़री यादों को बुलाओ .एकाकीपन दूर भगाओ ....
ReplyDeleteबुढ़ापे की बस एक कहानी
सब ने कही,हमने मानी ......
शुभकामनायें!
सच लिखा है..इतने कोलाहल और रौशनी के बीच आखिर ढूंढना होता है अपना कोना. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteyahi jeevan hai shayad...sundar marmsparshi rachna
ReplyDeleteक्यों बेमानी हो गये शब्द,
ReplyDeleteभावों के सोते सूख गये.
कहने को कितनी बातें थीं,
क्यों अधर न जाने रूठ गये.
जीवन का एक ये भी रंग है जिसे हमें जीना होता है.... बहुत सुंदर....
चिरनिंद्रा की बातें क्यों ... मन तो स्थिति का मारा है कभी एकाकी तो कभी भीड़ ...
ReplyDeleteअत्यंत गहन और सारगर्भित रचना |
ReplyDeleteबहुत गंभीर विषय़ है और कविता उत्कृष्ट। पर
ReplyDeleteअभी बहुत कुछ लिखना है
यह कलम हमेशा चलने दो।
उत्कृष्ट रचना
ReplyDeleteअदभुत रचना!! वाह!
ReplyDeleteसत्य है...संवेनशील रचना ..
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये
ReplyDeletejavnice
ReplyDeletenice
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क्यों बेमानी हो गये शब्द,
ReplyDeleteभावों के सोते सूख गये.
कहने को कितनी बातें थीं,
क्यों अधर न जाने रूठ गये.
भाव और अर्थ सौंदर्य लिए सुन्दर रचना।
कभी भीड़ तो कभी एकाकीपन यह एक सत्य है जीवन का
ReplyDeleteगहन भाव लिए सुन्दर रचना !