Monday, January 04, 2016

ज़ब ज़ब शाम ढली

ज़ब ज़ब शाम ढली,
हर पल आस पली।

ज़ीवन बस उतना,
जब तक सांस चली।

दिन गुज़रा सूना,
तनहा शाम ढली।

खुशियाँ कब ठहरी,
कल पर बात टली।

सूनी राह दिखी,
मन में पीर पली।

अपना कौन यहाँ,
झूठी आस पली।

मंज़िल दूर नहीं,
सांसें टूट चली।

...©कैलाश शर्मा

21 comments:

  1. अत्यंत भावपूर्ण रचना ! बहुत सुन्दर !

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  2. सबकुछ झूठा है संसार में ..पर माया मोह में फंसे हम समझकर भी नासमझ बने रहते हैं जब तक जीते हैं ...
    बहुत बढ़िया चिंतनशील रचना

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  3. सुन्दर सार्थक रचना !

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  4. सुन्दर और भावपूूर्ण रचना

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  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन - जन्मदिवस : कवि गोपालदास 'नीरज' , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. बहुत सुंदर रचना।

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  7. अहा क्‍या बात है...। बहुत ही सुंदर रचना। ठहर कर पढ़ने योग्‍य। बहुत खूब।

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  8. सार्थक और सुन्दर शब्द आदरणीय शर्मा जी ! कुछ पंक्तियाँ बहुत ही विशिष्ट बन पड़ी हैं !!

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  9. खूबसूरत रचना।

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  10. सरल सहज सुन्दर स्पष्ट ..आनंदम आनंदम सर | बहुत ही सुन्दर

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  11. बहुत सरस ..सुन्दर !

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  12. सुन्दर जीवन से जुड़ी अभिव्यक्ति

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  13. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
    नववर्ष की बधाई!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  14. ऐसा ही कुछ है जीवन..कब छोड़ दिया, कब छूट चला।

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  15. स्वागतम ।
    seetamni. blogspot. in

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  16. शायद ज़िन्दगी की सांझ ऐसे ही ढलती है ...

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  17. सच अहि जब तक सांस है तब तक जीवन है ... और इस जीवन के खेल खेलने होते हैं ...
    जीवन की सांझ की झलक दिखाती रचना ...

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