जानता हूँ आंधी में जलाना दीप व्यर्थ है,
रिसती हो नाव तो सागर न पार होता है.
हार कैसे मान लूं , संघर्ष ही किये बिना,
माना बिना सिक्के के व्यापार नहीं होता है.
पैर तो उठा, शूल चुभने दे पाँव में,
बिना कांटे के तो सिर्फ राजपथ होता है.
धूप में निकल, कुछ आने दे स्वेद बिंदु,
फिर भी न मिले तो नसीब वह होता है.
चाँद दिखलाये राह, सबका नसीब कहाँ,
एक तारे का भी क्या सहारा नहीं होता है.
आंधी है तो क्या?ओट हाथ की ज़लाले दीप,
कुछ क्षण का ही क्या उजाला नहीं होता है.
3.5/10
ReplyDeleteअच्छा प्रयास
हार माननी भी नही चाहिये……………बेहद सुन्दर रचना।
ReplyDeletekhubsurat rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर... हिम्मत-ऐ मर्दा मर्द-ऐ -खुदा |
ReplyDeleteऔर हिम्मत से काम करने वालो को ही खुदा साथ देता है.. सोच में हिम्मत जगाने वाली रचना
आंधी है तो क्या?ओट हाथ की ज़लाले दीप,
ReplyDeleteकुछ क्षण का ही क्या उजाला नहीं होता है.
बहुत सुन्दर रचना.
बेहद सुन्दर रचना।
ReplyDelete@उस्ताद जी
ReplyDelete@वन्दना जी
@दीप्ति जी
@डॉ.नूतन जी
@वर्मा जी
आपके प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद...आभार..
पैर तो उठा, शूल चुभने दे पाँव में,
ReplyDeleteबिना कांटे के तो सिर्फ राजपथ होता है.
धूप में निकल, कुछ आने दे स्वेद बिंदु,
फिर भी न मिले तो नसीब वह होता है.
बहुत खूब ....!!
बड़ी प्रेरणादायी और सकारात्मक रचना है....हौसला देने वाली पंक्तियाँ.....आभार
ReplyDelete.
ReplyDeleteहार कैसे मान लूं , संघर्ष ही किये बिना,...
This should be the spirit !
.
वाह बहुत उत्साहवर्धन करने वाली रचना के लिए आभार.
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचना ....आभार
ReplyDelete@Patali-The-Village
ReplyDelete@हरकीरत जी
@डॉ.मोनिका जी
@डॉ.दिव्या जी
@अनामिका जी
@रानी जी
आपकी प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद...आभार.
जिंदगी तो तमाम पराजयों के पार जाने का नाम है. समूची रचना इस प्रेरणादायक संदेश को बेहद खूबसूरती से उकेरती है. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
.
ReplyDelete....हार कैसे मान लूं , संघर्ष ही किये बिना,....
जितनी बार पढ़ती हूँ, ये पक्ति बार-बार मेरा ध्यान आकृष्ट करती है। बहुत ही प्रेरक।
.
मन में किये संकल्प को
ReplyDeleteनिभाते रहने की सीख सिखाती हुई
यह अनुपम गीतिका
सच में मन-भावन है
बधाई .
धूप में निकल, कुछ आने दे स्वेद बिंदु,
ReplyDeleteफिर भी न मिले तो नसीब वह होता है.
नसीब की ऐसी परिभाषा दुनिया के किसी किताब में नहीं मिलेगी.बहुत बड़ी बात कैलाश जी.
हिम्मत बढ़ाने वाली रचना ।
ReplyDeleteअहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
ReplyDeleteकल 01/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसंघर्ष केलिए प्रेरणा देती उत्तम रचना !
ReplyDelete: रिश्तेदार सारे !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete