कोई कठिन तो नहीं,
ज़रुरत है
सिर्फ चार दीवार
और ऊपर छत
की.
काश
घर बनाना भी इतना ही
आसान होता.
लेकिन
केवल ईंट, गारा, पत्थर जोड़कर
दीवार और छत बनाने से
घर नहीं बनता,
चाहिए इस के लिये
आपसी विश्वास की ईंट,
स्नेह का गारा,
सहयोग का प्लास्टर
और
बुजुर्गों के सम्मान
की छत.
स्टील, सीमेंट , कंक्रीट
से बने जंगल
जिसमें रहते हैं केवल रोबोट,
परिवार नहीं,
जिसमें रहते हैं केवल रोबोट,
परिवार नहीं,
भरभराकर
गिर रहे हैं,
असहिष्णुता और स्वार्थ
के भूकम्प के
एक हलके झटके से.
प्रेम, विश्वास
की मिट्टी से बनी
कच्ची झोंपड़ियाँ ,
झेल चुकी हैं
जाने कितने भूकम्प के झटके,
और आज भी खड़ी हैं
परस्पर स्नेह और सम्मान
की नींव पर.
मैंने एक घर बनाने की,
लेकिन कहीं नहीं मिला
स्नेह का गारा,
विश्वास की ईंट,
और सम्मान की छत.
जो बना
वह रह गया बनकर
केवल एक मकान,
जो इंतज़ार में है
भरभरा कर गिरने को
स्वार्थ और लालच के
एक हलके भूकम्प के
झटके से.
आपको धन्यवाद कहने के लिए शब्द नहीं है, लेकिन भावनाएं, इस् कविता को पढकर, आपके आभार से सरोबार है। इस कविता में बहुत बेहतर, बहुत गहरे स्तर पर एक बहुत ही छुपी हुई करुणा और गम्भीरता है। आपकी इस कविता में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteया देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभिधीयते।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
दुर्नामी लहरें, को याद करते हैं वर्ल्ड डिजास्टर रिडक्शन डे पर , मनोज कुमार, “मनोज” पर!
मेरे ख्याल से मनोज जी के कहने के बाद हमारे कहने को तो कुछ बचता ही नही…………पूरी तरह सहमत हूँ।
ReplyDeleteपूरी तरह सहमत हूँ।
ReplyDeleteला-जवाब........ जबर्दस्त!!
आपको नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएं .
@मनोज जी
ReplyDelete@वन्दना जी
@संजय जी
आपकी प्रोत्साहनात्मक प्रतिक्रियाओं के लिए धन्यवाद..आप सभी को नवरात्रि की बहुत शुभ कामनायें..जय माता दी..
बहुत कोशिश की
ReplyDeleteमैंने एक घर बनाने की,
लेकिन कहीं नहीं मिला
स्नेह का गारा,
लाजवाब रचना... बहुत सुन्दर
स्नेह का गारा मिले तो बने घर
आपकी रचना पढ़कर मुग्ध हूँ
ReplyDeleteमन की त्वरित प्रतिक्रिया यही थी - "बेहतरीन"
समय और समाज को चंद शब्दों में अत्यंत खूबसूरती से व्यक्त किया है
आभार & शुभ कामनाएं
@वर्मा जी
ReplyDelete@प्रकाश जी
आपकी प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद...नवरात्रि की हार्दिक शुभ कामनाएं...
बहुत कोशिश की
ReplyDeleteमैंने एक घर बनाने की,
लेकिन कहीं नहीं मिला
स्नेह का गारा,
निशब्द कर देने वाले भाव.... मन को छूने और कुछ सोचने को विवश करती रचना....
आज की तथाकथित सभ्य संसार में मकान अधिक हैं और घर इक्का दुक्का। समाज की विद्रूपता को आपने सफलतापूर्वक शब्दों में निरूपित किया है।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ...आज बस माकन ही रह गए हैं ...
ReplyDeleteमकान.... त्रुटि सुधार
ReplyDeleteकेवल ईंट, गारा, पत्थर जोड़कर
ReplyDeleteदीवार और छत बनाने से
घर नहीं बनता,
चाहिए इस के लिये
आपसी विश्वास की ईंट,
स्नेह का गारा,
सहयोग का प्लास्टर
और
बुजुर्गों के सम्मान
की छत...
घर की बेहतरीन परिकल्पना... आभार !
.
bahot sunder rachna.
ReplyDelete@डॉ.मोनिका जी
ReplyDelete@महेंद्र जी
@संगीता जी
@डॉ.दिव्या जी
आपके मार्ग दर्शन और प्रोत्साहन मेरे लिए अमूल्य हैं...आभार..
बहुत कोशिश की,
ReplyDeleteमैंने एक घर बनाने की,
लेकिन कहीं नहीं मिला
स्नेह का गारा,
विश्वास की ईंट,
और सम्मान की छत.
जो बना
वह रह गया बनकर
केवल एक मकान,
बहुत ही सुन्दरता से आपने व्यक्त किया है मनोभावों को, इस अनुपम प्रस्तुति के लिये बधाई के साथ आभार ।
Mridula ji, thanks for your encouraging comments...Regards
ReplyDeleteSada ji, thanks for comments and encouragement..Regards
ReplyDeleteभरभराकर
ReplyDeleteगिर रहे हैं,
असहिष्णुता और स्वार्थ
के भूकम्प के
एक हलके झटके से.
sach kaha. samaaj me deemak ki tarah fail to rahe hain makaan lekin ghar koi nahi ban pa raha ye jaante hue bhi ki makaan me deemak he.
सुन्दर रचना ..
ReplyDeleteब्लॉग जगत पर लाने के लिए धन्यवाद
"बहुत कोशिश की
ReplyDeleteमैंने एक घर बनाने की,
लेकिन कहीं नहीं मिला
स्नेह का गारा,
विश्वास की ईंट,
और सम्मान की छत.
जो बना
वह रह गया बनकर
केवल एक मकान,"
गहन संवेदना से आप्लावित, जीवन की कटु सच्चाईयों से रू ब रू कराती, मर्मस्पर्शी सुंदर रचना.
आभार.
सादर डोरोथी.
@अनामिका जी,
ReplyDelete@विवेक जी,
@डोरोथी जी,
आपकी प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन ही लिखने की प्रेरणा देते हैं....आभार...
वाह ! कितने सुन्दर रूपक - मकान .. पलस्तर विश्वास का - और घर ..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
डॉ.नूतन जी आपकी प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद...
ReplyDeleteकैलासजी,
ReplyDeleteआपकी बात सही है, मकान बने मगर घर बनाना बड़ा ही कठिन ! बहुत बधाई...
भरभराकर
ReplyDeleteगिर रहे हैं,
असहिष्णुता और स्वार्थ
के भूकम्प के
एक हलके झटके से.