भोर सुनहरी करे प्रतीक्षा, सत्य मार्ग के राही की,
भ्रष्ट न धो पायेगा अपनी लिखी इबारत स्याही की.
कब तक छुपा सकेगी चादर
दाग लगा जो दामन में,
बोओगे तुम यदि अफीम तो
महके तुलसी क्यों आँगन में.
भ्रष्ट करो मत अगली पीढ़ी अपने निन्द्य कलापों से,
वरना ताप न सह पाओगे, अपनी आग लगाई की.
भ्रष्ट व्यक्ति का मूल्य नहीं है
उसकी केवल कीमत होती.
चांदी की थाली हो, या सूखी पत्तल,
खानी होती है सबको,केवल दो रोटी.
भरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,
कहीं न कालाधन ले आये तुमको रात तबाही की.
यथार्थ से सटी आपकी यह रचना सच्चाई की कसौटी पर खरी है .....बहुत सार्थक रचना .
ReplyDeleteसादर
aadarniya kailash ji ...bahut dhaardaar aur asardaar post lagi aapki ...
ReplyDeleteकब तक छुपा सकेगी चादर
दाग लगा जो दामन में,
बोओगे तुम यदि अफीम तो
महके तुलसी क्यों आँगन में.
bahut sunder ...
शर्म से डूब मरना चाहिए सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के कांग्रेस की सरकार को ...व्यवस्था सड़ चुकी है ऐसे बेशर्मों की वजह से ...ऐसे लोगों को अगर कोई सुरक्षा गार्ड गोली से भून देता है तो निश्चय ही वो सुरक्षा गार्ड हर घर में भगवान की जगह आरती उतारने के योग्य है .... अब तो देशभक्त सुरक्षा गार्डों का ही सहारा है गंदगी की सफाई और इस देश के गद्दारों की सफाई में ...न्यायपालिका तो ऐसे देश के लूटेरों और गद्दारों के सामने घुटने टेक चुकी है ...
ReplyDelete6/10
ReplyDeleteविषय विशेष पर उत्कृष्ट स्लोगन
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ReplyDeleteभरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,....
संतोष की दौलत। !-- बहुत सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्ति।
प्रेरणादायी रचना।
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very good and timely but as per recent survy our country has progressed further to become one of the most corrupt contry.There is no hope on this front unless our society stops worshipping those who have earned money by corrupt means ....ubu
ReplyDeleteहमारे समाज की विसंगतियों और अंतर्विरोधों की संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
कैलाश जी,
ReplyDeleteबेहद यथार्थपरक, सजग काव्य॥
भ्रष्ट करो मत अगली पीढ़ी अपने निन्द्य कलापों से,
वरना ताप न सह पाओगे, अपनी आग लगाई की.
ला-जवाब!!
thanks with regards for your nice comments
ReplyDeleteभरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,
ReplyDeleteकहीं न कालाधन ले आये तुमको रात तबाही की.
सही दिशा देती सुन्दर रचना ..
सार्थक रचना, बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteभ्रष्ट व्यक्ति का मूल्य नहीं है
ReplyDeleteउसकी केवल कीमत होती.
मूल्य और कीमत का यही तो अंतर है.
सुन्दर रचना और प्रेरक भी
भरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,
ReplyDeleteकहीं न कालाधन ले आये तुमको रात तबाही की.
सार्थक और कामयाब लेखन .. बधाई
चांदी की थाली हो, या सूखी पत्तल,
ReplyDeleteखानी होती है सबको,केवल दो रोटी.