Tuesday, October 26, 2010

सत्य की राह

("सतर्कता जागरूकता सप्ताह (Vigilance Awareness Week)" जिसे २५ अक्टूबर से १ नवम्बर  तक मनाया जा रहा है को समर्पित )


भोर सुनहरी करे प्रतीक्षा, सत्य  मार्ग के राही की,
भ्रष्ट न धो पायेगा अपनी लिखी इबारत स्याही की.


        कब तक छुपा सकेगी चादर
        दाग लगा  जो  दामन  में,
        बोओगे तुम यदि अफीम तो
        महके तुलसी क्यों आँगन में.


भ्रष्ट करो मत अगली पीढ़ी अपने निन्द्य  कलापों से,
वरना ताप न सह  पाओगे, अपनी  आग लगाई की.


        भ्रष्ट व्यक्ति का मूल्य नहीं है
        उसकी  केवल कीमत  होती.
        चांदी की थाली हो, या सूखी  पत्तल,
        खानी होती है सबको,केवल दो रोटी.


भरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,
कहीं न कालाधन ले आये तुमको रात तबाही की.

15 comments:

  1. यथार्थ से सटी आपकी यह रचना सच्चाई की कसौटी पर खरी है .....बहुत सार्थक रचना .
    सादर

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  2. aadarniya kailash ji ...bahut dhaardaar aur asardaar post lagi aapki ...

    कब तक छुपा सकेगी चादर
    दाग लगा जो दामन में,
    बोओगे तुम यदि अफीम तो
    महके तुलसी क्यों आँगन में.

    bahut sunder ...

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  3. शर्म से डूब मरना चाहिए सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह के कांग्रेस की सरकार को ...व्यवस्था सड़ चुकी है ऐसे बेशर्मों की वजह से ...ऐसे लोगों को अगर कोई सुरक्षा गार्ड गोली से भून देता है तो निश्चय ही वो सुरक्षा गार्ड हर घर में भगवान की जगह आरती उतारने के योग्य है .... अब तो देशभक्त सुरक्षा गार्डों का ही सहारा है गंदगी की सफाई और इस देश के गद्दारों की सफाई में ...न्यायपालिका तो ऐसे देश के लूटेरों और गद्दारों के सामने घुटने टेक चुकी है ...

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  4. 6/10

    विषय विशेष पर उत्कृष्ट स्लोगन

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  5. .

    भरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,....

    संतोष की दौलत। !-- बहुत सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्ति।

    प्रेरणादायी रचना।

    .

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  6. very good and timely but as per recent survy our country has progressed further to become one of the most corrupt contry.There is no hope on this front unless our society stops worshipping those who have earned money by corrupt means ....ubu

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  7. हमारे समाज की विसंगतियों और अंतर्विरोधों की संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  8. कैलाश जी,
    बेहद यथार्थपरक, सजग काव्य॥

    भ्रष्ट करो मत अगली पीढ़ी अपने निन्द्य कलापों से,
    वरना ताप न सह पाओगे, अपनी आग लगाई की.

    ला-जवाब!!

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  9. भरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,
    कहीं न कालाधन ले आये तुमको रात तबाही की.

    सही दिशा देती सुन्दर रचना ..

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  10. बहुत सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्ति।

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  11. भ्रष्ट व्यक्ति का मूल्य नहीं है
    उसकी केवल कीमत होती.
    मूल्य और कीमत का यही तो अंतर है.
    सुन्दर रचना और प्रेरक भी

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  12. भरलो अपना आज खज़ाना संतुष्टि की दौलत से,
    कहीं न कालाधन ले आये तुमको रात तबाही की.

    सार्थक और कामयाब लेखन .. बधाई

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  13. चांदी की थाली हो, या सूखी पत्तल,
    खानी होती है सबको,केवल दो रोटी.

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