लेकिन तुम से श्रेष्ठ कब्र मिट्टी की यह लगती है मुझको.
कौन नहीं इच्छा करता की अपने प्रेम प्रतीक रूप में,
एक नहीं वह दस सुन्दरतम ताजमहल बनवाये.
लेकिन स्वयं अभावों से है ग्रस्त आज का जनजीवन
तो फिर कैसे वह आज ताज की अनुकृति भी रच पाये.
तेरा प्रेम ढोंग है मुझको, केवल धन की बर्बादी है,
इक्षुक नहीं प्रेम इन सबका,वह तो दो उर का संगम है.
मरने पर वह नहीं चाहता कोई यादगार इस जग में,
अभिप्रेत केवल उसको प्रेमी की दो आँखें पुरनम हैं.
तेरा यह अति श्वेत रूप भी मुझको श्याम नज़र आता है,
तुझ से अधिक मूल्य प्रेमी का यह मिट्टी की कब्र बताती.
देख प्रेम की असफलता को,आज स्वयं मुमताज़ यहाँ पर,
पीछे बहती यमुना के मिस, आँखों से है अश्रु बहाती.
मानव कोई छाँव न दे पाया तुमको म्रत्यु अनंतर,
पर प्रकृति ने तान दिया है वृक्ष वितान कब्र के ऊपर.
कोई गीत न गाया जग ने मरने पर तेरी स्मृति में,
पर उलूक ने अपने क्रंदन गीत लुटाये तेरे ऊपर.
शायद तेरा भाग्य नहीं था तू इस जग में नाम कमाता,
लेकिन केवल एक नहीं तू ही अभाग्यशाली इस जग में.
कितने सुन्दर फूल व्यर्थ में झड जाते हैं अनजाने ही,
सजने की उनकी जूडे में रह जाती है चाह ह्रदय में.
महल बनाये जाने कितने, खून पसीना एक कर दिया,
लेकिन मरने पर भी पूरा कफ़न न पाया जग में तूने.
बनकर विश्वरचियता तूने इस जग का निर्माण किया था,
लेकिन मरने पर भी कोई स्मारक न पाया तूने.
देख ताज का वैभव अनुपम, दिल में कसक अज़ब उठती है,
झुक जाती है द्रष्टि देखकर त्रण गुल्मित यह कब्र तुम्हारी.
शोषण पर ही आधारित जो, चमक रहा है आज शुभ्रतर,
जो रत रहा सदां परहित में उसकी है यह कब्र बिचारी .
याद नहीं तुम सदां रहोगे इस दुनियां के जनमानस को,
नहीं रहेगी कोई तेरी यादगार इस जगती तल में.
लेकिन क्या है शोक नहीं गर यादगार इस जग में तेरी,
जब कि प्यार भरा होगा कुछ उन सूनी आँखों के जल में.
(यह कविता कालेज जीवन के अंतिम वर्ष में लिखी थी. कविता बहुत लम्बी है इसलिए इसके कुछ अंश ही पोस्ट कर रहा हूँ)
सुन्दर रचना अंश है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
bahut achhi rachna
ReplyDeleteमहल बनाये जाने कितने, खून पसीना एक कर दिया,
ReplyDeleteलेकिन मरने पर भी पूरा कफ़न न पाया जग में तूने.
बहुत सुंदर रचना है कैलाश जी..... अगर पूरी भी पोस्ट करते तो भी प्रवाह बना रहता...... उम्दा ...
जितनी तारीफ़ की जाये इस रचना की कम है.
ReplyDeleteहर शब्द आपके सशक्त लेखन का परिचय देता है.
सुंदर श्रेष्ट रचना.
bahut achi rachna hai... lekin aap ko ek baat bhi batana chahugi ki Taj Mahal ka asli naam Tejo Mahalaya tha or tajmahal ko Shahjahan ne nahi banwaaya tha,... or mumtaj mahal bhi shah jahan ki 3rd wife thi... strange na ?? but its true..
ReplyDeleteMere blog par bhi sawaagat hai aapka.....
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सोनल जी, मेरे ब्लॉग पर आने और प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए धन्यवाद. यह सही है कि ताज महल के निर्माण के बारे में इतिहासकारों में काफी मतभेद है, लेकिन मैंने कविता लिखने के समय प्रचलित अवधारणा कि ताज को शाहज़हां ने मुमताज़ महल की याद में बनवाया था को स्वीकार किया.ज्ञानवर्धन के लिए आभार....
ReplyDeleteवाकई आपने ताजमहल के बारे में कुछ ज्यादा ही सोचा है।
ReplyDeleteएक मिट्टी के साधारण सी कब्र और ताजमहल के बिंबों के द्वारा इस सच्चाई को बखूबी दर्शाया गया है कि एक शहंशाह का प्रेम किसी साधारण जन के प्रेम से बढ़ कर नही. हालांकि यह भी सच है कि उन साधारण लोगों का इतिहास में कोई जिक्र नहीं मिलता. इन अहसासों को इस रचना में बेहद खूबसूरती से पिरोया गया है. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
TaajMahal par itni sundar rachnaa .. vo bhi un hatho kaa jikr jineh kisi ne pehchana nahi...
ReplyDeleteताजमहल के बारे में सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|
ReplyDeletebahut sundar geet sir badhai
ReplyDeleteजितनी तारीफ़ की जाये इस रचना की कम है.बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पार आना हुआ
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशायद तेरा भाग्य नहीं था तू इस जग में नाम कमाता,
ReplyDeleteलेकिन केवल एक नहीं तू ही अभाग्यशाली इस जग में.
कितने सुन्दर फूल व्यर्थ में झड जाते हैं अनजाने ही,
सजने की उनकी जूडे में रह जाती है चाह ह्रदय में.
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