दुर्घटना में घायल आदमी
पड़ा था बीच सड़क पर
सना अपने ही खून में.
दौड़ती कारें
बचकर निकल गयीं,
स्कूटर से उतर कर लोग
तमाशाइयों की भीड़ में
घुस कर देखते
और आगे बढ़ जाते.
तड़पता रहा घायल
पर बढ़ा नहीं कोई हाथ
उसे उठाने.
सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
संख्या एक और बढ़ गयी,
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
सोंचता ही रह गया इस रचना को पढ़ कर ! इंसानियत ही मर रही है हर जगह हर समय ....
ReplyDeleteआपकी रचनाये गहरे निशान छोडती हैं !
हार्दिक शुभकामनायें
aaj ham kitne samvedanheen ho gaye hain..
ReplyDeletevastav me yah insaniyat ki maut hi to hai..
bhavpoorn marmik kavita.
बहुत गहरी बात ..लोंग तो गिने जाते हैं पर इंसानियत ???? अच्छी रचना ...
ReplyDeleteलेकिन गिनती नहीं हुई
ReplyDeleteउस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
हो भी नही सकती क्योंकि आज हर गली चौराहे पर इंसानियत ऐसे ही मर रही है कहाँ तक गिनेगा कोई………………बेहद गहन अभिव्यक्ति कटु सत्य के साथ्।
आदरणीय शर्मा जी,
ReplyDeleteआपकी कविता की ये पंक्तियाँ कविता को बहुत उंचाई प्रदान कर रही हैं ,
सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
संख्या एक और बढ़ गयी,
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
आभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
इंसानियत ही मर रही है हर जगह हर समय ....
ReplyDeletebikul sahi kaha aapne kailash ji...
लेकिन गिनती नहीं हुई
ReplyDeleteउस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
...संवेदनहीनता की पराकाष्टा को प्रदर्शित करती आपकी यह रचना वर्तमान परिवेश को इंगित कर एक सवेदनशील इंसान के मन से उपजी गहरी मानवीय पीड़ा को व्यक्त करती है .....सच में आज जब ऐसी ख़बरें सुनने को मिलती है तो मन दर्वित हो उठता है .......
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
सर अब तो ये गिनती करनी है कि इंसानियत बची कितने लोगो में है तो ज्यादा आसानी होगी। आपकी रचना दिल को छूती है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबेहद गहन अभिव्यक्ति कटु सत्य के साथ्।
ReplyDeleteअब लोग सिर्फ तमाशा देखने आते है /
ReplyDeleteमानवीयता शायद मर सी गई है बड़े भाई //
ऐसा सोचना तथा सोच को शब्दों का आवरण पहनना, बहुत खूब कला है आपमें.
ReplyDeleteपहली बार आई हूँ, आपके ब्लॉग में. कहना जरूर चाहुगी कि मन को बहुत सुकून सा लग रहा है आपकी रचनाओ को पढ़कर.प्रणाम!
ReplyDeleteसड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
ReplyDeleteसंख्या एक और बढ़ गयी,
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
सही कहा आपने.यही हालात हैं इस समय तो.
इंसानियत ही मर रही है हर जगह हर समय ....
ReplyDeleteसड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
ReplyDeleteसंख्या एक और बढ़ गयी,
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
क्या बात है!
बिल्कुल सही कथन और सही चित्रण कविता के द्वारा
kya kahun ab is par...nishabd hoon
ReplyDeleteछोटे शहरों में तो अभी इतनी मानवीयता शेष है कि किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को अस्पताल पहुंचा दे।
ReplyDeleteaaj bade shahro me vyst aadmee kee ye tatasthta kee mansikta ka sahee chitran kiya hai aapne........
ReplyDeleteaabhar.
एक समाज का सच.. मैंने भी इस चेहरे को देखा है ...
ReplyDeleteऔर ये पंक्तियाँ खास लगीं
सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
संख्या एक और बढ़ गयी,
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
उम्दा
रचना अपने निशाँ छोड़ती है .....
ReplyDeleteकुछ इसी से मिलती जुलती मेरी एक कविता की अंतिम पंक्तियाँ थी .....
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सी
देखती रही उस भीड़ को
जिनकी आत्माएं
कबकी मर चुकी थी ....
संवेदनाएं मर चुकी हैं। मनुष्य मशीनीकृत हो रहे हैं।
ReplyDeleteइंसानियत रोज हजारों मौत मरती है कोई गिनती नहीं ..मार्मिक रचना.
ReplyDeleteकविता बहुत ही मार्मिक है,
ReplyDeleteइन अंतिम प्रक्तियों को पढ़कर मन व्यथित हो गया-
सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
संख्या एक और बढ़ गयी
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी
आपकी संवेदनशीलता को नमन।
बहुत ही मार्मिक चित्रण... इंसानियत मर रही है बार-बार, यह धरा रो रही जार-जार, ऐ इंसान कहाँ जा रहा है तू, रुक के ज़रा सोच तो ले एक बार!
ReplyDeleteएक संवेदनशील पोस्ट संवेदनाहीन समुदाय के नाम
ReplyDeletebhaoot hi marmik chitran..... aaj insaniyat har jagah dam tod rahi hai..... sunder prastuti.
ReplyDeletedarun,pidadayak sthiti.
ReplyDeleteपांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
ReplyDeleteप्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)
या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)
आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
{आप की अमानत आपकी सेवा में}
इस पुस्तक को पढ़ कर
पांच लाख से भी जियादा लोग
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom
इंसानियत उसके साथ ही मर गयी.....मार्मिक, हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteइंसानियत मरती जा रही है . आभार इस यथार्थ वादी एवं मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए .
ReplyDeletedurghatnaon mein hui maut ek statistics ban kar rah jati hai aur insaniyat ki maut ka aabhas tak nahi kar paate hum...
ReplyDeleteyathartparak rachna!
तड़पता रहा घायल
ReplyDeleteपर बढ़ा नहीं कोई हाथ
उसे उठाने.
Bahut hi kadwaa sach jise sweekarnaa hoga parantu sweekarne bhr se kyaa hoga. Kuchh karnaa hoga parantu karega kaun? Yadi hami aap ko karna hota to yah naubat hi kyon aati? to kaun karega aur kaise karegaa yahi sochne ka vishay hai... yah durghatana kisi ke saath bhi ho sakti hai parantu hmhridayheen kyon aur kaise ho gaye...?????? Yadi swayan se poochhe to achha rahega.......Mananiy air chantan karne yogya rachna......
आदरणीय शर्मा जी,
ReplyDeleteअच्छा लेख प्रेणादायक
आज के समय में इंसानियत बहुत जारूरी है!
लेकिन इंसानियत मरती जा रही है
सड़क दुर्घटना में मरनेवालों की
ReplyDeleteसंख्या एक और बढ़ गयी,
लेकिन गिनती नहीं हुई
उस इंसानियत की
जो उसके साथ ही मर गयी.
अच्छी रचना
आज लोगों के संवोदनाओं के तार झंकृत नही हो रहे हैं। इंसान केवल जिंदा है पर इंसानियत मर गयी है। अच्छा पोस्ट। णेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDelete…बेहद गहन अभिव्यक्ति कटु सत्य के साथ्
ReplyDeleteReally, heart touching lines sir... thank you for sharing it with us.
ReplyDelete