Tuesday, January 11, 2011

पहले हर अधरों को मुस्कानें दे दूं मैं ....

           
            पहले हर अधरों को  मुस्कानें दे दूँ मैं,
            फिर सूनी मांग तेरी तारों से भर दूँगा.

वासंती आँचल का  आकर्षण गहरा है,
लेकिन इन नयनों के अश्कों को चुन लूं मैं.
हर सूने हाथों में  मेहंदी रच जाने दो,
फिर तेरे आँचल को  फूलों से भर दूंगा.

            आँखों का आकर्षण ठुकराना ही होगा,
            माथे  के स्वेदबिंदु बन जाएँ सब मोती.
            पहले इन आहों से ताजमहल गढ़ दूं मैं,
            फिर तेरे यौवन का अभिनन्दन कर लूँगा.

नापो गर नाप सको दुख की गहराई को,
कितने  विश्वासों का  सेतुबंध टूट गया.
पहले प्रलयंकर का मौन मुखर होने दो,
फिर अनंग तुम को भी अभयदान दे दूंगा.

            कितनी द्रोपदियों का चीर हरण होता है,
            जाने क्यों मौन कृष्ण आकर के लौट गये.
            पहले हर दुखियों को संदेशा पहुंचा दो,
            फिर मेरे  मेघदूत   अलकापुरि भेजूंगा.

41 comments:

  1. अत्यंत ही सुन्दर रचना.....गहरे भाव !

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  2. कविता ?????!!!!!!कमा......ल है.मनोहारी अद्भुत चित्रण. बहुत गहरी बातें कह गए आप

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  3. जाने क्यों मौन कृष्ण आकर के लौट गये.

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  4. बहुत प्रेरक और सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति प्रेम की।

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  6. पहले हर अधरों को मुस्कानें दे दूँ मैं,
    फिर सूनी मांग तेरी तारों से भर दूँगा.

    अत्यंत सार गर्भित और सर्वोच्च दायित्व बोध का सार्थक सन्देश देती एक ऐसी रचना जो मुझे वर्षों याद रहेगी, पथ प्रदर्शन करेगी. यदि इसका शतांश बोध भी हो जाय तो भी जीवन बड़ी आसानी से गुजर जायेगा.. आपकी लेखनी को नमन , और रचना कार को भी...भावों को प्रेरित करने वाली अन्तः प्रवृत्ति को भी नमन......पढने से प्यास नहीं बुझ रही ऐसी भाव प्रवणता है इसमें... कामना है कुछ चालक जाय इस अमृत कलश से...ब्लोगर बन्धु अवश्य रसपान करें.......

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  7. वाह अद्भुत , अद्वितीय , मनोहारी रचना . हर पंक्ति सजीव और प्रेम का प्रतिरूप . आभार इस रचना के लिए .

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  8. itna sunder likha hai aapne ki sabd nhi hai mere pas..

    aabhar

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  9. बहुत प्रेरक और सुंदर भावाभिव्यक्ति। आभार|

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  10. बहतरीन और गम्भीर विचारों का संकलन ।

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  11. पहले इन आहों से ताजमहल गढ़ दूं मैं,
    फिर तेरे यौवन का अभिनन्दन कर लूँगा

    संकलन योग्य कमाल की रचना, बेहतरीन शब्द सामर्थ्य आपकी विशेषता है !
    हार्दिक शुभकामनायें भाई जी हार्दिक शुभकामनायें भाई जी !

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  12. वाह क्या बात है ...जय हो //
    पहले इन आहों से ताजमहल गढ़ दूं मैं,
    फिर तेरे यौवन का अभिनन्दन कर लूँगा

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  13. ..भावानुकूल प्रस्तुति ..आप बहुत सुंदर लिखते हैं...
    आभार..

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  14. .........खूबसूरत तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ गए..

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  15. बेहतरीन रचना .. सार्थक सोच और भाव

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  16. प्रेम के साथ कर्तव्य के प्रति विशेष आग्रह अपनी प्रेयसी के प्रति आपकी रचना में मौजूद लग रहा है ।
    शानदार भावाभिव्यक्त...

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  17. आँखों का आकर्षण ठुकराना ही होगा,
    माथे के स्वेदबिंदु बन जाएँ सब मोती.
    पहले इन आहों से ताजमहल गढ़ दूं मैं,
    फिर तेरे यौवन का अभिनन्दन कर लूँगा.
    neeraj kee yaad aa gai , sashakt bhaw lekhan

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  18. "कितनी द्रोपदियों का चीर हरण होता है,
    जाने क्यों मौन कृष्ण आकर के लौट गये."

    बहुत ही सुन्दर और भावयुक्त रचना
    आभार
    शुभ कामनाएं

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  19. सुंदर प्रस्तुति ! एक बात खटक रही है 'हर' एक वचन के साथ प्रयुक्त होता है, यानि हर अधर हो तो ज्यादा सुखद लगेगा

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  20. आद.कैलाश जी,

    पहले प्रलयंकर का मौन मुखर होने दो,
    फिर अनंग तुम को भी अभयदान दे दूंगा.

    पूरी कविता गहन भावों से भरी है !
    ऐसी पंक्तियाँ सीधे दिल में उतर जाती हैं !
    साभार ,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  21. पहले हर अधरों को मुस्कानें दे दूँ मैं,
    फिर सूनी मांग तेरी तारों से भर दूँगा.....

    आदरणीय कैलाश जी .... पूरी रचना में बहुत गहरी बातें कही हैं आपने .... आभार

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  22. पूरी कविता भावपूर्ण |

    अंतिम बंद बहुत अच्छा लगा |

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  23. क्यों मौन कृष्ण आकर के लौट गये ?
    क्या प्रश्न किया है सुंदर रचना के लिए आपको बधाई

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  24. गीत का बाखूबी निर्वाह किया है आपने.
    अच्छा गीत.

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  25. नापो गर नाप सको दुख की गहराई को,
    कितने विश्वासों का सेतुबंध टूट गया.
    पहले प्रलयंकर का मौन मुखर होने दो,
    फिर अनंग तुम को भी अभयदान दे दूंगा.
    Wah Kailashji itni sunder, gahari,bhavpoorna,Behatreen kavita to sirf aapke hi antarman se nirmit rachit ho sakti hai.....

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  26. बहुत ही गहराई से कहा है हर एक शब्‍द को ...इस रचना के लिये आभार ।

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  27. "कितनी द्रोपदियों का चीर हरण होता है,
    जाने क्यों मौन कृष्ण आकर के लौट गये।"...

    द्रौपदियां आज भी हैं लेकिन अब कृष्ण नहीं होते ...

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  28. बहुत कमाल की रचना ..कल चर्चामंच पर आपकी रचना होगी... १४ -१-२०११ को..
    आपका ह्रदय से आभार .. www.charchamanch.uchcharan.com

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  29. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना ...... बधाई

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  30. बहुत ही प्यारी, सुन्दर रचना...
    मकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  31. कितनी द्रोपदियों का चीर हरण होता है,
    जाने क्यों मौन कृष्ण आकर के लौट गये.
    पहले हर दुखियों को संदेशा पहुंचा दो,
    फिर मेरे मेघदूत अलकापुरि भेजूंगा
    ..बहुत सुन्दर सार्थक सन्देश देती प्रस्तुति ....
    मकर सक्रांति कि बहुत बहुत हांर्दिक शुभकामनाएं

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  32. sundar geet ke liye badhai.sir thanks for your nice comments.

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  33. सशक्त प्रस्तुति..... हर पंक्ति प्रभावी
    मकर संक्रांति, लोहरी एवं पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएं...

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  34. आदरणीय कैलाश जी,

    एक संदेश देती हुई कविता... निम्न पंक्तियों ने मुझे प्रेरित किया :-

    नापो गर नाप सको दुख की गहराई को,
    कितने विश्वासों का सेतुबंध टूट गया.
    पहले प्रलयंकर का मौन मुखर होने दो,
    फिर अनंग तुम को भी अभयदान दे दूंगा.


    बहुत बढिया बात कही है...

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    नोट : आप तक नही पहुँच पाने के विषयक केवल जावा स्क्रिप्ट संबधी त्रुटि थी जो अब दूर हुई है......कवितायन पर आने का शुक्रिया।

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  35. अत्यन्त सुंदर भाव समेटे एक बढ़िया कविता ..शब्द चयन की तारीफ़ करनी होगी...एक अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई

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  36. अत्यंत सारगर्भित ...मन को अंतर तक स्पर्स करती अभिव्यक्ति...

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