झूले की छोटी छोटी कड़ियाँ
एक दूसरे से जुड़कर
संभाले हुए हैं मेरा बोझ,
और उन कड़ियों की परछाई
पडती है मेरे पैरों पर
और देती है अहसास
ज़कडे होने का
ज़ंजीरों में,
मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व.
नहीं होती हैं बंधन
सिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
हमारी यादों की परछाईं भी
कभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर.
एक दूसरे से जुड़कर
संभाले हुए हैं मेरा बोझ,
और उन कड़ियों की परछाई
पडती है मेरे पैरों पर
और देती है अहसास
ज़कडे होने का
ज़ंजीरों में,
मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व.
नहीं होती हैं बंधन
सिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
हमारी यादों की परछाईं भी
कभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर.
यही छोटी छोटी लड़ियाँ तो पूरे अस्तित्व को बाँधे है।
ReplyDeleteहमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें....
अत्यंत उम्दा चिंतन सर....
सार्थक रचना...
सादर बधाई...
हमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
बहुत सही कहा सर!
सादर
नहीं होती हैं बंधन
ReplyDeleteसिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
हमारी यादों की परछाईं भी
कभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते...usse mukt hona jatil hai
बहुत ही सुंदर भाव की रचना................
ReplyDeleteहमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर.
Kya baat kahee hai aapne! Badee gaharee sachhayee hai!
हम जन्मते हैं मुक्त मगर बन्धनों में बंधते जाते हैं ... बंधे रहते हैं... उम्र भर!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
हमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की..
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
अनुसरण करता रहा हूँ ||
ReplyDeleteखूब भाया ||
आभार ||
हमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर.बहुत ही सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति।धन्यवाद ।
गहरे भाव....
ReplyDeletesach kaha yade bahut moti zanzeere hain lekin ye hamare hi banaye hue bandhan hain.
ReplyDeleteसटीक और गहन बात कहती हुई अच्छी रचना
ReplyDelete"नही मुक्त हो पाते उस बंधन से" इसी तरह के बंधन से ही तो जीने की चाह जुड़ी होती है | ये बंधन न हों तो बड़ी बेमानी से लगती है ये जिंदगी |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
शादी.काम
बेहतरीन काव्य धारा बहाई है आपने कैलाश जी बधाई
ReplyDeleteहमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
सच स्मृतियाँ भी हमें जकड़ लेती हैं कभी कभी ....सुंदर रचना
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 24-- 11 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ..बिहारी समझ बैठा है क्या ?
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteऔर उन कड़ियों की परछाई
ReplyDeleteपडती है मेरे पैरों पर
और देती है अहसास
ज़कडे होने का
ज़ंजीरों में,
मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व.
सच्चा चित्र
beautiful composition.
ReplyDeleteसही कह रहे हैं ये यादे हमारी जंजीरे ही हैं।
ReplyDeletebandh kar hi to khushi bhi milti hai .
ReplyDeleteयादों की जंजीरों से मुक्त होना बहुत मुश्किल है, कभी-कभी जीने का सहारा भी होती हैं ये जंजीरें... सुन्दर अभिव्यक्ति... आभार
ReplyDeleteजंजीरों का बंधन हर इंसान को आपस में
ReplyDeleteबांधे रखता है | सुन्दर अभिव्यक्ति |
बधाई
आशा
हमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की.....बहुत ही अच्छी और दिल को छुने वाली रचना.....बधाई स्वीकार करें ....
इन लड़ियों से रिश्तों की तार जुडी होती है ..
ReplyDeleteयादो की परछाइयो से मुक्त होना ही तो मुश्किल होता है।
ReplyDeleteबहुत गहराई से निकले भाव... यादें कभी सुख का अहसास भी तो कराती हैं...तभी संत कहते हैं दुःख के बंधन से मुक्त होना है तो सुख की लालसा भी त्यागनी होगी. सुंदर कविता!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ज़ंजीर है |
ReplyDeleteमन को छूती सुंदर रचना । बधाई ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteगहन भाव...बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteनहीं होती हैं बंधन
ReplyDeleteसिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
हमारी यादों की परछाईं भी
कभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर.
बहुत सुन्दर कविता सर
आपकी सुन्दर भावों से सजी रचना
ReplyDeleteपढकर बहुत अच्छी लगी.
प्रस्तुति के लिए आभार आपका.
बहुत खुबसूरत भावो से रची सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteyadon ki janjeeron se mukt hona itana aasan bhi nahi....sundar rachna.
ReplyDeleteहमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
गहरी कल्पना....
बंधन कोई भी हो ...मन का आत्मा ....यादो का ,बातो का...वो तकलीफ ही देता है ......खूबसूरत शब्दों में आपकी ये प्रस्तुति ...आभार
ReplyDeleteनहीं होती हैं बंधन
ReplyDeleteसिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
हमारी यादों की परछाईं भी
कभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर.
वाह ...बहुत ही गहन भाव समेटे बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
behad khoobsurat...
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता..अच्छी बात.
ReplyDeleteहमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
और नहीं मुक्त हो पाते
उस बंधन से
उम्र भर. Bahut khoob. Sundar kavita.
बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteलयात्मक या अलयात्मक आप हर विधा में चौंका देने की क्षमता रखते हैं। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteयादों की जंजीरें हमें बांधे रखती है ज़िंदगी के साथ ... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों से सजी आपकी ये प्रस्तुति पढ़कर बहुत अच्छा लगा .... एक बेहतरीन अभिव्यक्ति ......बहुत खूब ...कैलाश जी
ReplyDeleteसही कहा आपने ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
नहीं होती हैं बंधन
ReplyDeleteसिर्फ़ जंजीरें लोहे की,
हमारी यादों की परछाईं भी
कभी बन जाती हैं
जंजीरें हमारी ज़िंदगी की
जि़ंदगी की एक बड़ी सच्चाई है यह ।
हमारी यादों की परछाईं भी
ReplyDeleteकभी बन जाती हैं
ज़ंजीरें हमारी ज़िंदगी की
सच कहा आपने ....
यादें ही बंधन हो जाती हैं
और कुछ भली भी लगने लगती है जिंदगी....
जिन्दगी की सच्चाई को खोल कर रख दिया..बहुत खूब.. सुन्दर अभिव्यक्ति आभार....
ReplyDeletebahut hi sundar gahari bhav abhivykti....
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