जीवन की सरिता में बहते,
थक कर खड़ा आज मैं तट पर.
बहता समय देख कर सोचूँ,
एक बार बचपन मिल जाये.
छोटी बातों में खुशियाँ थीं,
कंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
दुनियां भर में उड़ कर जाना.
कहाँ खो गया है वह बचपन,
जीवन की इस दौड़ भाग में.
कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
पीछे पीछे माली चिल्लाये .
भौतिक सुविधायें बहुत जुड़ गयीं,
पर मासूम खुशी अब ग़ुम है.
बारिस आती अब भी गलियों में.
पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है.
पल में रोना, फिर हंस जाना,
जीवन कितना सहज सरल था.
मुझसे ले लो मेरी सब दौलत,
माँ बस तेरा चुम्बन मिल जाये.
जाना सभी छोड़ कर जग में,
क्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
जैसा जग में आया निर्मल,
वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.
अब इस जीवन संध्या में,
नयी सुबह की आस व्यर्थ है.
उंगली अगर पकड़ले बचपन,
कुछ पल को बचपन आ जाये.
Kailash C Sharma
थक कर खड़ा आज मैं तट पर.
बहता समय देख कर सोचूँ,
एक बार बचपन मिल जाये.
छोटी बातों में खुशियाँ थीं,
कंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
दुनियां भर में उड़ कर जाना.
कहाँ खो गया है वह बचपन,
जीवन की इस दौड़ भाग में.
कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
पीछे पीछे माली चिल्लाये .
भौतिक सुविधायें बहुत जुड़ गयीं,
पर मासूम खुशी अब ग़ुम है.
बारिस आती अब भी गलियों में.
पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है.
पल में रोना, फिर हंस जाना,
जीवन कितना सहज सरल था.
मुझसे ले लो मेरी सब दौलत,
माँ बस तेरा चुम्बन मिल जाये.
जाना सभी छोड़ कर जग में,
क्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
जैसा जग में आया निर्मल,
वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.
अब इस जीवन संध्या में,
नयी सुबह की आस व्यर्थ है.
उंगली अगर पकड़ले बचपन,
कुछ पल को बचपन आ जाये.
Kailash C Sharma
एक बार गया बचपन फिर से लौट के नहीं आता ...उसी दर्द को बखूबी उतारा है आपने अपनी कलम में ...
ReplyDeleteएक नज़र मेरे बचपन पर भी डाल के पढ़े
ReplyDeletehttp://apnokasath.blogspot.com/
छोटी बातों में खुशियाँ थीं,
ReplyDeleteकंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
दुनियां भर में उड़ कर जाना.
कहाँ खो गया है वह बचपन,
जीवन की इस दौड़ भाग में.
कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
पीछे पीछे माली चिल्लाये .
kaash ! per wo phir nahi aate
बहुत अच्छे से आपने बचपन को उकेरा है अपनी पंक्तियों में ।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना !
बहुत सुंदर कविता... बचपन तो आपने जी ही लिया इन सुंदर पंक्तियों के माध्यम से.. आभार!
ReplyDeleteमन के भावों की सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteअब इस जीवन संध्या में
नयी सुबह की आस व्यर्थ है.
उंगली अगर पकड़ले बचपन,
कुछ पल को बचपन आ जाये.
मन में यही आस जीने के लिए प्रेरित करती है
एक बचपन माँगता हूँ।
ReplyDeleteछोटी बातों में खुशियाँ थीं,
ReplyDeleteकंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
दुनियां भर में उड़ कर जाना.
कहाँ खो गया है वह बचपन,
जीवन की इस दौड़ भाग में.
कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
पीछे पीछे माली चिल्लाये .
bilkul sahi likha hai .. bachpan kho sa gaya hai aaj...
aaj ke bachche bhi is bachpane se dur hain...
jai hind jai bharat
vaah bahut khoobsurat bhaav pyaari kavita.
ReplyDeleteबचपन की यादें बहुत अनमोल होती हैं।
ReplyDeleteसादर
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी...
ReplyDeleteबचपन के दिन भी क्या दिन थे...उड़ते फिरते तितली बन...
बचपन की यादों को ताज़ा करती बढ़िया रचना
ReplyDeleteGyan Darpan
.
किसी के बच्चों के साथ बचपन की थोड़ी सी भरपाई हो जाती है. जब हम सही में उनके साथ खेलते है. सुन्दर लिखा है.
ReplyDeleteभौतिक सुविधायें बहुत जुड़ गयीं,
ReplyDeleteपर मासूम खुशी अब ग़ुम है.
बारिस आती अब भी गलियों में.
पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है.
सबकुछ होते हुए भी हम अपने जीवन के सबसे अनमोल खजाना खो चुके हैं।
कहाँ खो गया है वह बचपन,
ReplyDeleteजीवन की इस दौड़ भाग में.
bhut achchi abhivyakti.
बहुत सुन्दर कविता बचपन को याद करना सुखद होता है |
ReplyDelete“एक बार बचपन मिल जाये...”
ReplyDeleteवाह वाह सर....
कितनी भावमयी रचना है...
सादर बधाई....
बचपन की और लौटना कितना सुखद है... चाहे वो यादों के माध्यम से ही क्यूँ न हो!
ReplyDeleteसुंदर रचना!
अब इस जीवन संध्या में,
ReplyDeleteनयी सुबह की आस व्यर्थ है.
उंगली अगर पकड़ले बचपन,
कुछ पल को बचपन आ जाये.........Bahut sundar aur pyara geet Kailash ji....
बीता वक्त .... बचपन .... दुबारा मिल जाये .... कशमकश .... बहुत खूब कैलाश जी
ReplyDeleteबचपन की बातें ही कुछ और होती है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteapne jiwan ko kaise bhi jiya ja sakta hai khas taur par tab jab aap apni sari jimmedariyon ko pura kar chuke hon.
ReplyDeletebahut sunder prastuti.
कहाँ खो गया है वह बचपन,
ReplyDeleteजीवन की इस दौड़ भाग में.
कच्चे अमरूद पेड़ से तोड़ें,
पीछे पीछे माली चिल्लाये .
Kmaal ki panktiyan ...Bahut hi Sunder rachna
अब इस जीवन संध्या में,
ReplyDeleteनयी सुबह की आस व्यर्थ है.
उंगली अगर पकड़ले बचपन,
कुछ पल को बचपन आ जाये......
बचपन के दिन काश की फिर लौट आते... बहुत सुन्दर रूप में संजोया है आपने बचपन की यादों को.... अनमोल खजाना है यह जीवन का...सुंदर रचना
सुंदर अहसास।
ReplyDelete'ये दौलत भी ले लो
ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी...
पर लौटा दो मुझको
वो बचपन की यादें
वो कागज की कश्ती
वो बारिश का पानी...... '
"बारिस आती अब भी गलियों में, पर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है."
ReplyDeletebehatreen rachna sir.. :)
अद्भुत- वो बचपन की यादों में गोता लगाना.
ReplyDeleteजाना सभी छोड़ कर जग में,
ReplyDeleteक्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
जैसा जग में आया निर्मल,
वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.
जीवन का सबसे निर्मल समय बचपन ही होता है।
बहुत अच्छी कविता।
अब इस जीवन संध्या में,
ReplyDeleteनयी सुबह की आस व्यर्थ है. उंगली अगर पकड़ले बचपन,
कुछ पल को बचपन आ जाये.
कुछ फिर वापस नहीं आता. बहुत सुंदर कविता.
पूरी तरह पठनीय ...
ReplyDeletewith experiments...sadhuvaad
awesome expressions of inner conflicts at old age :)
ReplyDeleteNice read as ever !!
very intersting sirG...
ReplyDeleteM to yhi kahunga ki...
bikhar gya h pani gar
to samet na sakenge
goojar gya h waqt jo
mudkar use dekh na sakenge
bachhpan to door chand yadon ke siva
ye pal bhi hum sahej na sakenge.
Bachhpan ki sirf yaade shesh h or .. or yaado me doobna sukoon de jata h...
बचपन को याद करती कविता सशक्त है।
ReplyDeleteशाश्वत चाहना.सुंदर.
ReplyDeleteउंगली अगर पकड़ले बचपन,
ReplyDeleteकुछ पल को बचपन आ जाये.
बहुत खूब ... बचपन की चाहत बेशक बचपन में न हो पर बाकी उम्र में तो बचपन की तलाश रहती ही है
सिर्फ बचपन ही होता है जहां हमेशा वापस लौटने को मन करता है ... बहुत ही गहरी बात सहज रूप से कही है अपने ... दिल में उतरती है ये रचना ...
ReplyDeleteअच्छी रचना..बहुत सुंदर
ReplyDeleteबाल दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआदरणीय कैलाश जी बहुत सुन्दर रचना बचपन की यादों में खो गया मन ..सच में कितना सरल सहज था प्यार और दुलराना ...बचपन के दिन भी क्या दिन थे ...बधाई हो
ReplyDeleteभ्रमर ५
पल में रोना, फिर हंस जाना,
जीवन कितना सहज सरल था.
मुझसे ले लो मेरी सब दौलत,
माँ बस तेरा चुम्बन मिल जाये.
जाना सभी छोड़ कर जग में,
क्यों यह समझ नहीं मैंपाया.
जैसा जग में आया निर्मल,
वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.
बचपन की याद दिलादी आपने बहुत ही सुंदर रचना बधाई तो लेनी ही पड़ेगी
ReplyDeletewow... beautiful...
ReplyDeleteawesome...
sab to theek hai, bt mai aaj bhi aeroplane banati hu papers ka... jo bhi poetry ya story ya article acchha ahi lagta, use uda deti hu hawa mei...
जीवन की सरिता में बहत
ReplyDeleteथक कर खड़ा आज मैं तट पर.
बहता समय देख कर सोचूँ,
एक बार बचपन मिल जाये... kas! ye hi sach ho jaaye....
आपकी पोस्ट सोमबार १४/११/११ को ब्लोगर्स मीट वीकली (१७)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह हिंदी भाषा की सेवा अपनी रचनाओं के द्वारा करते रहें यही कामना है /आपका "ब्लोगर्स मीट वीकली (१७) के मंच पर स्वागत है /जरुर पधारें /आभार /
ReplyDeletemeethaa ehsaas!
ReplyDeleteबचपन तो सच में अनमोल होता है
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति हेतु आभार
बहुत भावपूर्ण |
ReplyDeleteआशा
बचपन तो नही. हाँ, पर उसकी यादें लौट-लौट कर आती हैं...बहुत ही भावपूर्ण पोस्ट |
ReplyDeleteबारिस आती अब भी गलियों में.
ReplyDeleteपर काग़ज़ की वो कश्ती ग़ुम है.
बहुत सुन्दर भावों से परिपूर्ण रचना|
इसकी तलाश ताउम्र रहती है ...बहुत खूब लिखा है आपने ।
ReplyDeleteभावुक मन को ऐसी तलाश हमेशा रहती है !
ReplyDelete@उंगली अगर पकड़ले बचपन, कुछ पल को बचपन आ जाये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
दिल को छू लेने वाले भाव सजाये हैं आपने इस कविता में। बहुत अच्छी लगी कविता।
ReplyDeleteमाँ के आँचल में छुप जाना
घुटनो के बल चलते-चलते
बचपन था एक खेल सुहाना
कहीं खो गया चलते-चलते।
..कभी लिखी कविता की ये पंक्तियाँ याद आ गईं आपकी कविता पढ़कर।
कितनी दूर अभी है चलना
umra ka safarnama. bahut sundar abhivyakti...
ReplyDeleteछोटी बातों में खुशियाँ थीं,
कंचों ही का था ढ़ेर खज़ाना.
काग़ज़ का एक प्लेन बनाकर,
दुनियां भर में उड़ कर जाना.
माँ के आँचल में छुप जाना
घुटनो के बल चलते-चलते
बचपन था एक खेल सुहाना
कहीं खो गया चलते-चलते।
shubhkaamnaayen.
काश यह सपना पूरा हो जाए ....
ReplyDeleteप्यारी रचना के लिए आभार भाई जी !
शुभकामनायें !
जाना सभी छोड़ कर जग में,
ReplyDeleteक्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
जैसा जग में आया निर्मल,
वैसा ही क्यों मैं रह न पाया......shaandaar panktiyan...
जीवन की सरिता में बहते,
ReplyDeleteथक कर खड़ा आज मैं तट पर.
बहता समय देख कर सोचूँ,
एक बार बचपन मिल जाये.
मैं भी हमेशा यही चाहूँ...!
काश एक बार तो यैसा हो जाये.... !
जीवन कितना सहज सरल था.
ReplyDeleteमुझसे ले लो मेरी सब दौलत,
माँ बस तेरा चुम्बन मिल जाये.........निशब्द किया आप की रचना ने.....
बहुत प्यारी कविता है..दिल भर आया...
ReplyDeleteसादर नमन.
ek bar bachapan mil jaye
ReplyDeletebahut hi sundar abhivykti hai...
kaash bachpan hmara daman fir thaam le
ReplyDeleteजाना सभी छोड़ कर जग में,
ReplyDeleteक्यों यह समझ नहीं मैं पाया.
जैसा जग में आया निर्मल,
वैसा ही क्यों मैं रह न पाया.